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वर्ष 2020: महामारी के दौरान न्यायपालिका वर्चुअल सुनवाई करने और कानून मंत्रालय इसके लिये सुविधायें मुहैया कराने में व्यस्त रहा

By भाषा | Updated: December 31, 2020 20:34 IST

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नयी दिल्ली, 31 दिसंबर कोविड-19 महामारी से उत्पन्न स्थिति में वर्ष 2020 के दौरान जहां न्यायपालिका ने वीडियो कांफ्रेंस से मुकदमों की सुनवाई करके न्याय चक्र को निर्बाध चलाये रखा वहीं विधि एवं न्याय मंत्रालय इस स्थिति से निबटने में आ रही चुनौतियों से निबटने और इसके लिये जरूरी सुविधायें उपलब्ध कराने में व्यस्त रहा ताकि न्याय व्यवस्था में बाधा नही आये ।

कोविड-19 महामारी के दौरान मुकदमों की डिजिटल माध्यम से सुनवाई की सुविधा मुहैया कराने के लिये उच्चतम न्यायालय की ई-समिति और कानून मंत्रालय के न्याय विभाग ने इस वर्ष देश भर में 3,288 अदालत परिसरों में से 2,506 अदालत परिसरों में वीडियो कांफ्रेंस केबिन स्थापित करने के लिये आवश्यक धन उपलब्ध कराये।

अदालतों में वीडियो कांफ्रेंस केबिन स्थापित करने के लिये सितंबर महीने में 5.21 करोड़ रूपए उपलब्ध कराये गये और इसके बाद अक्टूबर महीने में 28.886 करोड़ रूपए उपलब्ध कराये गये ताकि वीडियो कांफ्रेंस सुविधा के लिये आवश्यक उपकरण और इससे संबंधित दूसरे सामान खरीदे जा सकें।

कोविड-19 महामारी के दौरान जहां अदालतें मुकदमों की आन लाइन सुनवाई कर रही थीं वहीं सरकार ने उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में वीडियो कांफ्रेंस सुविधा उपलब्ध कराने के लिये करीब नौ करोड़ रूपए खर्च करके वीडियो कांफ्रेंस के 1500 अतिरिक्त लाइसेंस प्राप्त किये। लाइसेंस प्राप्त करने की प्रक्रिया पूरी हो गयी है और अब इन्हें स्थापित करने का काम चल रहा है।

वीडियो कांफ्रेंस सुविधा के साफ्टवेयर का कानूनी और इससे संबंधित कार्यो में इस्तेमाल के लिये इन लाइसेंस की आवश्यकता होती है।

कानून मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कोरोना वायरस पर अंकुश पाने के लिये राष्ट्र व्यापी लाकडाउन लागू होने के दिन से 28 अक्टूबर तक देश के उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों ने 49.67 लाख से ज्यादा मामलों की डिजिटल माध्यम से सुनवाई की।

कोविड-19 को विश्व व्यापी महामारी घोषित किये जाने के बाद केन्द्र ने 25 को राष्ट्र व्यापी लाकडाउन लगाया था ताकि इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। लाकडाउन आठ जून को खत्म हुआ औ इसके बाद धीरे धीरे प्रतिबंधों को कम किया गया।

भारत में कारोबार करने के अनुकूल माहौल में सुधार के अभियान में वर्ष 2020 विधि एवं न्याय मंत्रालय पंचाट कानून में सुधार के लिये अध्यादेश लाया। मध्यस्थम और सुलह कानून में संशोधन के लिये नवंबर में जारी अध्यादेश यह सुनिश्चित करता है कि छल या भ्रष्ट तरीके से प्रेरित मध्यस्था समझौते में मध्यस्था के फैसले के अमल पर बिना शर्त रोक के अनुरोध के लिये सभी हितधारकों को अवसर मिलेगा।

इसी तरह, मध्यस्थम और सुलह कानून , 1996 में इस अध्यादेश के माध्यम से संशोधन करके इसकी 8वीं अनुसूची खत्म की जिसमें मध्यस्थों की मान्यता के लिये आवश्यक योग्यताओं का प्रावधान था।

इन प्रावधानों की आलोचना हो रही थी क्योंकि इसमें प्रदत्त शर्ते विदेशी मध्यस्थों की सेवाओं का लाभ प्राप्त करने में भारत के लिये बाधक बन रहे थे।

अब प्रस्तावित मध्यस्थम परिषद द्वारा बनाये जाने वाले नियमों के तहत मध्यस्थों की मान्यता के लिये योग्यता निर्धारित होगी।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी महीने में 22वें विधि आयोग के गठन को मंजूरी दी लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण उपलब्ध चुनौतियों की वजह से इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो सकी।

विधि आयोग अनेक पेचीदगी वाले कानूनी विषयों पर मंथन करने के बाद सरकार को अपने सुझाव और सिफारिशें देता है। विधि आयोग का कार्यकाल तीन साल का होता है। देश के 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था।

कानून मंत्रालय ने विशिष्ट राहत संशोधन कानून, 2018 के तहत बुनियादी परियोजनाओं के करारों से संबंधित विवादों को हल करने के लिये राज्यों से विशेष अदालतें स्थापित करने का अनुरोध किया गया। मंत्रालय का कहना था कि भारत और राज्यों में ‘कारोबार करने आसानी की रैंकिंग’ में सुधार के लिये यह बहुत ही महत्वपूर्ण था।

मंत्रालय ने इलाहाबाद, कर्नाटक और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों का उदाहरण देते हुये कहा कि दूसरे उच्च न्यायालयों को भी इस तरह के विवादों की सुनवाई कर रही विशेष अदालतों के लिये एक विशेष दिन निर्धारित किया जाये।

विशिष्ट राहत संशोधन कानून, 2018 की धारा 20बी में विशेष अदालतों का प्रावधान है। उच्च न्यायालयों ने बुनियादी परियोजनाओं से संबंधित विवादों में विशिष्ट राहत से संबंधित मामले पर विचार के लिये प्रत्येक सप्ताह एक दिन निर्धारित किया है। लेकिन कानून मंत्रालय चाहता है कि इन अदालतों के काम के लिये विशेष दिन निर्धारित हों और उसने इस संबंध में सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को पत्र लिखे हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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