जनहित याचिका दायर करने को आधार बनाकर सुरक्षा मांगने का राज्य सरकार ने किया विरोध

By भाषा | Published: August 4, 2021 10:20 PM2021-08-04T22:20:15+5:302021-08-04T22:20:15+5:30

The state government opposed the demand for security on the basis of filing a public interest litigation | जनहित याचिका दायर करने को आधार बनाकर सुरक्षा मांगने का राज्य सरकार ने किया विरोध

जनहित याचिका दायर करने को आधार बनाकर सुरक्षा मांगने का राज्य सरकार ने किया विरोध

लखनऊ, चार अगस्त इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में राज्य सरकार ने कहा कि यदि इस बात पर सुरक्षा मांगी जानी लगेगी कि याची किसी अदालत में फौजदारी की वकालत करता है या जनहित याचिकायें दाखिल करता है तो फिर तो ऐसे सभी वकीलेां को सुरक्षा देनी पड़ेगी।

सरकार ने बुधवार को लखनऊ खंडपीठ में वकालत करने वाले एक अधिवक्ता द्वारा सरकारी खर्चे पर सुरक्षा प्रदान करने की मांग का जोरदार विरेाध किया। इस पर उच्च न्यायालय ने न केवल वकील की याचिका खारिज कर दी, अपितु सरकार को कई दिशा निर्देश देकर कहा कि वह सरकारी सुरक्षा देते समय उनका पालन सुनिश्चित करे।

न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी एवं न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सुरक्षा केवल वीवीआईपी स्टेटस के लिए नहीं दी जा सकती, इसके लिए खतरा वास्तविक होना चाहिए और यह जानने के लिए सुरक्षा समिति को खुफिया इकाई एवं संबधित पुलिस की रिपेार्ट एवं व्यक्ति का इतिहास जरूर देखना चाहिए।

याची अधिवक्ता अभिषेक तिवारी ने याचिका दायर कर अप्रैल 2021 में पारित सरकार के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उच्च स्तरीय समिति के सुझाव के आधार पर उसकी अंतरिम सुरक्षा खत्म कर दी गयी थी । याची अधिवक्ता का तर्क था कि वह उच्च न्यायालय में फौजदारी की वकालत करता है, तथा जनहित याचिकायें दाखिल करता है अतः उसकी जान को खतरा रहता है और इसीलिए उसे सरकारी सुरक्षा प्रदान की जाये।

याचिका का विरेाध करते हुए सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता अमिताभ राय ने तर्क दिया कि याची के तर्क का मानने का अर्थ है कि सभी फौजदारी के अधिवक्ताओं को सुरक्षा मिलनी चाहिए, जो कि संभव नहीं है।

उन्होंने कहा कि याची ने कोई दस्तावेज नहीं दिखाया जिससे लगे कि उसे जान का खतरा है। उन्होंने कहा कि याची का वार्षिक टैक्स रिटर्न चार लाख 50 हजार रूपये है, उसे पहले दस प्रतिशत खर्चे पर जौनपुर से एक गनर मिला हुआ था, अब उसे लखनऊ से एक गनर चाहिए जबकि उसे कोई खतरा नहीं होने की रिपेार्ट है।

याचिका को खारिज करते हुए अदालत की खंडपीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति से आपसी दुश्मनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई पैमाना नही हो सकती है। अदालत ने कहा कि प्राइेवट व्यक्ति को सरकारी सुरक्षा नहीं देनी चाहिए, जब तक कि कोई अति महत्वपूर्ण आवश्यकता नहीं हो। सरकार को ऐसे लेागो को सुरक्षा प्रदान कर उनका कोई विशिष्ट वर्ग बनाने की आवश्यकता नहीं है।

यह कहते हुए अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को आदेश दिया कि इस फैसले की प्रति मुख्य सचिव , अपर मुख्य सचिव गृह व डीजीपी केा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भेजा जाये।

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Web Title: The state government opposed the demand for security on the basis of filing a public interest litigation

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