गुजरात चुनाव में आदिवासियों पर सबकी नजर,आम आदमी पार्टी का सरकार बनने पर PESA एक्ट सख्ती से लागू करने का ऐलान, जानिए क्या है ये कानून
By मेघना सचदेवा | Published: August 10, 2022 11:54 AM2022-08-10T11:54:25+5:302022-08-10T11:54:25+5:30
गुजरात चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने गुजरात की आदिवासी जनता के लिए 6 गारंटी का ऐलान किया है। इसमें आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर पेसा एक्ट (PESA) लागू करने की बात भी कही गई है।
राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू की जीत एनडीए के लिए आने वाले चुनावों में आदिवासी समुदाय के सपोर्ट की बड़ी वजह बन सकती है। खासकर बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाले गुजरात में इसका असर दिख सकता है। वहीं आदिवासी समुदाय को साधने के लिए अब आम आदमी पार्टी ने भी कवायद तेज कर दी है।
चुनावी राज्य में लगातार दौरा कर रहे केजरीवाल ने गुजरात की आदिवासी जनता के लिए 6 गारंटी का ऐलान किया है। जिसमें आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर पेसा एक्ट (PESA Act) लागू करने की बात भी कही गई है। ये पेसा एक्ट क्या है आम आदमी पार्टी कैसे इस एक्ट को लागू करने के वादे से गुजरात के आदिवासियों को साधने में जुट गई है और अब तक इस एक्ट को लागू करने में क्या दिक्कतें आई हैं। जानिए
आदिवासियों के लिए छह सूत्री गारंटी का ऐलान
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रविवार को एक बार फिर से गुजरात की जनता के बीच नजर आए। पिछले कुछ महीनों ने गुजरात के लिए कई बड़े ऐलान करने के बाद केजरीवाल ने छोटा उदयपुर जिले में आदिवासियों के लिए छह सूत्री गारंटी का ऐलान किया है। इसी के साथ साथ ही पेसा एक्ट को सख्ती से लागू करने की घोषणा की है।
पेसा एक्ट के तहत अनुसूचित क्षेत्र वो क्षेत्र हैं जो जिनके बारे में संविधान के आर्टिकल 244 में लिखा है। इसके मुताबिक असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम के अलावा इन अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के लिए संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत विशेष प्रावधान किए जाऐं।
पेसा एक्ट क्या है ?
इस एक्ट को 1996 में लागू किया गया था। इसे पंचायत एक्सटेंशन टू दि शेड्यूल एरियाज एक्ट भी कहा जाता है। इस एक्ट को लागू करने का मकसद था आदिवासियों का विकास और उन्हें जंगल के संसाधनों का समुचित उपभोग करने का अधिकार देना। पेसा एक्ट के तहत अनुसूचित क्षेत्रों या आदिवासी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए ग्राम सभा के द्वारा स्वशासन को बढ़ावा दिया जाएगा। यह कानून आदिवासी समुदाय को स्वशासन की खुद की प्रणाली पर आधारित शासन का अधिकार प्रदान करता है। यह एक्ट ग्राम सभा को विकास योजनाओं को मंजूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है।
10 राज्य ऐसे हैं जहां पाँचवीं अनुसूची पूरी तरह या कुछ जिलों में लागू होती है। इसमें आंध्रप्रदेश,छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िसा, राजस्थान, तेलंगाना, शामिल हैं। पेसा एक्ट बनने के बाद से 6 राज्यों में इस एक्ट के तहत नियम अधिसूचित किए गए।
क्या गुजरात में लागू हुआ है पेसा एक्ट ?
गुजरात में 2017 में इस नियमों को अधिसूचित किया किया गया। इसे 14 जिलों के 53 आदिवासी तालुका के 2584 ग्राम पंचायतों के तहत 4503 ग्राम सभाओं में लागू किया गया। जानकारी के मुताबिक पिछले विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन सीएम विजय रूपानी ने छोटा उदयपुर में इसकी घोषणा की थी। जबकि पांच साल बाद वर्तमान सीएम भूपेंद्र पटेल ने मंगलवार को दाहोद में एक रैली में दावा किया कि सभी आदिवासियों को अधिनियम के तहत कवर किया गया है और इसके प्रावधानों के तहत अधिकार दिया गया है। हालांकि कानूनी विशेषज्ञों सीएम भूपेंद्र पटेल की बातों से सहमत नजर नहीं आते उनके मुताबिक अधिनियम को सही तरीके से लागू नहींं किया गया है।
नवंबर 2020 की बात कर ली जाए तो स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए आस पास के आदिवासी गावों का मुआयना करवाया गया जिसे साफ तौर पर पंचायत के फैसलों के उल्लघंन के तौर पर देखा गया। वहीं दूसरी ओर जिला प्रशासन की तरफ से 121 गावों के जंगलों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की सूची में रखने का फैसला किया। जबकि राज्स्व विभाग ने इन जंगलों पर राज्य सरकार का अधिकार होने का दावा भी किया । हालांकि बाद में विरोध के बाद राज्य सरकार के अधिकार के दावे को वापस लिया गया। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की सूची में अब भी 6 गावों के जंगल हैं।
इसी साल मार्च में केंद्र सरकार को पार टापी नर्मदा नदी लिंकिंग प्रोजेक्ट (Par-Tapi Narmada) को रोकना पड़ा था क्योंकि आदिवासियों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
गुजरात चुनाव में गेम चेंजर बन सकते हैं आदिवासी
गुजरात की बात की जाए तो यहां 8.1 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों की आबादी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से सटे बॉर्डर इलाकों में आदिवासियों की अच्छी खासी संख्या है। जबकि राज्य में करीब 11 बड़ी जनजातियां हैं जिनमें सबसे ज्यादा भील है। राज्य की कुल जनजातीय आबादी में 48 प्रतिशत हिस्सेदारी भील की है इसलिए सभी पार्टियों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर है।