Same Sex Marriages: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध, कहा- 'विवाह केवल पुरुष-महिला के बीच ही संभव'

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: October 17, 2023 01:32 PM2023-10-17T13:32:04+5:302023-10-17T13:37:50+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह पर आज अपना महत्वपूर्ण फैसला सुना दिया लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट से इतर राय है। संघ का मानना है कि समलैंगिक विवाह या समलैंगिकता समाज में फैला एक "मनोवैज्ञानिक विकार" है।

Same Sex Marriages: Rashtriya Swayamsevak Sangh protested, said- 'Marriage is possible only between man and woman' | Same Sex Marriages: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध, कहा- 'विवाह केवल पुरुष-महिला के बीच ही संभव'

Same Sex Marriages: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध, कहा- 'विवाह केवल पुरुष-महिला के बीच ही संभव'

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह पर आज अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट से इतर राय हैसंघ का मानना है कि समलैंगिकता समाज में फैला "मनोवैज्ञानिक विकार" के अलावा और कुछ नहीं है

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट में आज मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाते हुए कहा कि केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश यह सुनिश्चित करें कि समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव न हो।

इस फैसले में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा शामिल जजों में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस  हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे। चीफ चंद्रचूड़ ने फैसले में कहा कि कानून यह नहीं मान सकता कि केवल विपरीत लिंग के जोड़े ही अच्छे माता-पिता साबित हो सकते हैं क्योंकि यह समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव होगा।

वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अहमति जताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने कहा कि उसने हर समय समलैंगिक विवाह का विरोध किया है और आज भी वो अपने रूख पर मजबूती के साथ कायम है।

समाचार वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार संघ ने साफ शब्दों में कहा कि समलैंगिक विवाह या समलैंगिकता समाज में फैला एक "मनोवैज्ञानिक विकार" है।

इस साल की शुरुआत में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने समलैंगिकता के बारे में बात करने के लिए धर्मग्रंथों का हवाला दिया और इसे "जैविक" बताया। लेकिन संघ के अन्य वरिष्ठ चिंतकों ने कहा है कि समाज में स्वीकार्य होते हुए भी यह "अप्राकृतिक" है।

साल 2016 में संघ के तत्कालीन महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में कहा था, “आरएसएस को समलैंगिकता पर एक राय क्यों रखनी चाहिए? यह तब तक अपराध नहीं है जब तक यह दूसरों के जीवन को प्रभावित नहीं करता। यौन प्राथमिकताएं व्यक्तिगत मुद्दे हैं।"

संघ चिंतक होसबले  के बयान पर जब विवाद हुआ तो उन्होंने अगले दिन स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है बल्कि यह हमारे समाज में एक अनैतिक अपराध के तौर पर देखा जाता है। इस मामले में सज़ा देने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि इसे मनोवैज्ञानिक रूप में देखा जाना चाहिए। समलैंगिकता के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखना 'कोई अपराधीकरण नहीं लेकिन इसका महिमामंडन नहीं होना चाहिए।

इसके बाद सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को अपराध (धारा-377) की श्रेणी से बाहर करने के बाद संघ ने एक बयान जारी करके कहा था कि  समलैंगिक विवाह के प्रति अपने विरोध को स्पष्ट किया था। संघ प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम भी समलैंगिकता को अपराध नहीं मानते हैं लेकिन समलैंगिक विवाह प्रकृति के अनुकूल नहीं हैं।"

उन्होंने कहा था, ''समलैंगिक रिश्ते प्राकृतिक नहीं हैं, इसलिए हम इस तरह के रिश्ते का किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं करते हैं और भारतीय समाज भी ऐसे संबंधों को परंपरागत रूप से मान्यता नहीं देता है।"

लेकिन दिलचस्प है कि इस जनवरी में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस मुद्दे पर विपरीत तर्क देते हुए कहा था कि संघ हमारी परंपराओं के ज्ञान पर निर्भर करता है।

'द ऑर्गनाइज़र' को दिए एक इंटरव्यू में भागवत ने कहा था, “इन लोगों (समलैंगिक) को भी जीने का अधिकार है। हमने बिना ज्यादा शोर-शराबे के मानवीय दृष्टिकोण के साथ उन्हें सामाजिक स्वीकृति प्रदान करने का तरीका ढूंढ लिया है। यह ध्यान में रखते हुए कि वे भी इंसान हैं और उन्हें भी जीने का अधिकार है।"

उन्होंने कहा था, "हमारे पास एक ट्रांसजेंडर समुदाय है। हमने इसे समस्या के रूप में नहीं देखा। उनका एक संप्रदाय है और उनके अपने देवता भी हैं। आज उनके अपने महामंडलेश्वर भी हैं। कुम्भ के दौरान इन्हें विशेष स्थान दिया जाता है। वे हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हैं।”

मोहन भागवत ने कहा, "जब तक मनुष्य का अस्तित्व में है, यह रहेंगे। चूंकि मैं जानवरों का डॉक्टर हूं इसलिए जानता हूं कि ऐसे लक्षण जानवरों में भी पाए जाते हैं। यह एक जैविक प्रक्रिया का हिस्सा है और जीवन जीने का एक तरीका है।”

हालांकि, मोहन भागवत द्वारा 'द ऑर्गनाइज़र' को दिये इंटरव्यू के तीन महीने बाद मार्च में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के दौरान संघ महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने एक बार फिर समलैंगिक विवाह के प्रति संघ के विरोध को रेखांकित किया था।

उन्होंने कहा था, “विवाह केवल विपरीत लिंग के बीच ही हो सकता है। मैंने यह बात ऑन रिकॉर्ड पहले भी कही है और अब भी कह रहा हूं। आप अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ रह सकते हैं लेकिन हिंदू दर्शन में विवाह एक संस्कार है। विवाह केवल भोग का साधन नहीं है और न ही अन्य धर्मों की तरह कोई अनुबंध है।"

दत्तात्रेय होसबले ने आगे कहा था, "विवाह के संस्कार का मतलब है कि महिला और पुरुष शादी करते हैं और एक साथ रहते हैं लेकिन सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि इसके साथ वो एक नये परिवार की नींव भी रखते हैं। तो जो लोग विवाह के जरिये गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करते हैं वे इस आदर्श को पूरा करने के लिए वहां आते हैं।"

उन्होंने कहा, "विवाह व्यक्तिगत, शारीरिक और यौन आनंद के लिए नहीं है। विवाह संस्था में कुछ सुधारों की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन विवाह हमेशा पुरुष और महिला के बीच ही होगा।''

Web Title: Same Sex Marriages: Rashtriya Swayamsevak Sangh protested, said- 'Marriage is possible only between man and woman'

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