'दिवाली पर उल्लुओं का बलि देना एक अंधविश्वास', डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत ने कहा- नहीं ध्यान दिया गया तो गायब हो सकती है यह प्रजातियां

By भाषा | Published: October 23, 2022 05:35 PM2022-10-23T17:35:07+5:302022-10-23T17:50:06+5:30

आपको बता दें कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत के अनुसार, अंधविश्वास के कारण उल्लू की मांग इतनी अधिक है कि इनके भविष्य पर खतरा उत्पन्न हो गया है।

Sacrificing owls on Diwali is a superstition WWF-India this species may disappear if not taken care | 'दिवाली पर उल्लुओं का बलि देना एक अंधविश्वास', डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत ने कहा- नहीं ध्यान दिया गया तो गायब हो सकती है यह प्रजातियां

फोटो सोर्स: ANI (प्रतिकात्मक फोटो)

Highlightsडब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत ने कहा है कि दिवाली पर उल्लुओं का बलि देना एक अंधविश्वास है। इसके मुताबिक, अगर इन प्रजातियों पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह हमेशा के लिए गायब हो सकते है। ऐसे में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत ने इसके लिए कुछ जरूरी कदम भी उठाए है।

नई दिल्ली: रोशनी का पर्व दीपावली लोगों के लिए खुशियां लेकर आता है, लेकिन इस पावन त्योहार पर ‘उल्लू’ अंधविश्वास की भेंट भी चढ़ते हैं। ‘उल्लुओं’ के संरक्षण के लिए विश्व वन्यजीवन कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ)-भारत ने जागरूकता फैलाने एवं इसके शिकार एवं तस्करी बंद करने की आवश्यकता जताई है। 

देश में कौन सी मिथकीय धारणा काफी प्रचलित है

दरअसल, भारत में उल्लुओं के बारे में यह मिथकीय धारणा प्रचलित है कि यदि दीपावली के मौके पर इस पक्षी की बलि दी जाए तो धन-संपदा में वृद्धि होती है। ऐसे में कई लोग इस पावन पर्व पर अपने स्वार्थ के लिए उल्लुओं की बलि देते हैं, जिसके कारण हर साल काफी संख्या में इस परिंदे को जान से हाथ धोना पड़ता है। 

इस पर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने क्या लिखा है

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत के एक नये लेख में कहा गया है, ‘‘भारत में उल्लू की 36 प्रजातियां पायी जाती हैं और इन सभी को भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत शिकार, कारोबार या किसी प्रकार के उत्पीड़न से संरक्षण प्राप्त है।’’ लेख में कहा गया है कि कानूनी संरक्षण के बावजूद आमतौर पर यह पाया गया है कि उल्लू की कम से कम 16 प्रजातियों की अवैध तस्करी एवं कारोबार किया जा रहा है। 

इसमें इन प्रजातियों में खलिहानों में पाया जाने वाला उल्लू, ब्राउन फिश उल्लू, ब्राउन हॉक उल्लू, कॉलर वाला उल्लू, काला उल्लू, पूर्वी घास वाला उल्लू, जंगली उल्लू, धब्बेदार उल्लू, पूर्वी एशियाई उल्लू, चितला उल्लू आदि शामिल हैं। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत के अनुसार, प्रत्येक वर्ष इस अजीबोगरीब रिवाज के कारण ग्रामीण इलाकों एवं कस्बों में आस्था एवं अंधविश्वास के कारण उल्लू की बलि चढ़ाने की घटनाएं सामने आती हैं। 

जागरूकता की कमी से हो रही है बलि-डब्ल्यूडब्ल्यूएफ 

उल्लू के बारे में गलत धारणा एवं जागरूकता की कमी, इसके अवैध कारोबार की पहचान एवं रोकथाम के लिए कानून अनुपालन एजेंसियों की सीमित क्षमता के कारण अवैध गतिविधियों पर रोक लगाना चुनौतीपूर्ण हो गया है। 

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत ने उठाया है यह कदम

इसमें कहा गया है कि इन कमियों को दूर करने और उल्लू के संरक्षण के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत ने आम लोगों के लिए हिन्दी एवं अंग्रेजी में पोस्टर एवं आईडी कार्ड के रूप में पहचान उपकरण उपलब्ध कराये हैं। संगठन ने कहा है कि उल्लू हमारे पारिस्थितिकी-तंत्र का बेहद ही महत्वपूर्ण पक्षी है, जो खाद्य-श्रृंखला प्रणाली के तहत जैव विविधता को संतुलित बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

उल्लू कैसे हमारे लिए फायदेमंद है

यह शिकारी पक्षी कई हानिकारक कीट-पतंगों एवं टिड्डों को खाकर हमारी फसलों और खाद्यान्नों की सुरक्षा करता है। यही नहीं उल्लू को देवी लक्ष्मी का वाहन भी कहा गया है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-भारत के अनुसार, अंधविश्वास के कारण उल्लू की मांग इतनी अधिक है कि इनके भविष्य पर खतरा उत्पन्न हो गया है। 

इसमें आगे यह भी कहा गया है कि ‘‘उल्लू के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना जरूरी है, क्योंकि अंधविश्वास के कारण ही इसका शिकार एवं तस्करी की जाती है। इस दीपावली पर भारत में उल्लू के बारे में ज्ञान की जीत हो।’’

Web Title: Sacrificing owls on Diwali is a superstition WWF-India this species may disappear if not taken care

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