Chhattisgarh: हसदेव जंगल को बचाने के लिए आदिवासी करते रहे आंदोलन, सरकार ने काट डाले 10 हजार पेड़, जानिए पूरी कहानी

By शाहनवाज आलम | Published: October 1, 2022 02:35 PM2022-10-01T14:35:58+5:302022-10-01T14:54:58+5:30

सरकारी आंकड़ों की माने तो आने वाले 100 सालों के लिए छत्तीसगढ़ में कोयला की भरपूर मात्रा उपलब्ध है। पेड़ों की कटाई का विरोध हर दिन तेज होता जा रहा है। पेड़ों से लिपटकर आंदोलन करने वाले इस बात का विरोध कर रहे हैं कि सरकार और शासन के अधिकारी लगातार झूठ बोलकर ग्रामीणों को गुमराह कर रहे हैं।

Tribals kept on agitation to save Hasdev forest government cut 10 thousand trees for coal | Chhattisgarh: हसदेव जंगल को बचाने के लिए आदिवासी करते रहे आंदोलन, सरकार ने काट डाले 10 हजार पेड़, जानिए पूरी कहानी

फोटोः शाहनवाज आलम

Highlightsकोल ब्लॉक के लिए हो रही है हसदेव अरण्य जंगल की कटाई।कांग्रेस और बीजेपी की जुबानी जंग के बीच करीब 10 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है।बताया जा रहा है कि केवल छत्तीसगढ़ में ही पूरे देश का मौजूद कोयला भंडार का करीब 21 % कोयला है।

रायपुर : छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल को खत्म कर कोल ब्लॉक शुरू करने का मामला दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। हजारों पुलिस जवानों की तैनाती में हसदेव के जंगलों की कटाई हो रही है। हसदेव अरण्य में कोयला निकालने को लेकर जंगल की कटाई हो रही है। इसका विरोध ग्रामीण कई वर्षों से कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस और बीजेपी की जुबानी जंग और आरोप-प्रत्यारोप के बीच करीब 10 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है। पेड़ों की कटाई के पीछे वजह ये बताई जा रही है कि केवल छत्तीसगढ़ में ही पूरे देश का मौजूद कोयला भंडार का करीब 21 % कोयला है। वहीं हसदेव अरण्य में छत्तीसगढ़ के कोयला भंडार का 10% हिस्सा माना जाता है।

सरकारी आंकड़ों की माने तो आने वाले 100 सालों के लिए छत्तीसगढ़ में कोयला की भरपूर मात्रा उपलब्ध है। पेड़ों की कटाई का विरोध हर दिन तेज होता जा रहा है। पेड़ों से लिपटकर आंदोलन करने वाले इस बात का विरोध कर रहे हैं कि सरकार और शासन के अधिकारी लगातार झूठ बोलकर ग्रामीणों को गुमराह कर रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि 95 हजार पेड़ों की ही कटाई की जाएगी। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि करीब तीन लाख पेड़ों की बलि दी जाएगी।  

हसदेव के जंगलों में 23 कोयला खदान

पर्यावरण रक्षक और अंबिकापुर निवासी हिमेश सोलंकी बताते है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव जंगल में 23 कोयला खदानें हैं। जबकि पूरे छत्तीगढ़ में कुल 184 कोयला खदानों की जानकारी है। हसदेव अरण्य 1,70,000 हेक्टेयर में फैला हुआ है। यहां गोंड, ओरांव, लोहार जैसी आदिवासी जातियों के 10,000 से ज्यादा लोग निवास करते हैं।

2013 में मिली थी खनन की मंजूरी

सूत्रों की माने तो हसदेव अरण्य में खनन की मंजूरी तत्कालीन बीजेपी सरकार के रहते हुए 2013 में ही दी गई थी। खनन के इस मंजूरी में लाखों पेड़ों की कटाई की भी मंजूरी शामिल थी। उस वक्त से लेकर अब तक करीब 9 सालों में 80 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है। अडानी समूह द्वारा संचालित कोल ब्लॉक के लिए पेड़ों की कटाई को लेकर भाजपा और कांग्रेस के नेता आमने-सामने हैं। भाजपा ने परसा क्षेत्र में पहुंचकर प्रदर्शन किया और पेड़ों की कटाई के लिए कांग्रेस को दोषी बता रही है को वहीं कांग्रेस ने कहा है कि खदान को मंजूरी बीजेपी की सरकार ने ही दी थी। 

कांग्रेस दे चुकी है सफाई 

पर्यावरण प्रेमी और आदिवासियों के बढ़ते विरोध को देखते हुए प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने अपना लिखित में बयान जारी कर अपना पक्ष रखा है। कांग्रेस का कहना है कि हसदेव अरण्य को 2011 में बीजेपी की सरकार द्वारा अनुमति प्रदान की गई थी। इसके तहत परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए 43 हेक्टेयर में वनों की कटाई का काम चल रहा है। राज्य के मंत्री टीएस सिंहदेव के प्रयास से हसदेव अरण्य क्षेत्र को बचाने के लिए शेष तीन खदानों के लिए वन काटने की अनुमति निरस्त कर दी है। कांग्रेस ने इसके साथ ही बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा है कि, बीजेपी केवल दिखावा कर रही है। खदान को रोकने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, जो कि बीजेपी की है। लेकिन बीजेपी केवल लोगों को गुमराह कर रही है।  

कुल 2711 हेक्टेयर में कोल उत्खनन की मंजूरी

हसदेव के जंगल को बचाने के लिए आदिवासी पिछले कई सालों से हड़ताल, प्रदर्शन कर रहे हैं। हसदेव जंगलको बचाने का ट्रेंड पूरे देश के साथ ही विदेशों तक भी चला है। लेकिन इन सब के बाद भी पहले चरण में परसा कोल ब्लॉक में 841 हेक्टेयर जंगल की भूमि से पेड़ों की कटाई और दूसरे चरण में परसा ईस्ट-केते-बासेन कोल ब्लॉक में कुल 2711 हेक्टेयर क्षेत्र में कोल उत्खनन की मंजूरी दी गई थी। इसमें 1898 हेक्टेयर भूमि वनक्षेत्र है।

Web Title: Tribals kept on agitation to save Hasdev forest government cut 10 thousand trees for coal

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