आंदोलनरत किसानों का अड़ियल रुख दर्शाता है कि वे स्वार्थी तत्वों के हाथ में खेल रहे: भाजपा

By भाषा | Updated: January 22, 2021 22:04 IST2021-01-22T22:04:12+5:302021-01-22T22:04:12+5:30

Stubborn farmers' stance shows that they are playing in the hands of selfish elements: BJP | आंदोलनरत किसानों का अड़ियल रुख दर्शाता है कि वे स्वार्थी तत्वों के हाथ में खेल रहे: भाजपा

आंदोलनरत किसानों का अड़ियल रुख दर्शाता है कि वे स्वार्थी तत्वों के हाथ में खेल रहे: भाजपा

नयी दिल्ली, 22 जनवरी तीन कृषि कानूनों का क्रियान्वयन डेढ़ साल तक निलंबित करने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को किसान संगठनों द्वारा खारिज करने और इन्हें निरस्त करने की मांग पर अड़ जाने से मामले का हल निकलने की भाजपा की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है। हालांकि पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि किसानों का अड़ियल रवैया स्पष्ट करता है कि वे निहित स्वार्थ वालों के हाथों में खेल रहे हैं।

कई पार्टी नेताओं का मानना है कि किसानों का ‘‘या तो सब या कुछ नहीं’’ का दृष्टिकोण और आंदोलन को तेज करने की उनकी चेतावनी से बनने वाली आम धारणा सरकार के पक्ष में जाएगी क्योंकि सरकार ने कानूनों को निलंबित करने का प्रस्ताव देकर बड़ा कदम उठाया है।

पार्टी के एक नेता ने कहा कि बेहतर होता कि किसान संगठन अपना आंदोलन स्थगित कर देते और कृषि कानूनों को लेकर सरकार से वार्ता करते।

राजनीतिक रूप से पार्टी में चिंता जरूर है। खासकर पंजाब में अपनी चुनावी संभावनाओं को लेकर। पंजाब में अगले साल चुनाव होने हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी विधानसभा के चुनाव होंगे।

हरियाणा में हाल ही में संपन्न हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा। इससे संकेत मिलता है कि किसानों के प्रदर्शन का असर चुनावों पर पड़ा।

हालांकि भाजपा के एक नेता ने कहा कि किसानों के अड़ियल रवैये से संदेश जा रहा है कि वे स्वार्थी तत्वों के हाथों में खेल रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘किसानों के प्रति सम्मान के लिए सरकार ने बहुत लचीला रुख अपनाया। इसकी वजह से किसान संगठनों का रुख सख्त हो गया। किसानों ने उच्चतम न्यायालय का भी सम्मान नहीं किया। लोगों को पता चल रहा है कि वे विरोध के लिए विरोध कर रहे हैं।’’

उन्होंने पूछा कि जब सरकार पीछे हटने को तैयार हो गई है तो किसानों को आंदोलन समाप्त करने में क्या परेशानी है।

किसानों संग 11वें दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने किसान संगठनों के रवैये पर अफसोस जताया और कड़ा रुख अख्तियार करते हुए आरोप लगाया कि कुछ ‘‘ताकतें’’ हैं जो अपने निजी और राजनीतिक हितों के चलते आंदोलन को जारी रखना चाहती हैं।

उन्होंने कहा कि तीन कृषि कानूनों का क्रियान्वयन 12-18 महीनों तक स्थगित रखने और तब तक चर्चा के जरिए समाधान निकालने के लिए समिति बनाए जाने सहित केंद्र सरकार की ओर से अब तक वार्ता के दौरान कई प्रस्ताव दिए गए लेकिन किसान संगठन इन कानूनों को खारिज करने की मांग पर अड़े हैं।

पिछली बैठक में सरकार की ओर से किसानों के सामने रखे गए प्रस्ताव को तोमर ने ‘‘बेहतर’’ और देश व किसानों के हित में बताया और यह कहते हुए गेंद किसान संगठनों के पाले में डाल दी कि वे इस पर पुनर्विचार कर केंद्र के समक्ष अपना रुख स्पष्ट करते हैं तो आगे की कार्रवाई की जा सकती है।

किसान संगठनों के साथ 11वें दौर की वार्ता समाप्त होने के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा, ‘‘एक से डेढ़ बरस तक कानून को स्थगित रख समिति बनाकर आंदोलन में उठाए गए मुद्दों और पहलुओं पर विचार विमर्श कर सिफारिश देने का प्रस्ताव बेहतर है। उस पर आप विचार करें। यह प्रस्ताव किसानों के हित में भी है। इसलिए हमने कहा, आज वार्ता खत्म करते हैं। आप लोग अगर निर्णय पर पहुंच सकते हैं तो कल अपना मत बताइए। निर्णय घोषित करने के लिए आपकी सूचना पर हम कहीं भी इकट्ठा हो सकते हैं और उस निर्णय को घोषित करने की आगे की कार्रवाई कर सकते हैं।’’

आज की वार्ता में कोई फैसला ना होने पाने के बावजूद अगली बैठक की तारीख तय नहीं हुई।

तोमर ने कहा कि कुछ ‘‘ताकतें’’ हैं जो अपने निजी और राजनीतिक हितों के चलते आंदोलन को जारी रखना चाहती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए भारत सरकार की कोशिश थी कि वह सही रास्ते पर विचार करें और सही रास्ते पर विचार करने के लिए 11 दौर की बैठक की गई। जब किसान संगठन कानूनों को निरस्त करने पर अड़े रहे तो सरकार ने उनकी आपत्तियों के अनुसार निराकरण करने व संशोधन करने के लिए एक के बाद एक अनेक प्रस्ताव दिए। लेकिन जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता।’’

तोमर ने कहा, ‘‘आज मुझे लगता है वार्ता के दौर में मर्यादाओं का पालन तो हुआ लेकिन किसान के हक में वार्ता का मार्ग प्रशस्त हो, इस भावना का अभाव था। इसलिए वार्ता निर्णय तक नहीं पहुंच सकी। इसका मुझे खेद है।’’

उल्लेखनीय है कि केंद्र द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों के विरोध में लगभग दो महीने से हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका मानना है कि संबंधित कानून किसानों के खिलाफ तथा कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में हैं।

बैठक के बाद किसान संगठनों ने कहा कि वे अब अपना आंदोलन तेज करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि बैठक के दौरान सरकार का रवैया ठीक नहीं था।

किसान नेताओं ने यह भी कहा कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली योजना के अनुरूप निकाली जाएगी और यूनियनों ने पुलिस से कहा है कि इस दौरान शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार की है।

बैठक के बाद भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा कि वार्ता टूट गई है क्योंकि यूनियनों ने सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार ने कहा कि कानूनों को निलंबित रखने की अवधि दो साल तक विस्तारित की जा सकती है, लेकिन यूनियन तीनों कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने तथा फसलों की खरीद पर एमएसपी की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांगों पर अड़ी रहीं।

सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश ने करीब 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ वार्ता की।

उच्चतम अदालत ने 11 जनवरी को तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी और गतिरोध को दूर करने के मकसद से चार-सदस्यीय एक समिति का गठन किया था। फिलहाल, इस समिति में तीन ही सदस्य हैं क्योंकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस समिति से अलग कर लिया था।

इस समिति के तीन अन्य सदस्यों ने बृहस्पतिवार को पक्षकारों के साथ वार्ता प्रक्रिया शुरू कर दी थी।

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