मोदी सरकार ने फेंका ऐसा जाल, JNU समेत बड़े विश्वविद्यालयों तक पहुंच ही नहीं पाएंगे गरीब परिवारों के बच्चे
By भारती द्विवेदी | Published: March 22, 2018 07:47 AM2018-03-22T07:47:48+5:302018-03-22T08:59:07+5:30
विश्वविद्यालयों को पूर्ण स्वाययत्ता देने के सीधे मायने होते हैं कि अब यूजीसी यूनिवर्सिटीज को किसी भी नये काम किए फंड जारी नहीं करेगी। इसके लिए पैसे उन्हें छात्रों से ही वसूलने होंगे।
नई दिल्ली, 22 मार्च: 20 मार्च को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने पांच सेंट्रल यूनिवर्सिटी समेत 60 शिक्षण संस्थानों के लिए ऑटोनोमी जारी किया है। पांच सेंट्रल यूनिवर्सिटी में जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू), हैदराबाद, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) और उस्मानिया यूनिवर्सिटी शमिल हैं। इसके अलावा 21 स्टेट यूनिवर्सिटी, 24 डीम्ड, 2 प्राइवेट और 8 निजी शैक्षणिक संस्थान भी शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि यूजीसी ने 60 शैक्षणिक संस्थानों को पूरी तरह स्वायत्तता (ऑटोनोमी) दी है। सरकार के इस फैसले का हैदराबाद और उस्मानिया यूनिवर्सिटी के वीसी ने स्वागत किया है। लेकिन देश के नंबर एक मेडिकल संस्थान एम्स और जामिया मिलिया इस्लामिया में इस फैसले पर नाराजगी जाहिर की गई है। ये दोनों ही संस्थान जेएनयू टीचर एसोसिएशन के साथ मिलकर पार्लियामेंट स्ट्रीट पर मार्च निकालने वाले हैं।
यूजीसी की पूर्ण स्वायत्तता (ऑटोनोमी) का मतलब क्या होता है?
यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन यानी यूजीसी की तरफ से जारी इस ऑटोनोमी का मतलब है कि अब इन सारे यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को अपने यहां कुछ भी करने के लिए यूजीसी से परमिशन नहीं लेना होगा। वाइस चासंलर चाहे तो यूनिवर्सिटी में कोई भी नया कोर्स शुरू करवा सकता है, अपने हिसाब से सिलेबस डिसाइड कर सकता है, यूनिवर्सिटी के अंदर कोई भी नया डिपॉर्टमेंट बनवा सकता है, विदेश या कहीं के भी प्रोफेसर की नियुक्ति अपनी यूनिवर्सिटी में करवा सकता है। साथ ही दाखिले की प्रक्रिया और फीस स्ट्रक्चर डिसाइड कर सकता है। मतलब कि अब यूनिवर्सिटीज को हर छोटे-बड़े फैसले के लिए यूजीसी की ओर देखना नहीं पड़ेगा।
अब यूजीसी के इस पूर्ण स्वायत्तता (ऑटोनॉमी) का नुकसान जान लीजिए
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार इस नियम का सबसे पहला नुकसान फंड को लेकर है। यूजीसी अब किसी भी नए काम के लिए यूनिवर्सिटी को पैसे नहीं देगी।मतलब कोई भी यूनिवर्सिटी जिसकी रैंकिंग NAAC (National Assessment And Accreditation) स्कोर 3.26 से अधिक होगी, अगर वो यूनिवर्सिटी में कोई नया कोर्स या डिपॉर्टमेंट शुरू करेगी तो उसका खर्च यूनिवर्सिटी को खुद उठाना होगा। जब ये बिल भरने की जिम्मेदारी यूनिवर्सिटी पर आएगी तो यूनिवर्सिटी इन पैसों की वसूली छात्रों से करेगी। फीस में बढ़ोत्तरी होगी जिसकी वजह से गरीब या मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों के लिए जेएनयू या किसी भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ने का सपना टूटेगा। यूजीसी अब सिर्फ उन्हीं कामों के लिए फंड देगी जो उनके नियम के अंदर हो रहे होंगे।