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सतत किसान क्रांति: तमाम तरह की बाधाओं के बावजूद कायम रही एकजुटता

By भाषा | Updated: November 19, 2021 18:52 IST

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(कुणाल दत्त)

नयी दिल्ली, 19 नवंबर पिछले एक साल से दिल्ली के सिंघू बॉर्डर क्षेत्र में बड़ी संख्या में डेरा डाले किसान कड़ाके की ठंड, मानसून की बारिश, कोविड महामारी के डर और "रुकावट पैदा करने" के आरोपों का भी सामना करते रहे लेकिन एकजुटता की भावना ने उन्हें सभी बाधाओं के खिलाफ डटे रहने में कामयाबी दिलाई।

दिल्ली और हरियाणा के बीच स्थित सिंघू बॉर्डर तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग करने वाले किसानों के विरोध का केंद्र था, और वहां से आंदोलन धीरे-धीरे अन्य जगहों तक फैल गया।

शुक्रवार की सुबह, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि उनकी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला किया है तो प्रदर्शन स्थलों पर मौजूद किसानों ने राहत की सांस ली।

आंदोलन का का एक साल पूरा होने से महज कुछ दिन पहले सरकार ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की।

सवाल उठता है कि जो किसान अपने परिवारों और घरों को छोड़कर लगभग एक साल से इस आंदोलन में शामिल रहे, वे आखिर इतने दिन तक कैसे टिके रहे। इसका संभावित उत्तर भोजन की निरंतर आपूर्ति, एक शानदार भावना और स्वयंसेवियों की सेना है जिसने आंदोलन को कमजोर नहीं पड़ने दिया।

इस लंबी लड़ाई का केंद्रबिंदु सड़कों पर रहा, लेकिन आंदोलनकारी किसानों को निरंतर भोजन उपलब्ध कराने का केंद्रबिन्दु मंच के पीछे बने रसोईघरों में जलती आग रही।

संबंधित कृषि कानूनों के विरोध में किसान ‘दिल्ली चलो’ आह्वान के तहत 26 नवंबर 2020 को सिंघू बॉर्डर पहुंचे थे जिनमें से ज्यादातर किसान पंजाब से हैं।

दिल्ली-हरियाणा सीमा पर लंबे समय से मंच पर उग्र भाषण, सड़कों पर प्रतिरोध के गीत और 'सड्डा हक, ऐथे रख' और 'जो बोले सो निहाल' के नारे दैनिक जीवन का हिस्सा रहे हैं।

सामुदायिक रसोई या लंगरों की वजह से किसानों को खाने-पीने से संबंधित समस्या नहीं हुई और आंदोलन स्थल पर किसानों की भीड़ बढ़ती चली गई जिन्होंने कहा था कि कानून निरस्त किए जाने वे वापस नहीं जाएंगे।

शुक्रवार को मोदी ने प्रदर्शन कर रहे किसानों से घर लौटने की अपील की, लेकिन वे वापस जाने के मूड में दिखाई नहीं दिए।

गुरदासपुर के किसान 45 वर्षीय पलविंदर सिंह राजमार्ग के ठीक बीच एक रसोई स्थापित करने के लिए एक 'जत्थे' के साथ सिंघू बॉर्डर पर पहुंचे थे। उन्होंने जनवरी में पीटीआई-भाषा से था कि "कोई क्रांति खाली पेट नहीं चल सकती।"

उन्होंने कहा था, ‘‘हम किसान हैं और अपने श्रद्धेय सिख गुरुओं की शिक्षाओं का पालन करते हैं। यह गुरु का लंगर है, उनकी कृपा है, और हम केवल उनकी इच्छा के दास हैं। इसीलिए हम रसोई को जलाए रखने में सफल होते हैं।’’

आंदोलनकारी किसानों के लिए शुक्रवार का दिन दोगुनी खुशी का दिन था, क्योंकि एक तो आज सरकार ने विवादास्पद कानूनों को वापस लेने की घोषणा की और आज ही गुरु नानक जयंती भी थी। कुछ लोगों ने गाजीपुर बॉर्डर और अन्य विरोध स्थलों पर मिठाई तथा 'जलेबी' बांटी।

किसानों की यह लगभग एक साल लंबी आंदोलन यात्रा कठिन और दर्दनाक रही है जिन्होंने गर्मी, शीतलहर और पानी की बौछारों, मौतों तथा आत्महत्याओं का सामना किया है।

शुक्रवार की सुबह विशेष यज्ञ कर रहे भारतीय किसान संगठन के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव यादव ने कहा, "हम किसानों ने मानसून, कोरोना, सर्दी का सामना किया और अनेक चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी।"

अन्य कई किसानों और स्वयंसेवियों ने भी एक साल से जारी इस आंदोलन में सामने आईं चुनौतियों और कठिनाइयों का जिक्र किया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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