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उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा- कुछ तथाकथित 'मेधावी' लोगों को 'हिंदू' शब्द से है परहेज, उन्हें इसे बोलने में आती है शर्म

By भाषा | Updated: December 17, 2019 20:43 IST

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आईआईएए द्वारा आयोजित छठे रवीन्द्र नाथ टैगोर स्मृति व्याख्यान को भी संबोधित करते हुये कहा कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु सहित अन्य प्रधानमंत्रियों ने हिंदुस्तान शब्द के प्रयोग वाले सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम उपक्रमों का गठन किया।

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ठळक मुद्देवेंकैया नायडू ने कहा कि देश में औपनिवेशिक शासन काल के कारण उपजी उपनिवेशवादी मानसिकता से ग्रसित कुछ तथाकथित ‘मेधावी’ लोगों को ‘हिंदू’ शब्द से परहेज है।उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को खुद को हिन्दू बोलने पर शर्म आती है।

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने मंगलवार को कहा कि देश में औपनिवेशिक शासन काल के कारण उपजी उपनिवेशवादी मानसिकता से ग्रसित कुछ तथाकथित ‘मेधावी’ लोगों को ‘हिंदू’ शब्द से परहेज है और उन्हें इसे बोलने में भी शर्म आती है। नायडू ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएए) की शोधपरक पुस्तक ‘‘हिंदूइस्म एंड इंडियास रोड टू मॉडर्निटी’’ का विमोचन करते हुये कहा, ‘‘उपनिवेशवादी मानसिकता के कारण हमारे बीच के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी ‘मेधावी’ लोग हिंदू शब्द बोलना पसंद नहीं करते हैं।’’

नायडू ने कहा कि बतौर सांसद उन्होंने एक बार लोकसभा में भी एक चर्चा के दौरान यह सवाल उठाया था कि हिंदू बोलने में शर्म की क्या बात है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस समस्या की वजह ‘हिंदू’ शब्द को धर्म के साथ जोड़ कर देखना है। उन्होंने युवाओं से इस भ्रम को दूर करने का आह्वान करते हुये कहा कि वस्तुत: हिंदू शब्द ‘सभ्यता’ से जुड़ा है। साथ ही नायडू ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह शब्द कतई राजनीतिक नहीं है क्योंकि इसी शब्द से देश का नाम ‘हिंदुस्तान’ पड़ा।

इस दौरान नायडू ने आईआईएए द्वारा आयोजित छठे रवीन्द्र नाथ टैगोर स्मृति व्याख्यान को भी संबोधित करते हुये कहा कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु सहित अन्य प्रधानमंत्रियों ने हिंदुस्तान शब्द के प्रयोग वाले सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम उपक्रमों का गठन किया। उन्होंने कहा कि हिंदू शब्द हमारी जड़ों से जुड़ा है इसलिये इसे बोलने में शर्म या संकोच क्यों करना।’’ उन्होंने देश की युवा पीढ़ी से प्रबुद्ध और समृद्ध भारत के गौरवशाली अतीत को जानने की अपील करते हुये कहा कि ‘न्यू इंडिया’ का मकसद भारत की पुरानी प्रतिष्ठा को कायम करना है।

नायडू ने कहा, ‘‘न्यू इंडिया का मतलब ‘ओल्ड इंडिया’ का फिर से सृजन करना है।’’ इस दौरान नायडू ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में एक मुस्लिम शिक्षक द्वारा संस्कृत पढ़ाने पर उपजे विवाद को भी गैरजरूरी बताया। उन्होंने कहा, ‘‘एक प्रोफेसर बीएचयू में संस्कृत पढ़ाना चाहते हैं। वह अगर मुस्लिम हैं तो क्या हुआ, इस पर विवाद उत्पन्न करने की क्या जरूरत है। भाषा हो या रामायण महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथ, ये सब हमारी सभ्यता के अंग हैं और इस अमूल्य खजाने का संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है और इसके लिये सांस्कृतिक पुनर्जागरण की जरूरत है।’’

नायडू ने कहा, ‘‘महात्मा गांधी ने भी कहा था कि ग्राम स्वराज के बिना रामराज्य अधूरा है। क्या गांधी जी की यह बात सांप्रदायिक है। हम अक्सर राम राज्य की बात करते हैं, यहां राम राज्य से आशय भय, भेदभाव, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त शासन तंत्र से है।’’ उन्होंने कहा कि राम, धार्मिक प्रतीक नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता के प्रतीक हैं क्योंकि उनके बारे में मान्यता है कि वह आदर्श शासक, आदर्श पुत्र और आदर्श व्यक्ति थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक इसीलिये बने क्योंकि राम जनता के विचारों का सम्मान करते थे।

नायडू ने कहा कि स्वामी विवेकानंद और गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने भी अपने ज्ञानकोष में भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में समाहित ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के उस संदेश का प्रसार किया जो वेद पुराणों का सारतत्व है। उन्होंने कहा, ‘‘रवीन्द्रनाथ टैगोर यकीनन विश्व कवि हैं, जो हमारे प्राचीन ऋषियों की वसुधैव कुटुंबकम् की ज्ञान परम्परा के प्रतिनिधि रहे।’’ नायडू ने टैगोर द्वारा स्थापित तीन महान संस्थानों शांतिनिकेतन, श्रीनिकेतन तथा विश्व भारती का जिक्र करते हुये कहा, ‘‘शिक्षा, ग्रामीण पुनरोत्थान और विश्व शांति व सहयोग पर उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने आज से सौ साल पहले थे।’’

टॅग्स :एम. वेकैंया नायडू
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