17 साल सजा काटने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कत्ल के 'नाबालिग' दोषी को किया रिहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 13, 2022 09:50 PM2022-04-13T21:50:16+5:302022-04-13T21:54:08+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के समय नाबालिग दोषी को मिले आजीवन कारावास के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि चूंकि घटना के वक्त दोषी नाबालिग था और नाबालिग को मिलने वाली सजा से ज्यादा समय वो जेल में बिता चुका है। इसलिए कोर्ट उसे रिहा करने का आदेश देती है।

Supreme Court releases 'minor' convict of murder after serving 17 years | 17 साल सजा काटने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कत्ल के 'नाबालिग' दोषी को किया रिहा

फाइल फोटो

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने हत्या के समय नाबालिग दोषी को आजीवन कारावास की सजा से मुक्त कियादोषी बीते 17 साल से लखनऊ की जेल में बंद था और आजीवन कारावास की सजा काट रहा था लखनऊ जेल अधीक्षक ने बताया कि दोषी 1 अगस्त 2021 तक 17 साल 03 दिन की सजा काट चुका है

दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने बीते 17 साल से जेल में बंद हत्या मामले में एक दोषी को रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब यह साबित हो गया कि 17 साल पहले यानी हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाये जाते समय दोषी नाबालिग था।

पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने भी दोषी की सजा को बरकरार रखा था लेकिन जब दोषी ने कोर्ट में यह सिद्ध कर दिया कि वो सजा सुनाये जाते समय नाबालिग था और उसे जेल की बजाए बाल सुधार गृह में भेजा जाना चाहिए था लेकिन इसके उटल उसे वयस्क अपराधियों के साथ जेल में सजा काटने के लिए भेज दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि चूंकि घटना के वक्त वह नाबालिग था और नाबालिग को मिलने वाली सजा से ज्यादा समय वो जेल में बिता चुका है। इसलिए कोर्ट उसे रिहा करने का आदेश देती है।

मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एएम खानविलकर और एएस ओका की बेंच ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा दोषी को सुधार गृह ङेजा जाना चाहिए था और और साल 2000 के अधिनियम की धारा 15 के तहत दोषी को सबसे कड़ी सजा देते हुए तीन साल के बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

बेंच ने कहा, "लखनऊ जेल के अधीक्षक ने 1 अगस्त 2021 को जो प्रमाण पत्र दिया है उसके मुताबिक दोषी 1 अगस्त 2021 तक 17 साल और 03 दिन की सजा काट चुका है। इसलिए अब उसके साथ यह अन्याय होगा कि दोषी को किशोर न्याय बोर्ड के सामने पेश किया जाए।"

कोर्ट ने रिहाई के फैसले में कहा, "इसलिए हम तुरंत दोषी को जेल से रिहा करने का आदेश देते हैं, बशर्ते उसे किसी अन्य कोर्ट के सामने किसी अन्य मामले में हिरासत में पेश करने की आवश्यकता न हो।" 

दरअसल यह मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां दोषी को यूपी की लोअर कोर्ट ने हत्या के मामले में 16 मई 2006 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बाद यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में गया लेकिन हाईकोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया। जिसके बाद दोषी ने सजा के खिलाफ साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया।

उसके बाद साल 2021 में दोषी द्वारा फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई और कहा गया कि वह घटना के वक्त नाबालिग था और ऐसे में उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ देते हुए कोर्ट जेल से रिहा करे। 

जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने महाराजगंज के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड को आदेश दिया कि वो दोषी के हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के सर्टिफिकेट की जांच करके घटना के समय उसकी उम्र का पता लगाएं।

जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने मामले में जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि घटना के वक्त दोषी नाबालिग था और उसकी उम्र उस वक्त 17 साल 7 महीने और 23 दिन थी।

जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की रिपोर्ट को आधार मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को घटना के वक्त नाबालिग मानते हुए रिहा करने का आदेश दिया। 

Web Title: Supreme Court releases 'minor' convict of murder after serving 17 years

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