सवर्ण आरक्षण: नरेन्द्र मोदी ने आरक्षण की बहस को ही खत्म कर दिया, क्या होगा हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और हनुमान बेनीवाल का?
By विकास कुमार | Published: January 10, 2019 11:36 AM2019-01-10T11:36:22+5:302019-01-10T13:18:13+5:30
सरकार के इस बिल ने एक ही झटके में सब बराबर की भावना को प्रज्वलित किया है. नरेन्द्र मोदी को इसका अंदाजा हो गया था कि लोकसभा चुनाव से पहले तमाम जातियां आरक्षण का होर्डिंग लेकर सड़कों पर निकलेंगी, इसलिए उससे पहले ही सरकार ने यह राजनीतिक ब्रह्मास्त्र चल दिया.
सवर्ण आरक्षण बिल राज्यसभा में भी ध्वनि मत से पारित हो गया. इसके एक दिन पहले यह बिल लोकसभा में भी बहुमत से पारित हो गया था. कुछ गिने-चुने लोगों को छोड़ दिया जाए तो सभी दलों ने इस बिल को अपना समर्थन दिया. संसद में यह नजारा वर्षों में एक बार देखने को मिलता है जब सत्ता पक्ष के लोग और विपक्ष इतनी तत्परता के साथ किसी बिल को उसके अंजाम तक इतनी जल्दबाजी में पहुंचाते हों. बात दरअसल अगर वोटबैंक की हो तो भारतीय राजनेताओं की एकता पूरे विश्व के लिए एक मिसाल पेश करती है.
लोकसभा में भी इस बिल पर घंटों चर्चा हुई और आज राज्यसभा में भी 10 घंटे से ज्यादा चर्चा हुई. विपक्ष के नेताओं में इस बिल को लेकर एक ही चिंता देखने को मिल रही थी कि आपने इस बिल को इस समय क्यों लाया? सवाल वाजिब है लेकिन उन नेताओं से भी पूछा जाना चाहिए कि अगर आपकी सरकार होती तो क्या आप इस बिल को अपने कार्यकाल के पहले चरण में ही अमली जामा पहना देते?
एक और बात जो इस पूरे चर्चा में सामने आई कि सरकार ने सवर्णों में गरीबी को लेकर जो मापदंड इस बिल के तहत रखा है, क्या उसका आंकड़ा सरकार के पास है? क्या सरकार को ये मालूम है कि देश में कितने लोगों के पास 5 एकड़ से कम जमीन है? सरकार ने इस सवाल पर चुप रहना ही उचित समझा, क्योंकि राजनीति में फैसले कभी भी अचानक ही लिए जाते हैं और वो भी तब जब आपका कोर वोटबैंक आपसे छिटक रहा हो.
चाहते हुए भी विरोध नहीं कर पाया विपक्ष
लोकसभा और राज्यसभा में यह बिल पास होने के बाद अब राष्ट्रपति के पास भेजा जायेगा और उनके हस्ताक्षर के साथ ही यह बिल अमर हो जायेगा. क्योंकि जिस तरह से देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग उठ रही थी उससे लगता नहीं है कि निकट भविष्य में इसको कोई चुनौती मिलने वाली है. जबकि इसके बाद आर्थिक आधार पर ही आरक्षण की बहस पूरे देश में छिड़ सकती है.
सरकार को सबसे बड़ी जो सफलता इस बिल के कारण मिली है, वो सभी आर्थिक रूप से पिछड़े गरीबों का इस बिल में शामिल होना है. मुस्लिम और ईसाई धर्म के भी पिछड़े लोग जो जनरल केटेगरी में आते हैं वो इस बिल के तहत आरक्षण का लाभ उठा पाएंगे. जाट और गूजर समुदाय के लोग हों या गुजरात का पाटीदार समुदाय हो, इस बिल का लाभ इन वर्गों को भी मिलेगा, जो पिछले बहुत समय से आरक्षण की मांग कर रहे थे.
क्षेत्रीय आरक्षण की बहस खत्म या शुरू
अगर देखा जाए तो सरकार ने सवर्ण आरक्षण को आर्थिक आधार पर देकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. आने वाले समय में इन समुदायों के नेता जो हर वक्त आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर आये दिन सामाजिक तांडव के जरिये अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ती करते थे उस पर अब लगाम कस सकता है. क्योंकि सरकार ने सभी को 10 प्रतिशत का लॉलीपॉप थमा दिया है. अब कोई यह नहीं कह सकता कि उनके समुदाय के साथ विश्वासघात हुआ है.
सरकार के इस बिल ने एक ही झटके में सब बराबर की भावना को प्रज्वलित किया है. नरेन्द्र मोदी को इसका अंदाजा हो गया था कि लोकसभा चुनाव से पहले तमाम जातियां आरक्षण का होर्डिंग लेकर सड़कों पर निकलेंगी, इसलिए उससे पहले ही सरकार ने यह राजनीतिक ब्रह्मास्त्र चल दिया जिसके लपेटे में हार्दिक पटेल से लेकर हनुमान बेनीवाल तक आ गए.
10 प्रतिशत के आरक्षण पर आरजेडी के सांसद मनोज झा ने राज्यसभा में झूनझूना लहराया. लेकिन चाहते हुए भी विरोध नहीं कर पाए. नरेन्द्र मोदी के इस फैसले ने पक्ष और विपक्ष के राजनेताओं को एकजुट कर दिया तो वहीं कई नेताओं की दुकानदारी पर खतरा पैदा हो गया है.
10 प्रतिशत का आरक्षण ऐसे दौर में जब सरकारी नौकरियां विलुप्त होती जा रही हैं, सवर्ण समाज के गरीब लोगों को कितना राहत देगा ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है. ऐसे एक आंकड़ा ये भी है कि केद्र सरकार की नौकरियों में 24 लाख पद खाली हैं और नोटीफिकेशन जारी होने के बावजूद 4 लाख पद अपने उम्मीदवारों की बाट जोह रहे हैं.
(लेखक के निजी विचार हैं)