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शारदा चिटफंड घोटाला: राजीव कुमार की हिरासत की अनुमति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

By स्वाति सिंह | Updated: May 2, 2019 13:39 IST

शारदा चिटफंड केस: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कहा कि वह सबूतों की विवेचना करेगा कि क्या सारदा चिट फंड घोटाला मामले में कोलाकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से हिरासत में पूछताछ की जरूरत है या नहीं। 

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ठळक मुद्देकुमार ने दावा किया था कि नवंबर, 2016 में नोटबंदी के बाद कुछ खोखा कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की गयी थीस मामले की जांच के दौरान राव की पत्नी और बेटी का नाम भी सामने आया था।

सुप्रीम कोर्ट ने शारदा चिटफंड घोटाला मामले में कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को हिरासत में लेकर पूछताछ की अनुमति को लेकर सीबीआई के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है। 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सीबीआई की और से सोशलिस्ट जनरल और श्री कुमार की ओर से वरिष्ट अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की व्यापक दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा। 

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कहा कि वह सबूतों की विवेचना करेगा कि क्या सारदा चिट फंड घोटाला मामले में कोलाकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से हिरासत में पूछताछ की जरूरत है या नहीं। 

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने राजीव कुमार से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता के बारे में केन्द्रीय जांच ब्यूरो द्वारा पेश साक्ष्यों के अवलोकन के बाद यह टिप्पणी की। जांच एजेन्सी का आरोप है कि राजीव कुमार ने ‘‘पहुंच वालों को बचाने के लिये’’इस मामले में साक्ष्य नष्ट करने तथा उनके साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास किया है।

कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त के वकील ने आईपीएस अधिकारी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की अनुमति के लिये जांच ब्यूरो की पहल का प्रतिवाद करते हुये कहा कि यह और कुछ नहीं बल्कि ‘राजनीतिक खेल’ है। शीर्ष अदालत द्वारा सारदा चिट फंड घोटाला प्रकरण की जांच केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंपे जाने से पहले राजीव कुमार पश्चिम बंगाल के विशेष जांच दल के मुखिया थे।

इस मामले में बुधवार को सुनवाई के बीच सीबीआई की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जांच के दौरान सीबीआई द्वारा विशेष जांच दल के अधिकारी के दर्ज किये गये बयान का जिक्र किया। उन्होंने राजीव कुमार से पूछताछ की आवश्यकता के समर्थन में पीठ को कुछ दस्तावेज भी सौंपे। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘हमने बयान पढ़ा है। यह जांच का विषय है। हमें यह देखना है कि क्या ऐसी कोई सामग्री है जिससे पता चलता हो कि पुलिस आयुक्त से हिरासत में पूछताछ की जरूरत है।’’

मेहता ने दलील दी कि पहली नजर में सबूत हैं कि कुमार ने साक्ष्यों को नष्ट किया था या उनके साथ छेड़छाड़ की और उन्होंने इस मामले में कुछ मुख्य आरोपियों को बचाने का प्रयास किया था। राजीव कुमार और पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हालांकि जांच एजेन्सी का आरोप है कि कुमार ने साक्ष्य नष्ट किये लेकिन उसने आज तक इस संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 201 के तहत कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की है। सिंघवी ने कहा, ‘‘यह और कुछ नहीं बल्कि मामले को बनाये रखने और लोगों को संदेह के दायरे में रखने की राजनीतिक चाल है।’’

उन्होंने कहा कि इससे पहले शीर्ष अदालत ने विशेष जांच दल की इस मामले की जांच के लिये सराहना की थी। उन्होंने कहा कि कुमार से सीबीआई ने पांच दिन शिलांग में करीब 40 घंटे पूछताछ की और उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब देने से बचने का प्रयास नहीं किया। सिंघवी ने कुमार द्वारा शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि जांच एजेन्सी उन्हें दुर्भावना और जांच ब्यूरो के पूर्व अंतरिम निदेशक एम नागेश्वर के हितों के टकराव की वजह से निशाना बना रही है क्योंकि उनके परिवार के सदस्य नोटबंदी के बाद जांच के दायरे में थे।

कुमार ने दावा किया था कि नवंबर, 2016 में नोटबंदी के बाद कुछ खोखा कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू की गयी थी जो पहली नजर में बड़ी रकम स्वीकार करने में संलिप्त थीं और इस संबंध में एक प्राथमिकी भी दर्ज की गयी थी। इस मामले की जांच के दौरान राव की पत्नी और बेटी का नाम भी सामने आया था। सिंघवी ने हलफनामे का जिक्र करते हुये कहा कि कुमार ने बड़ी साजिश में भाजपा नेता मुकुल राय और कैलाश विजयवर्गीय के शामिल होने का आरोप लगाया था और कहा था कि एक आडियो क्लिप भी सार्वजनिक है जिसमें वे साफ तौर पर कुछ ‘‘वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों’’ को निशाना बनाने की बात कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि विशेष जांच दल द्वारा एकत्र किये गये साक्ष्य केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौंपे गये थे लेकिन अब वह बुरी तरह से कुमार के पीछे पड़ी है। पीठ ने जब मेहता से इस मामले की जांच की स्थिति के बारे मे पूछा तो उन्होंने कहा कि इस मामले की कुल 76 प्राथमिकी को जांच एजेन्सी द्वारा दर्ज किये गये चार मामलों में समाहित कर दिया गया था।

उन्होंने कहा कि चार मोबाइल, और लैपटाप आरोपियों से जब्त किये गये थे जो महत्वूपर्ण साक्ष्य हो सकते थे लेकिन विशेष जांच दल के जांच अधिकारी ने उन्हें आरोपियों को लौटा दिया था। हालांकि पीठ ने न्यायालय को सौंपे गये इस मामले की डायरी के ‘‘निकले हुये पन्नों’’ के बारे में सवाल किया। पीठ ने कहा, ‘‘क्या यह प्रमुख एजेन्सी, सीबीआई, कानून के प्रावधानों का पालन कर रही है? इस तरह के मामले में, क्या आपको सही तरीके से मामले की डायरी नहीं रखनी चाहिए? मामले की केस डायरी इस तरह से अलग अलग पन्नों में नहीं हो सकती ।

इस संबंध में दंड प्रक्रिया में संशोधन किया जा चुका है।’’ मेहता ने पीठ से कहा कि जांच ब्यूरो द्वारा दर्ज किये गये बयानों पर किसी ने सवाल नहीं उठाये हैं और किसी ने यह दावा भी नहीं किया है कि ये बयान मनगढ़ंत हैं। उन्होने यह भी सवाल उठाया कि फोन सेवा प्रदाताओं से मिले काल डिटेल रिकार्ड की प्रति कुमार ने अपने पास रख ली।

शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सीबीआई से कहा था कि कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता से संबंधित साक्ष्य न्यायालय में पेश करके उसे संतुष्ट किया जाये कि राजनीतिक मकसद से इसकी जरूरत नहीं है। 

(भाषा इनपुट के साथ)

टॅग्स :सीबीआईममता बनर्जीपश्चिम बंगाल
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