PSA के तहत हिरासत में उमर अब्दुल्ला, बहन सारा ने सुप्रीम कोर्ट में डाली थी, सुनवाई 5 मार्च को
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 2, 2020 12:47 PM2020-03-02T12:47:19+5:302020-03-02T12:47:19+5:30
उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत में रखे जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर हुई सुनवाई के बाद यहां संवाददाताओं से बात करते हुए सारा ने कहा कि उन्हें जल्दी सुनवाई की उम्मीद है क्योंकि मामला बंदी प्रत्यक्षीकरण का है।
सुप्रीम कोर्ट जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट की याचिका पर 5 मार्च को सुनवाई करेगा। सारा अब्दुल्ला ने अपनी याचिका में जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा कानून (PSA),1978 के तहत उमर अब्दुल्ला की नज़रबंदी को चुनौती दी है।
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने कहा था कि सारे कश्मीरियों के पास देश के अन्य नागरिकों के समान अधिकार होने चाहिए। उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत में रखे जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर हुई सुनवाई के बाद यहां संवाददाताओं से बात करते हुए सारा ने कहा कि उन्हें जल्दी सुनवाई की उम्मीद है क्योंकि मामला बंदी प्रत्यक्षीकरण का है।
परिवार को न्याय व्यवस्था में पूरा विश्वास
उन्होंने कहा कि उन्हें और उनके परिवार को न्याय व्यवस्था में पूरा विश्वास है। उन्होंने कहा, ‘‘हम यहां इसलिए हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि सभी कश्मीरियों को भारत के सभी नागरिकों के समान अधिकार मिलना चाहिए और हम उस दिन का इंतजार कर रहे हैं।’’
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने उमर अब्दुल्ला को हिरासत में लिए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि इसपर 5 मार्च को सुनवाई होगी।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एम. एम. शांतानागौडर ने सारा अब्दुल्ला पायलट की उस याचिका पर सुनवाई से बुधवार को खुद को अलग कर लिया था। सारा ने जम्मू कश्मीर जन सुरक्षा कानून, 1978 के तहत अपने भाई को हिरासत में लिए जाने को चुनौती देते हुए शीर्ष न्यायालय का रुख किया था।
याचिका में हिरासत के आदेश को गैरकानूनी बताया गया है और कहा गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था के लिए उनके खतरा होने का कोई सवाल नहीं उठता। याचिका में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लेने संबंधी पांच फरवरी का आदेश निरस्त करने के साथ ही उन्हें अदालत में पेश किए जाने का अनुरोध किया गया है।
पायलट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत अधिकारियों द्वारा नेताओं समेत अन्य व्यक्तियों को हिरासत में लेने के लिए शक्तियों का इस्तेमाल करना ‘‘साफ तौर पर यह सुनिश्चित करने की कार्रवाई है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधान समाप्त करने का विरोध दब जाए।’’ उनकी याचिका में कहा गया कि सत्ता का उपयोग अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के समूचे नेतृत्व के साथ साथ अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को कैद करने के लिए किया गया।
अब्दुल्ला को चार-पांच अगस्त, 2019 की रात घर में नजरबंद कर दिया गया था
इन नेताओं ने कई वर्षों तक राज्य एवं केन्द्र में सेवाएं दी हैं और जरूरत पड़ने पर भारत का साथ दिया है। याचिका में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को चार-पांच अगस्त, 2019 की रात घर में नजरबंद कर दिया गया था। बाद में पता चला कि इस गिरफ्तारी को न्यायोचित ठहराने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 107 लागू की गई। इसमें कहा गया, “संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 का गंभीर उल्लंघन किया गया।” साथ ही कहा, “हिरासत के इसी प्रकार के आदेश प्रतिवादियों (केंद्र शासित प्रदेश जम्मू -कश्मीर के अधिकारी) ने पिछले सात महीनों में अन्य बंदियों के साथ पूरी तरह सोचे-समझे तरीके से लागू किए, जो दिखाता है कि सभी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों का मुंह बंद करने की लगातार कोशिश जारी है।”
याचिका में कहा है कि ऐसा व्यक्ति जो पहले ही छह महीने से नजरबंद हो, उसे नजरबंद करने के लिए कोई नयी सामग्री नहीं हो सकती और हिरासत के आदेश में बताई गईं वजह के लिए पर्याप्त सामग्री और ऐसे विवरण का अभाव है जो इस तरह के आदेश के लिए जरूरी है। याचिका में कहा गया कि अब्दुल्ला को वे सामग्रियां भी नहीं उपलब्ध कराईं गईं जिनके आधार पर उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया गया और इन सामग्रियों की आपूर्ति नहीं किया जाना हिरासत को बेबुनियाद बताता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
इसमें कहा गया कि अपने राजनीतिक करियर के दौरान उन्होंने कभी भी अशोभनीय आचरण नहीं किया। उमर अब्दुल्ला को इस कानून के तहत नजरबंद किए जाने के कारणों में दावा किया गया है कि राज्य के पुनर्गठन की पूर्व संध्या पर उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों और अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने के फैसले के खिलाफ आम जनता को भड़काने का प्रयास किया।