Tilka Manjhi: भारत की आजादी की कहानी जब-जब सुनी और पढ़ी जाएगी, तो इसमें तिलका मांझी (Tilka Manjhi) का भी जिक्र जरूर आएगा। तिलका मांझी उन रणबांकुरों में शामिल हैं जिन्होंने उस समय स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत की जब लोगों को अहसास ही नहीं था कि वे गुलामी की किस दलदल में फंसते जा रहे हैं।
इतिहास में 1857 के गदर को भारत की आजादी के लिए पहले स्वाधीनता संग्राम के तौर पर याद किया जाता है। ये वो क्रांति थी जिससे पहली बार आजादी के लिए आवाज बुलंद होनी शुरू हुई। हालांकि, हम में से कई लोग ये नहीं जानते होंगे अग्रेजों की हुकुमत के खिलाफ जंग इससे करीब 80 साल पहले ही शुरू हो गई थी।
तिलका मांझी: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले 'सेनानी'
तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में तिलकपुर नाम के गांव में एक संथाल परिवार में हुआ। ये वो दौर था जब अंग्रेज तमाम तरीकों से भारत के चप्पे-चप्पे पर अपना व्यापार और कब्जा जमाने की कोशिश में जुटे थे। इसके लिए अंग्रेज साम-दाम, दंड-भेद सहित सभी तरकीब लगा रहे थे।
अंग्रेजों की नजर गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती और जंगली संसाधनों पर भी थी। यहीं से आदिवासियों से अंग्रेजों का संघर्ष शुरू हुआ और तिलका इसका चेहरा बन कर उभरे।
तिलका मांझी- अंग्रेजों से गोरिल्ला युद्ध
तिलका ने अपने लोगों के लिए संघर्ष शुरू किया तो कई मुश्किलों का सामना उन्हें करना पड़ा। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपने लोगों को जाति और धर्म से ऊपर उठकर एकजुट होने के लिए प्रेरित किया।
साथ ही तिलका अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेज़ी शासन का खजाना लूटकर आम गरीब लोगों में बांट दिया करते थे। तिलका ने अपने अभियान के दौरान कई बार अंग्रेजों और उनके चापलूसों पर हमले किए।
तिलका के बढ़ते कद के बाद अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ने की कई बार योजनाएं बनाई। इसी दौरान 13 जनवरी 1784 में तिलका ने घोड़े पर सवार एक अंग्रेज कलेक्टर ‘अगस्टस क्लीवलैंड’ को अपने जहरीले तीर का निशाना बनाया और मार गिराया। अंग्रेज इससे और भड़क गए और तिलका को पकड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी।
फांसी पर झूल गए जब तिलका माांझी
अंग्रेज लगातार कोशिश करते रहे लेकिन तिलका हमेशा ठिकाने बदलते हुए उनसे बचने में कामयाब रहते। अंग्रेजों ने हालांकि कई कोशिशों के बाद आखिरकार तिलका मांझी को भागलपुर के पास पकड़ लिया।
इसके बाद तिलका मांझी को 1785 को बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गई। अंग्रेजों को लगा था कि तिलका की मौत के बाद वे निश्चिंत रह जाएंगे।
हालांकि बिहार-झारखंड के पहाड़ों और जंगलों से शुरू हुआ ये संग्राम आगे जाकर और बढ़ा और आखिरकार कई तरह के संघर्ष के बाद भारत आखिरकार 1947 में आजाद हो सका।
दिलचस्प बात ये भी है कि जिस समय तिलका मांझी ने अपने प्राणों की आहुति दी, उस समय मंगल पांडे का जन्म भी नहीं हुआ था, जिन्होंने प्रथन स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।