Tripura Assembly Elections 2018: BJP ने खेला कौन सा दांव, CPM से कम वोट पाने के बाद भी तूफानी जीत के करीब

By खबरीलाल जनार्दन | Published: March 3, 2018 02:34 PM2018-03-03T14:34:14+5:302018-03-03T14:45:59+5:30

भारत के 65 साल के चुनावी इतिहास में पहली बार हुआ कि वाम दलों और बीजेपी की सीधी टक्कर राज्य स्तर पर हुई। इसमें बीजेपी ने करारी जीत की तरफ बढ़ रही है। क्या हैं इसके कारण।

Tripura Assembly Election Results 2018: BJP on the verge of making governmnet in Tripura, Know what strategy worked for the party | Tripura Assembly Elections 2018: BJP ने खेला कौन सा दांव, CPM से कम वोट पाने के बाद भी तूफानी जीत के करीब

Tripura Assembly Elections 2018

Highlightsसीपीएम को बीजेपी से ज्यादा वोट मिले, लेकिन सीटें बीजेपी की करीब दोगुनीपिछले चुनावों की तुलना में इस बार सीपीएम का वोट 6 फीसदी घटाबीजेपी त्रिपुरा में पिछले चुनावों के 1 फीसदी वोट की तुलना में 42 फीसदी वोट ऊपर पहुंची

नई दिल्ली, 3 मार्चः त्रिपुरा विधानसभा चुनाव परिणामों अब तक आए रुझानों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपने सहयोगी दल इंडिजीनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ बहुमत से ज्यादा सीटें जीतने जा रही है। खबर लिखे जाने तक तेज रुझान दिखाने टीवी चैनलों के मुता‌बिक त्रिपुरा विधानसभा चुनाव की सभी 59 सीटों के रुझान आ चुके हैं। इनमें 40 सीटों आगे चल रही है। जबकि अपने गढ़ में मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (सीपीएम) केवल 19 सीटों पर आगे है।

यह भारत के 65 साल के चुनावी इतिहास में पहली बार हुआ कि माकपानीत वाम दलों और बीजेपी की सीधी टक्कर राज्य स्तर पर हुई। और बीजेपी ने इसमें साबित कर दिया कि फिलहाल चुनाव जीतने की जो तरकीब उसके पास है, देश के किसी अन्य दल के पास नहीं है। ऐसा इसलिए कि त्रिपुरा जनता ने ज्यादा वो सीपीएम को दिए हैं, लेकिन जीत बीजेपी की हो रही है।

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव नतीजे 2018 live updates

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव परिणाम 2013 पर एक नजर

बीजेपी की तूफानी जीत से पहले आपको एक बार पिछले चुनाव के परिणामों पर नजर डालनी चाहिए। साल 2013 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में सीपीएम को 48.11 फीसदी वोट मिले थे। कुल पड़े वोट के 48.11 फीसदी वोटों से ही सीपीएम ने 49 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

पांच साल पहले वहां दूसरा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस थी। कांग्रेस को तब कुल 36.53 फीसदी वोट मिले थे और इससे उन्हें 10 सीट जीत पाए थे। पिछले चुनाव में एक सीट भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के खाते में गई थी।

बीजेपी और सहयोगी आईपीएफटी को क्रमश: 1.57 फीसदी और 0.46 फीसदी वोट मिले थे और यह गठबंधन एक भी सीट नहीं जीत पाया था।

2013 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के परिणाम
पार्टीवोट का प्रतिशतसीटें जीतीं
सीपीएम48.1149
बीजेपी1.570
कांग्रेस36.5310
आपीएफटी0.460

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव परिणाम 2018 पर एक नजर

चुनाव आयोग के अनुसार खबर लिखे जाने तक आए रुझानों में सीपीएम को 43.6 वोट मिले हैं। लेकिन इसके बावजूद सीपीएम महज 18 सीटों पर आगे चल रही है।

