अपील की अवधि पूरी होने से पहले ही दोषी को मृत्यु वारंट जारी, आश्चर्य में पड़ा सुप्रीम कोर्ट

By भाषा | Published: February 20, 2020 08:39 PM2020-02-20T20:39:11+5:302020-02-20T20:39:11+5:30

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने यादव की मौत की सजा पर अमल के लिए जारी वारंट पर रोक लगा दी। इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि 2015 के शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद निचली अदालतें कैसे मौत की सजा पर अमल के लिए वारंट जारी करती हैं। 

SC questions issuance of death warrants by trial courts before expiry of time period for appeal | अपील की अवधि पूरी होने से पहले ही दोषी को मृत्यु वारंट जारी, आश्चर्य में पड़ा सुप्रीम कोर्ट

प्रतीकात्मक फोटो

Highlightsपीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले पर अमल नहीं करने की वजह से इस वारंट पर रोक लगानी होगी। सालिसीटर जनरल ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीशों के लिए कानून की जानकारी नहीं होना इस तरह के आदेश देने का आधार नहीं हो सकता।

उच्चतम न्यायालय ने दोषियों द्वारा मौत की सजा के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 60 दिन के भीतर अपील दायर करने की अवधि समाप्त होने से पहले ही निचली अदालतों द्वारा मौत की सजा पर अमल के लिए वारंट जारी करने पर बृहस्पतिवार को सवाल उठाया। शीर्ष अदालत ने मौत की सजा पाने वाले अनिल सुरेन्द्र सिंह यादव की अपील पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। 

दोषी ने आरोप लगाया कि गुजरात की सत्र अदालत ने उसकी मौत की सजा बरकरार रखने के उच्च न्यायालय के फैसले के सिर्फ 33 दिन बाद ही सजा पर अमल के लिए वारंट जारी कर दिया। दोषी को सूरत में तीन साल की बच्ची से बलात्कार और उसकी हत्या करने के अपराध में अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। 

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने यादव की मौत की सजा पर अमल के लिए जारी वारंट पर रोक लगा दी। इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि 2015 के शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद निचली अदालतें कैसे मौत की सजा पर अमल के लिए वारंट जारी करती हैं। 

इस फैसले में न्यायालय ने कहा था कि उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर करने की 60 दिन की कानूनी अवधि समाप्त होने से पहले इस तरह का वारंट जारी नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा, ‘‘हम जानना चाहते हैं कि इस बारे में फैसले के बावजूद निचली अदालत द्वारा कैसे इस तरह के वारंट जारी किए जा रहे हैं। किसी न किसी को इस बारे मे स्पष्टीकरण देना होगा। न्यायिक प्रक्रिया को इस तरह से चलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’’ 

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बलात्कार और हत्या के मामलों में दोषियों की मौत की सजा पर अमल में विलंब को लेकर ‘शोर’ हो रहा है और यहां एक सत्र अदालत ने कानूनी अवधि समाप्त होने से पहले ही मौत की सजा पर अमल के लिए वारंट जारी कर दिया है। पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले पर अमल नहीं करने की वजह से इस वारंट पर रोक लगानी होगी। पीठ ने साथ ही सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह इस मामले में न्यायालय की मदद करें। 

मेहता ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीशों के लिए कानून की जानकारी नहीं होना इस तरह के आदेश देने का आधार नहीं हो सकता। दोषी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि कानून में 60 दिन तक अनिवार्य रूप से प्रतीक्षा करने का प्रावधान है और इसका पालन किया जाना चाहिए।

Web Title: SC questions issuance of death warrants by trial courts before expiry of time period for appeal

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे