सेवानिवृत्त होने या इस्तीफा देने के तत्काल बाद नौकरशाहों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया

By विशाल कुमार | Published: May 2, 2022 11:27 AM2022-05-02T11:27:58+5:302022-05-02T11:30:09+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव लड़ने के लिए सिविल सेवकों के लिए कोई 'कूलिंग ऑफ पीरियड' होना चाहिए या नहीं, यह संबंधित विधायिका पर छोड़ देना सबसे अच्छा होगा। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की गई थी जिसे हाल ही में खारिज कर दिया गया।

supreme-court-civil-servants-political-neutrality-cooling-off-period-contesting-elections | सेवानिवृत्त होने या इस्तीफा देने के तत्काल बाद नौकरशाहों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया

सेवानिवृत्त होने या इस्तीफा देने के तत्काल बाद नौकरशाहों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार किया

Highlightsसेवानिवृत्त होने या नौकरी से इस्तीफा देने के तुरंत बाद अधिकारियों के चुनाव लड़ने पर रोक की मांग की गई थी।इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की गई थी जिसे खारिज कर दिया गया।अदालत ने कहा कि सिविल सेवकों की सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और ईमानदारी पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त होने या नौकरी से इस्तीफा देने के तुरंत बाद सिविल सेवा अधिकारियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने या कूलिंग ऑफ पीरियड (एक निश्चित समयावधि के लिए नया पद लेने से रोकने) लागू करने से इनकार कर दिया।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की गई थी जिसे हाल ही में खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव लड़ने के लिए सिविल सेवकों के लिए कोई 'कूलिंग ऑफ पीरियड' होना चाहिए या नहीं, यह संबंधित विधायिका पर छोड़ देना सबसे अच्छा होगा।

यह रिट याचिका विवेक कृष्ण द्वारा दायर की गई थी जो व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष पेश हुए थे। उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव लड़ने के लिए पार्टी टिकट प्राप्त करने के नजरिए से नौकरशाहों पर राजनीतिक तटस्थता के सख्त मानदंडों से हटने का आरोप है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन की कोई शिकायत नहीं है।

रिट याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि यह तय करना इस न्यायालय के तहत नहीं है कि चुनाव लड़ने के लिए नौकरशाह के लिए कोई नियम/दिशानिर्देश होना चाहिए या नहीं। उपयुक्त संस्थाओं को इस मामले में निर्णय लेना है। अदालत ने कहा कि सिविल सेवकों की सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, तटस्थता, पारदर्शिता और ईमानदारी पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।

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