जबकि सीपीएम से करीब एक फीसदी से ज्यादा कम वोट हासिल करने वाली बीजेपी आगे है। चुनाव आयोग के अनुसार अब तक बीजेपी को 42.2% वोट मिले हैं। इतने ही वोट से बीजेपी 33 सीटों पर आगे चल रही है। जबकि सहयोगी दल आईपीएफटी महज 7.5 फीसदी वोट के साथ 7 सीटों पर आगे चल रही है। यह चौंकाने वाला है।

वहीं कांग्रेस ने 1.8 फीसदी वोट शेयर किए हैं, पर उसका सूपड़ा साफ होते नजर आ रहा है। अन्य दलों सीपीआई, आरएसपी, आईएनपीटी आदि को लोगों को बेहद कम वोट दिए हैं।

बू‌थ मैंनेजमेंट में सीपीएम से आगे निकले अमित शाह एंड टीम

चुनाव जीतने के लिए जनता के मुद्दों, वादों-इरादों और अच्छे नेता होने के साथ इनसे भी ज्यादा प्रभावी अब चुनाव जीतने वाली तरकीबें हो गई हैं। अमित शाह को बीजेपी इसीलिए पसंद करती है कि वे इन तरकीबों के बादशाह हैं।

त्रिपुरा में बीते 25 सालों में कांग्रेस, वामपंथियों को तोड़ नहीं पाई तो इसे पीछे हर बार यह बताया गया कि सीपीएम बूथ मैनेजमेंट बहुत जबर्दस्त करती है। इसका मतलब होता है कि वे बहुत छोटी इकाइयों को भी उतनी संजीदगी से लेते हैं और वहां के वोटरों को रिझाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। उनके नेता कम वोट वाले क्षेत्रों में बैठकें करते हैं। साथ ही उन अवसरों को तलाशते हैं कि उस खास सीट को जीतने के लिए उन्हें किन-किन बूथों को साधना होगा।

इस बार बीजेपी पूरी तैयारी से इस राज्य में उतरी थी। राज्य में 297 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। इनमें भाजपा के उम्मीदवार 51 सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे। बीजेपी ने कभी इतने बड़े पैमाने पर त्रिपुरा में चुनाव नहीं लड़ा। उनके सहयोगी दल आईपीएफटी ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से वो सात पर आगे चल रहे हैं। इससे बीजेपी की रणनीति का अंदाजा लगता है।

सत्तासीन वामपंथी दल, सीपीएम की पकड़ मजबूत है। करीब दो दशक से प्रदेश की सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री माणिक सरकार स्वच्छ व ईमानदार छवि के लिए जाने जाते हैं, लेकिन बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग पिछले कुछ समय से जिस प्रकार से जमीनी स्तर पर चुनाव प्रचार में लग थे, उससे सीपीएम को नुकसान पहुंचा।- त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र की प्रोफेसर चंद्रिका बसु मजूमदार 

‌त्रिपुरा की जनता को पसंद आए बीजेपी के ये वायदे

बीजेपी ने त्रिपुरा में युवाओं के लिए मुफ्त स्मार्टफोन, महिलाओं के लिए मुफ्त में ग्रेजुएशन तक की शिक्षा, रोजगार, कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसे वादे अपने चुनाव घोषणापत्र, 'त्रिपुरा के लिए विजन डॉक्यूमेंट' में किए हैं।

त्रिपुरा केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र की प्रोफेसर चंद्रिका बसु मजूमदार ने एक न्यूज एजेंसी से कहा था, "पूर्वोत्तर के राज्यों में त्रिपुरा अपेक्षाकृत शांत प्रदेश रहा है, लेकिन पिछले दिनों यहां जो दुष्कर्म व हत्या की घटनाओं से कानून-व्यवस्था को लेकर लोगों में असंतोष है, जिससे वे व्यवस्था परिवर्तन के लिए वोट डाल सकते हैं। इसके अलावा भाजपा ने इनसे विकास का वादा किया है।"

