सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर संवैधानिक पीठ करेगी सुनवाई'
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: October 16, 2023 01:09 PM2023-10-16T13:09:22+5:302023-10-16T13:12:24+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग यानी चुनावी बॉन्ड योजना के जरिये मिलने वाले चंदे के खिलाफ चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है।
नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजनीतिक दलों को गुमनाम फंडिंग यानी चुनावी बॉन्ड योजना के जरिये मिलने वाले चंदे के खिलाफ चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया है। इस संबंध में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में कहा कि चुनावी बॉन्ड के संबंध में दायर की गई सभी याचिकाएं बेहद महत्वपूर्ण है। इसलिए कोर्ट इस मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेज रहा है।
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सोमवार को इस केस के संबंध में कहा, "याचिकाओं में उठाए गए मुद्दे के महत्व को देखते हुए और संविधान के अनुच्छेद 145(4) के संबंध में इस विषय को कम से कम पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के सामने रखा जाना बेहद महत्वपूर्ण है। मामले की सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी।"
इससे पहले तीनों जजों की पीठ ने कहा था कि वह इस पर विचार करेंगे कि क्या चुनावी बांड के मामले को पांच जजों की संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए।
इस संबंध में याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा था कि यह मामला संवैधानिक महत्व का है और इससे देश में लोकतांत्रिक राजनीति और राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर असर पड़ सकता है। इसलिए इस मामले को कम से कम पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए।
दरअसल चुनावी बांड एक वचन पत्र या धारक बांड है, जिसे किसी भी व्यक्ति, कंपनी, फर्म या व्यक्तियों द्वारा खरीदा जा सकता है, बशर्ते वह व्यक्ति भारत का हो या वो कंपनी भारत में निगमित या स्थापित हो। चुनावी बांड का उपयोग राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जाता है।
मामले में याचिकाकर्ता एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से कोर्ट में पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने चीफ जस्टिस की बेंच को बताया कि चुनावी बांड के जरिये राजनैतिक दलों को दी जाने वाली फंडिंग मुख्यतः गुमनाम प्रकृति की है। इस कारण से इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है क्योंकि इससे उन कंपनियों को चंदा देने की अनुमति मिल जाती है, जिन्होंने पार्टियों से या सरकार से लाभ प्राप्त किए होते हैं।
वकील प्रशांत भूषण ने यह भी तर्क दिया है कि साल 2016 और 2017 के वित्त अधिनियमों के माध्यम से किए गए संशोधन के बाद इस बात को आसान बनाया गया कि कंपनियां चुनावी बांड योजना के जरिये असीमित राजनीतिक चंदा दे सकें।
वहीं पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे पेश करते हुए कहा था कि चुनावी बांड योजना राजनीतिक फंडिंग का पूरी तरह से पारदर्शी तरीका है और इससे राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में काला धन पाना असंभव है।