दास्तानगोई को पुनर्जीवित करने वाले साहित्यकार शम्सुर्रहमान फारूकी का निधन
By भाषा | Updated: December 25, 2020 16:18 IST2020-12-25T16:18:55+5:302020-12-25T16:18:55+5:30

दास्तानगोई को पुनर्जीवित करने वाले साहित्यकार शम्सुर्रहमान फारूकी का निधन
नयी दिल्ली, 25 दिसंबर प्रख्यात उर्दू शायर और आलोचक शम्सुर्रहमान फारूकी का प्रयागराज स्थित उनके आवास पर शुक्रवार को निधन हो गया।
एक महीना पहले ही वह कोरोना वायरस के संक्रमण से उबरे थे। वह 85 वर्ष के थे।
फारूकी के संबंधी और लेखक महमूद फारूकी ने पीटीआई-भाषा को बताया, “वह इलाहाबाद स्थित अपने घर वापस जाने की जिद कर रहे थे। हम यहां आज सुबह ही पहुंचे और आधे घंटे में लगभग 11 बजे वह गुजर गए।”
कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक होने के बाद शम्सुर्रहमान फारूकी को दिल्ली स्थित अस्पताल से 23 नवंबर को छुट्टी दे दी गई थी।
महमूद ने कहा, “स्टेरॉयड के कारण उन्हें फंगल संक्रमण माइकोसिस हो गया था जिससे उनकी हालत और खराब हो गई थी।”
शम्सुर्रहमान फारूकी के पार्थिव शरीर को प्रयागराज में शुक्रवार को शाम छह बजे अशोक नगर स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक किया जाएगा।
पद्मश्री से सम्मानित शायर का जन्म उत्तर प्रदेश में 30 सितंबर 1935 को हुआ था।
उन्हें 16वीं सदी में विकसित हुई उर्दू में कहानी सुनाने की कला “दास्तानगोई” को पुनर्जीवित करने के लिए जाना जाता है।
पांच दशक लंबे अपने साहित्यिक सफर में उन्होंने “कई चांद थे सार-ए-आसमान”, गालिब अफसाने की हिमायत में” और “द सन दैट रोज फ्रॉम द अर्थ” जैसी किताबें लिखीं।
वर्ष 1996 में उन्हें “शेर-ए शोर-अंग्रेज” लिखने के लिए सरस्वती सम्मान दिया गया था।
मशहूर लेखक विलियम डेलरिम्पल ने ट्विटर पर शम्सुर्रहमान फारूकी को श्रद्धांजलि दी।
उन्होंने लिखा, “अलविदा जनाब शम्सुर्रहमान फारूकी साहब, उर्दू साहित्यिक दुनिया के अंतिम महान बादशाह। यह दुखद खबर है।”
उर्दू महोत्सव जश्न-ए-रेख्ता के संस्थापक संजीव सर्राफ ने भी “उर्दू में सदी की सबसे बड़ी शख्सियत” को श्रद्धांजलि दी।
सर्राफ ने कहा, “उनके निधन से साहित्य जगत की एक पूरी पीढ़ी गमगीन है। मैं उनके परिजनों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं।
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