"वो बाबरी विवाद के फैसले में किये गये 'पूजा स्थल अधिनियम, 1991' के जिक्र को न भूले", ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदू प्रार्थनाओं को रोकने से इनकार पर कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 2, 2024 08:24 AM2024-04-02T08:24:21+5:302024-04-02T08:34:01+5:30

एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2019 में दिये अयोध्या-बाबरी मस्जिद फैसले में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के उल्लेख का जिक्र करते हुए कहा कि वह अदालत को उसी के फैसले की मिसाल को याद दिलाने के लिए बाध्य हैं।

"They should not forget the reference to the 'Places of Worship Act, 1991' made in the Babri dispute verdict", Owaisi said on Supreme Court's refusal to stop Hindu prayers at Gyanvapi Masjid | "वो बाबरी विवाद के फैसले में किये गये 'पूजा स्थल अधिनियम, 1991' के जिक्र को न भूले", ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदू प्रार्थनाओं को रोकने से इनकार पर कहा

फाइल फोटो

Highlightsअसदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी विवाद में दिये आदेश पर प्रतिक्रिया दीसुप्रीम कोर्ट अयोध्या-बाबरी मस्जिद फैसले में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम के जिक्र को न भूलेओवैसी ने कहा कि हम अदालत को उसके ही फैसले की मिसाल को याद दिलाने के लिए बाध्य हैं

नई दिल्ली: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बीते सोमवार को मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिंदू प्रार्थनाओं की अनुमति देने वाले निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त की।

समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति की याचिका पर मस्जिद के दक्षिणी तहखाने के भीतर हिंदू भक्तों द्वारा चल रही प्रार्थनाओं को रोकने से इनकार कर दिया, जबकि उसी के द्वारा मस्जिद परिसर के अंदर हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों पर "यथास्थिति" का आदेश दिया गया था।

एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2019 में दिये अयोध्या-बाबरी मस्जिद फैसले में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के उल्लेख का जिक्र करते हुए कहा कि वह अदालत को उसी के फैसले की मिसाल को याद दिलाने के लिए बाध्य हैं।

ओवैसी ने कहा, "पूजा स्थल अधिनियम 1991 स्पष्ट शब्दों में कहता है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र वही रहेगा जो उस दिन मौजूद था। पूजा स्थल अधिनियम भारतीय संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को लागू करने के लिए एक गैर-अपमानजनक दायित्व लगाता है। हमारे संवैधानिक सिद्धांतों की मौलिकता उसके धर्मनिरपेक्षता में है। पूजा स्थल अधिनियम इसी से संबंधित कानून है, जो हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को संरक्षित करता है।”

मालूम हो कि बीते सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। सभी जजों ने एक स्वर में कहा कि मुस्लिम और हिंदू दोनों पक्ष मस्जिद परिसर के अंदर अपने संबंधित धार्मिक अनुष्ठानों को "बिना किसी बाधा" के आयोजित कर रहे हैं। इसलिए ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति की याचिका के आधार पर हम हिंदू पक्ष को पूजा-पाठ से नहीं रोक सकते हैं।"

चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, “कोर्ट को बताया गया कि तहखाने में प्रवेश दक्षिणी तरफ से है जबकि मस्जिद तक पहुंच उत्तरी तरफ से है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वाराणसी की जिला अदालत और इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशों के बाद मुस्लिम समुदाय द्वारा नमाज़ निर्बाध रूप से अदा की जा रही है और हिंदू भक्तों द्वारा पूजा केवल मस्जिद के तहखाने तक ही सीमित है, इसे बनाए रखना उचित होगा, यथास्थिति बनाए रखें ताकि दोनों समुदायों को उपरोक्त शर्तों के अनुसार धार्मिक पूजा करने में सक्षम बनाया जा सके।”

Web Title: "They should not forget the reference to the 'Places of Worship Act, 1991' made in the Babri dispute verdict", Owaisi said on Supreme Court's refusal to stop Hindu prayers at Gyanvapi Masjid

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