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इंसान ही नहीं बेजुबान आवारा पशुओं की भी भूख शांत कर रहा है सामुदायिक किचन

By भाषा | Updated: May 4, 2020 21:00 IST

इस लॉकडाउन में लखनऊ में एक एनजीओ बेजुबान आवारा पशुओं की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। निगम की मदद से हम रोज 25 से 30 हजार रोटियां आवारा पशुओं को खिला रहे हैं ।

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ठळक मुद्देबेजुबान आवारा पशुओं की मदद के लिए अब एनजीओ आगे आ रहे हैं। लोगों को ही भोजन नहीं करा रहा है बल्कि बेजुबान आवारा पशुओं की भूख भी शांत कर रहा है।

लखनऊकोविड—19 के चलते लॉकडाउन के कारण उत्तर प्रदेश की राजधानी की सुनसान सड़कों पर भूखे घूमने को मजबूर हुए बेजुबान आवारा पशुओं की मदद के लिए अब एनजीओ आगे आ रहे हैं । अमौसी हवाईअड्डे के पास कानपुर रोड पर लखनउ नगर निगम द्वारा संचालित पशु आश्रय स्थल 'कान्हा उपवन' के प्रबंधक एवं पशु मित्र प्रकोष्ठ के प्रभारी यतेन्द्र त्रिवेदी ने 'भाषा' से कहा, ''कम्युनिटी किचेन अक्षय पात्र केवल क्वारेंटाइन सेंटर में रह रहे और अन्य लोगों को ही भोजन नहीं करा रहा है बल्कि बेजुबान आवारा पशुओं की भूख भी शांत कर रहा है।

'' लॉकडाउन के कारण सूनी सड़कों और गलियों में आवारा कुत्तों, गायों एवं वानरों के आक्रामक होने का कारण पूछे जाने पर त्रिवेदी ने बताया कि मुख्य कारण भूख है। त्रिवेदी ने बताया कि नगर निगम हम पशु प्रेमियों की मदद कर रहा है । निगम की मदद से हम रोज 25 से 30 हजार रोटियां आवारा पशुओं को खिला रहे हैं । हमारे सैकडों स्वयंसेवक हैं जो राजधानी के कोने कोने में जाकर भूखे जानवरों को खाना खिलाते हैं । उन्होंने बताया कि 25 से 30 हजार रोटियां रोज दी जा रही हैं । हम एनजीओ ‘अक्षय पात्र’ में आटा दे रहे हैं और वे हमें रोटी तैयार करके देते हैं ।

एक रोटी एक रूपये 10 पैसे की पडती है और आटे का दाम अलग से । हम गाय और बंदरों को दलिया और रोटियां खिला रहे हैं । पशु चिकित्सक डा. श्याम मोहन दुबे ने आवारा कुत्तों के हिंसक और आक्रामक होने की मनोवृत्ति पर कहा, ''आम तौर पर ऐसा नहीं होता । लेकिन इन्हें जहां पहले मीट मिलता था वहीं अब मन का खाना नहीं मिल पा रहा है । यही मुख्य समस्या है ।'

पशु प्रेमी कृष्ण कुमार ने बताया कि लॉकडाउन ने जब आम आदमी का जीवन मुश्किल भरा बना दिया है तो बेजुबान जानवर कहां जाएं । पशुओं को तो इस चिलचिलाती गर्मी में भोजन चाहिए और अगर वो नहीं मिल पाता तो वे भी बेचैन हो जाते हैं । त्रिवेदी ने कहा कि पहले कुत्तों का मनपसंद पैक किया हुआ भोजन मिल रहा था लेकिन अब वह महंगा हो गया है ।

फैक्टरी बंद है, पैक खाना मिल नहीं रहा है । जो बोरी 1400 रूपये की थी, अब 2000 रूपये से अधिक कीमत की मिल रही है । उन्होंने बताया कि राजधानी का जानकीपुरम इलाका 'बंदरों का प्वाइंट' है, जो नगर निगम की सीमाक्षेत्र में आता है । हम वहां बंदरों को उनकी पसंद का खाना खिला रहे हैं । मसलन केले और खीरे । गायों को भी खीरे खिला रहे हैं ।

उन्होंने बताया कि नगर निगम की सात गाडियां चल रही हैं जो आवारा पशुओं तक रोज भोजन पहुंचाने का काम कर रही हैं । भोजन तीन ग्रुप में जा रहा है और हम दूध की भी व्यवस्था कर रहे हैं । पुराने लखनउ में पशु क्रूरता के खिलाफ अभियान :कैम्पेन अगेन्स्ट एनिमल क्रुएलिटी: की संयोजक अर्चना शुक्ला ने कहा कि लखनउ में आवारा पशुओं के खानपान की सबसे बेहतर व्यवस्था हो रही है । 

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