जिनके कार्यकाल में चुनावों को 'शेषन बनाम नेशन' कहा जाने लगा
By रोहित कुमार पोरवाल | Published: November 11, 2019 04:44 AM2019-11-11T04:44:31+5:302019-11-11T04:44:31+5:30
उनसे पहले तक भारतीय निर्वाचन आयोग को भारत सरकार के इशारे पर चलने वाले आयोग के तौर पर जाना जाता था लेकिन शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान एक अलग ही तस्वीर गढ़ी।
भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्हें उनकी निर्भीक, स्पष्ट और साफ-सुथरी छवि के लिए हमेशा जाना जाता रहेगा। 1992 में भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे। उनसे पहले तक भारतीय निर्वाचन आयोग को भारत सरकार के इशारे पर चलने वाले आयोग के तौर पर जाना जाता था लेकिन शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान एक अलग ही तस्वीर गढ़ी।
चुनाव आयोग को लेकर एक बार उन्होंने खुद ही एक साक्षात्कार में अपनी बातें कही थीं। बीबीसी के मुताबिक, शेषन ने साक्षात्कार में कहा था, ''चुनाव आयोग की स्वायत्तता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि मेरे एक पूर्ववर्ती ने सरकार को पत्र लिख कर कहा था कि उन्हें 30 रुपये की मंजूरी दी जाए ताकि वो एक किताब खरीद सकें। उन दिनों चुनाव आयोग के साथ सरकार के एक पिछलग्गू जैसा व्यवहार किया जाता था।"
मुझे याद है कि जब मैं कैबिनेट सचिव था तो प्रधानमंत्री ने मुझे बुला कर कहा कि मैं चुनाव आयोग को बता दूं कि मैं फलां-फलां दिन चुनाव करवाना चाहता हूं। मैंने उनसे कहा, हम ऐसा नहीं कर सकते। हम चुनाव आयोग को सिर्फ ये बता सकते हैं कि सरकार चुनाव के लिए तैयार है।"
"मुझे याद है कि मुझसे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त, कानून मंत्री के दफ्तर के बाहर बैठ कर इंतजार किया करता था कि उसे कब अंदर बुलाया जाए। मैंने तय किया कि मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। हमारे दफ्तर में पहले सभी लिफाफों पर लिख कर आता था, चुनाव आयोग, भारत सरकार। मैंने उन्हें साफ कर दिया कि मैं भारत सरकार का हिस्सा नहीं हूं।"
टीएन शेषन के कार्यकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तक उनकी सख्ती के घेरे में आए। शेषन ने पहली बार बिहार चार चरणों में चुनाव कराए थे। उन्होंने चारों चरण की हर बार तारीख बदल दी थी। बिहार के इतिहास में वे सबसे लंबे चुनाव माने जाते हैं।
शेषन ने अपने अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय मतदाताओं को सबसे बड़ी ताकत दी। उन्होंने मतदाता पहचान पत्र बनवाए। उस वक्त नेताओं ने पहचान पत्र बनने में आने वाले खर्चे को लेकर चिंता व्यक्त की थी लेकिन शेषन ने साफ कहा था कि चुनाव के लिए जो जरूरी है, वह किया जाएगा।
यहीं नहीं, चुनावों के दौरान चुनाव आचार संहिता का सख्ती से पालन कराना, शराब वितरण रोकना, चुनाव में धार्मिक और सांप्रदायिक हथकंडों के द्वारा मतदाताओं को न लुभाने देना जैसी तमाम सराहनीय कार्य टीएन शेषन ने कराए।
उनके कार्यकाल के दौरान कुछ राजनेताओं और मीडिया आलोचकों को उनकी सख्ती रास नहीं आ रही थी। आलोचकों ने उन्हें अल-शेषन (अल्सेशियन) तक कहना शुरू कर दिया था। यहां तक कि उनके कार्यकाल में चुनावों को 'शेषन बनाम नेशन' कहा जाने लगा।