दिल्ली की निर्भया के दोषी दरिंदों की फांसी सोमवार को फिर टल गई है। उधर, दो और निर्भया के परिजन अपनी बच्चियों पर वहशी अत्याचार करने वाले दरिंदों को फांसी पर लटकाए जाने का इतजार कर रहे हैं। निर्भया के गुनहगार 2012 से फांसी की सजा से बचते आ रहे हैं।
जबिक तमिलनाडु में थेनी एवं कोयंबतूर जिले में रेप व हत्या के दो आरोपी एक दशक से फांसी के फंदे से बच रहे हैं। निर्भया के दोषियों की तरह ये दरिंदे भी कानूनी प्रावधानों की डोर थामे हुए हैं। तमिलनाडु के कोयंबतूर के पास 29 अक्टूबर 2010 की सुबह स्कूल जाते वक्त 10 वर्षीय बच्ची तथा उसके सात साल के भाई का अपहरण कर दो लोगों ने रेप किया। मोहनकृष्णन और मनोहरन नामक दो दरिंदों ने बच्ची तथा उसके मासूम भाई को दूध में जहर देकर मार डाला और उनकी लाश एक नहर में फेंक दी।
मोहन को तो पुलिस ने उसी दिन गिरफ्तार कर लिया, जबकि मनोहरन 31 अक्टूबर को पकड़ा गया। 9 नवंबर को जब दोनों को घटनास्थल पर ले जाया जा रहा था, तब मोहनकृष्णन ने एक पुलिसकर्मी का हथियार छीनने का प्रयास किया और मारा गया। सत्र न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने मनोहरन की मौत की सजा को कायम रखा, मगर वह अभी भी फांसी के फंदे से दूर है।
सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष दो अगस्त को मनोहरम की फांसी की सजा को बरकरार रखा, लेकिन पुनर्विचार याचिका दायर करने का मौका देने के लिए डेथ वारंट पर 16 अक्टूबर 2019 तक रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर 2019 को मनोहरन की पुनर्विचार याचिका खारिज कर उसे फांसी देने का रास्ता साफ कर दिया। मनोहरन की फांसी पर लटकने का नया डेथ वारंट जारी हुआ जिसमें फांसी देने की तारीख दो दिसंबर 2019 तक की गई।
इसी बीच मद्रास हाईकोर्ट ने डेथ वारंट तामिल करने पर छह हफ्ते के लिए रोक लगा दी। अदालत चाहती थी कि राज्यपाल के पास दया याचिका पेश करने के लिए मनोहरन को मौका दिया जाए। अब तक मनोहरन बचा हुआ है।
रेप के बाद छात्रा की ले ली थी जान
दूसरा मामला भी तमिलनाडु के थेनी जिले का है। वारदात 2011 की है जब दिवाकर नामक दरिंदे ने एक कॉलेज छात्र और उसके मित्र की हत्या कर दी। उसने रेप के बाद छात्रा की जान ले ली। उसके मित्र को उसने पहले ही मार दिया था। थेनी के प्रधान जिला सत्र न्यायाधीश ने सात वर्ष की मुकदमेबाजी के बाद मार्च 2018 में दिवाकर को फांसी की सजा सुनाई। मद्रास हाईकोर्ट ने 13 मार्च 2019 को सत्र न्यायालय के फैसले को कायम रखा। दिवाकर को फांसी देने के लिए 22 अप्रैल की तारीख तय हुई और डेथ वारंट जारी हो गया। सुप्रीम कोर्ट में मामला गया। सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल 2019 को डेथ वारंट पर स्थगनादेश दे दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी को अपील करने का अधिकार मिलना चाहिए। उसके बिना उसे फांसी देना कानूनन गलत है। यह दरिंदा आजतक जिंदा है। थेनी तथा कोयंबतूर अपराध के पीड़ित परिजनों को निर्भया के परिजनों की तरह ही न्याय का इंतजार है।