नरेंद्र मोदी के इन भाषणों का पड़ा असर

नरेंद्र मोदी ने त्रिपुरा में किए गए प्रचार में बड़ी साफगोईं से मुद्दे चुने। उन्होंने वहां एक बार भी हिन्दुत्व, यहां तक कि ज्यादा विकास संबंधी बातें नहीं कीं। पीएम मोदी ने अपने बयानों में कहा, "दोनों पार्टियों (सीपीएम, कांग्रेस) ने त्रिपुरा को बरबाद कर दिया है। इन पर भरोसा मत करें। कांग्रेस यहां अपने प्रत्याशी खड़े करके नाटक कर रही है क्योंकि कांग्रेस और वाम पार्टियों के बीच दिल्ली में दोस्ती हो चुकी है।"

प्रधानमंत्री ने कहा, "त्रिपुरा में चुनाव प्रचार के लिए कोई बड़ा कांग्रेस नेता नहीं आया क्योंकि उनके (कांग्रेस और मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) के बीच गोपनीय समझौता हो चुका है।"

सत्ता में आने के बाद भाजपा गरीबों का पैसा लूटने वाले महाघोटाले की जांच कराएगी।- मोदी ने त्रिपुरा के जनसमूह को संबोधित किया था

त्रिपुरा की वोटिंग में ही दिए थे संकेत

वाम शासित त्रिपुरा के 2,536,589 मतदाताओं में से 75 फीसदी से ज्यादा मतदाताओं 18 फरवरी के हुए चुनाव में  अपने मताधिकार इस्तेमाल किया था। जबकि छह मतदान केंद्रों पर मतदान को अमान्य घोषित करने के बाद अगले दिन जब मतदान कराया गया तो 90 फीसदी लोग वोट डालने पहुंचे।

‌त्रिपुरा में पहले भी साठ फीसदी से ज्यादा वोटिंग रही है। लेकिन छह मतदान केंद्रों पर 90 फीसदी लोगों का वोट डालने जाना। यह दर्शा रहा था कि लोग कुछ साबित करना चाहते हैं। जिस तरह से वाममोर्चा पिछले पांच विधानसभा चुनावों में अपराजेय रहा। उससे साफ नहीं हो रहा था कि यह बढ़ी हुई वोटिंग उनके पक्ष में हो रही है या विपक्ष में। 3 मार्च को यह जाहिर हो गया कि बढ़ी वोटिंग आम मान्यता के अनुसार सत्ता परिर्वतन के लिए हुआ था।

माकपा के दिग्गज नेता माणिक सरकार ने चार कार्यकाल पूरे कर लिए हैं। राज्य में सीपीएम ने 56 सीट पर प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी ने एक-एक सीट मोर्चे के घटक दलों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, फारवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के लिए छोड़ी थी। चौंकाने वाली बात कांग्रेस के साथ है। 

त्रिपुरा में हाशिए पर सिमटी कांग्रेस 59 सीटों पर लड़ रही थी। उसने काकराबोन सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारा है। वह आखिर बार फरवरी 1988 और मार्च 1993 के बीच सत्ता में रही थी। आखिरी बार त्रिपुरा में कांग्रेस 10 सीटें जीतने में सफल रही थी।

‌त्रिपुरा जीतने पर बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रियाएं

समाचार एजेंसी एएनआई से योगी आदित्यनाथ ने कहा- बीजेपी त्रिपुरा में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली है, मैं प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह जी और पार्टी के कार्यकर्ताओं को बधाई देना चाहूंगा। नागालैंड और मेघालय में भी हमारा प्रदर्शन ऐतिहासिक है। भारतीय राजनीति में यह महत्वपूर्ण दिन है।


राम माधव ने कहा, त्रिपुरा जीत के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेहनत। कार्यकर्ताओं की भूमिका प्रशंसनीय रही है।, त्रिपुरा की जनता ने परिवर्तन पर मुहर लगाई है।, त्रिपुरा के रुझानों से पार्टी संतुष्ट है। त्रिपुरा में बीजेपी 40 से ज्यादा सीटें जीतकर बनाएंगी सरकार।


त्रिपुरा के चारीलाम सीट से सीपीएम के उम्मीदवार रामेंद्र नारायण देबर्मा के निधन की वजह से इस सीट पर 12 मार्च को मतदान होगा। लेकिन अब इससे कोई खास फर्क पड़ते नजर नहीं आ रहा।

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