सबरीमाला मामलाः न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा- प्रत्येक व्यक्ति याद रखे कि भारत का संविधान पवित्र ग्रंथ है

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 15, 2019 08:12 PM2019-11-15T20:12:56+5:302019-11-15T20:34:23+5:30

न्यायमूर्ति नरीमन ने अल्पमत वाले फैसले में कहा, ‘‘प्रत्येक व्यक्ति यह याद रखे कि भारत का संविधान पवित्र ग्रंथ है और इस पुस्तक को अपने हाथों में लेकर भारत के नागरिक एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ेंगे, ताकि वे भारत के इस विशाल अधिकारपत्र द्वारा तय किये गये महान लक्ष्यों को हासिल करने के लिये मानव प्रयास के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ सकें। ’’

Sabarimala case: Justice Nariman said- Let everyone remember that the Constitution of India is a holy book | सबरीमाला मामलाः न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा- प्रत्येक व्यक्ति याद रखे कि भारत का संविधान पवित्र ग्रंथ है

न्यायमूर्ति नरीमन ने अपनी और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ की ओर से लिखे फैसले में बहुमत के निर्णय के साथ सहमत होने में असमर्थता व्यक्त की।

Highlightsसंविधान उच्चतम न्यायालय के फैसलों को लागू कराने के लिये सभी प्राधिकारों पर एक ऐसा दायित्व निर्धारित करता है।आखिरकार, भारत के नियति से साक्षात्कार में हमने कानून का शासन चुना जैसा कि भारत के संविधान ने निर्धारित किया है।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन ने सबरीमला मामले में अल्पमत वाले फैसले में बृहस्पतिवार को कहा कि ‘प्रत्येक व्यक्ति याद रखे कि भारत का संविधान पवित्र ग्रंथ है।’

न्यायमूर्ति नरीमन ने अपने लिये और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के लिये फैसला लिखते हुए यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि किसी फैसले की प्रामाणिक या नेकनीयती से आलोचना किये जाने की निश्चित तौर पर इजाजत है लेकिन उच्चतम न्यायालय के निर्देश या आदेश को रोकना या रोकने के लिये लोगों को प्रेरित करने की हमारी संवैधानिक व्यवस्था इजाजत नहीं देती। उन्होंने कहा, ‘‘आखिरकार, भारत के नियति से साक्षात्कार में हमने कानून का शासन चुना जैसा कि भारत के संविधान ने निर्धारित किया है।’’

न्यायमूर्ति नरीमन ने अल्पमत वाले फैसले में कहा, ‘‘प्रत्येक व्यक्ति यह याद रखे कि भारत का संविधान पवित्र ग्रंथ है और इस पुस्तक को अपने हाथों में लेकर भारत के नागरिक एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ेंगे, ताकि वे भारत के इस विशाल अधिकारपत्र द्वारा तय किये गये महान लक्ष्यों को हासिल करने के लिये मानव प्रयास के सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ सकें। ’’ अल्पमत वाले फैसले में कहा गया है कि संविधान उच्चतम न्यायालय के फैसलों को लागू कराने के लिये सभी प्राधिकारों पर एक ऐसा दायित्व निर्धारित करता है जिसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।

इसमें कहा गया है, ‘‘ऐसा करने का कर्तव्य इसलिए पैदा होता है कि कानून के शासन को संरक्षित रखना जरूरी है। यदि जिन लोगों का कर्तव्य अनुपालन करना है और वे इस बारे में विवेकाधिकार का इस्तेमाल करेंगे कि अदालत के आदेश का पालन करना है या नहीं, तो कानून का शासन व्यर्थ हो जाएगा।’’

उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने बहुमत के निर्णय से सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के 2018 के फैसले पर पुनर्विचार की याचिका के साथ ही मुस्लिम और पारसी महिलाओं के साथ कथित रूप से भेदभाव करने वाले अन्य विवादास्पद मुद्दों को फैसले के लिये सात सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप दिया है। हालांकि, प्रधान न्यायाधीश और दो अन्य न्यायाधीशों के बहुमत के फैसले से न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ सहमत नहीं थे।

न्यायमूर्ति नरीमन ने अपनी और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ की ओर से लिखे फैसले में बहुमत के निर्णय के साथ सहमत होने में असमर्थता व्यक्त की और कहा कि पुनर्विचार याचिका का दायरा सिर्फ रजस्वला महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश तक सीमित था।

उन्होंने राज्य सरकार को शीर्ष अदालत का 2018 के फैसले पर सख्ती से अमल करने का निर्देश दिया। बहुमत के फैसले में पीठ ने वृहद पीठ के विचार के लिये सात सवाल तैयार किये हैं। इनमे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता, ‘संवैधानिक नैतिकता’ को रेखांकित करने की आवश्यकता, किस सीमा तक न्यायालय किसी धर्म की परंपराओं की जांच कर सकता है और अनुच्छेद 25 के अंतर्गत हिन्दुओं के वर्गो से तात्पर्य आदि शामिल हैं।

धार्मिक परंपराओं से संबधित मामलों में जनहित याचिकाओं को न्यायिक मान्यता की इजाजत पर भी वृहद पीठ को विचार करना है। न्यायमूर्ति नरिमन और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ ने इस पर असहमति व्यक्त करते हुये अलग से अपना दृष्टिकोण रखा और कहा कि हमारे सामने 2018 के फैसले पर पुनर्विचार और उसे चुनौती देने वाली नयी याचिकायें थीं। सबरीमला मंदिर प्रकरण में संविधान पीठ ने बहुमत का निर्णय 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित 65 याचिकाओं पर सुनाया।

न्यायालय के 28 सितंबर के फैसले का केरल में हिंसक विरोध होने के बाद ये याचिकायें दायर की गयी थीं। शीर्ष न्यायालय ने 28 सितंबर, 2018 को 4:1 के बहुमत से फैसला देते हुए, सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर रोक की व्यवस्था को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दिया था। पीठ की एक मात्र महिला सदस्य न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अल्पमत का फैसला सुनाया था।

Web Title: Sabarimala case: Justice Nariman said- Let everyone remember that the Constitution of India is a holy book

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