हमें इतनी शक्ति दीजिए हमें विश्व में कोई न हरा सके?, मोहन भागवत बोले-हिंदू समाज में एकता और भारत को सैन्य शक्ति से बनाओ मजबूत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 25, 2025 19:25 IST2025-05-25T19:23:42+5:302025-05-25T19:25:09+5:30

विश्व में कुछ ऐसी दुष्ट शक्तियां हैं जो स्वभाव से आक्रामक हैं। हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है। हमें शक्ति संपन्न होना ही पड़ेगा क्योंकि हम अपनी सभी सीमाओं पर दुष्ट लोगों की दुष्टता देख रहे हैं।

rss cheif Mohan Bhagwat said Give us so much power that no one world can defeat us Make unity in Hindu society and India strong with military power | हमें इतनी शक्ति दीजिए हमें विश्व में कोई न हरा सके?, मोहन भागवत बोले-हिंदू समाज में एकता और भारत को सैन्य शक्ति से बनाओ मजबूत

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Highlightsसुरक्षा के मामले में हम किसी पर निर्भर न हों, हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर लें।सारी दुनिया मिलकर भी हमें जीत न सके, इतना सामर्थ्य संपन्न हमें होना ही है।सज्जन व्यक्ति केवल सज्जनता के कारण सुरक्षित नहीं रहता।

नई दिल्लीः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज में एकता और भारत को सैन्य शक्ति एवं अर्थव्यवस्था की दृष्टि से इतना शक्तिशाली बनाने का आह्वान किया है कि ‘‘कई शक्तियां एक साथ आकर’’ भी इस पर ‘‘जीत’’ हासिल न कर सकें। हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ताकत को सद्गुणों और नीतिपरायणता के साथ जोड़ा जाना चाहिए क्योंकि ‘‘मात्र पाशविक शक्ति’’ दिशाहीन हो सकती है और ‘‘घोर हिंसा’’ को जन्म दे सकती है। उन्होंने आरएसएस से जुड़ी साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य के ताजा संस्करण में प्रकाशित साक्षात्कार में कहा कि भारत के पास शक्तिशाली होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि वह अपनी सभी सीमाओं पर ‘बुरी ताकतों की दुष्टता देख रहा है।’’

यह साक्षात्कार लगभग दो महीने पहले बेंगलुरु में आरएसएस की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद किया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य शक्ति और आर्थिक शक्ति पर संघ के दृष्टिकोण के बारे में पूछे जाने पर भागवत ने कहा, ‘‘हमें बल संपन्न होना ही पड़ेगा।

संघ में प्रार्थना की पंक्ति ही है-‘अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्’ (हमें इतनी शक्ति दीजिए कि हमें विश्व में कोई न हरा सके)।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। भागवत ने कहा, ‘‘अपना स्वयं का बल ही वास्तविक बल है। सुरक्षा के मामले में हम किसी पर निर्भर न हों, हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर लें।

सारी दुनिया मिलकर भी हमें जीत न सके, इतना सामर्थ्य संपन्न हमें होना ही है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘विश्व में कुछ ऐसी दुष्ट शक्तियां हैं जो स्वभाव से आक्रामक हैं। हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है। हमें शक्ति संपन्न होना ही पड़ेगा क्योंकि हम अपनी सभी सीमाओं पर दुष्ट लोगों की दुष्टता देख रहे हैं।’’ भागवत ने कहा, ‘‘सज्जन व्यक्ति केवल सज्जनता के कारण सुरक्षित नहीं रहता।

सज्जनता के साथ शक्ति चाहिए। केवल अकेली शक्ति दिशाहीन होकर हिंसा का कारण बन सकती है इसलिए उसके साथ सज्जनता भी चाहिए।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार रक्षकों को पड़ोसी देशों में शोषण और हिंसा का सामना कर रहे हिंदुओं की चिंता है, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि किसी को हिंदू की चिंता केवल तभी होगी, जब हिंदू सशक्त बनेंगे।

उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू समाज और भारत देश आपस में जुड़े हैं इसलिए हिंदू समाज का बहुत अच्छा स्वरूप भारत को भी बहुत अच्छा देश बनाएगा। जो अपने आप को भारत में हिंदू नहीं कहते, यह उन्हें भी साथ लेकर चल सकेगा, क्योंकि वे भी हिंदू ही थे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ यदि भारत का हिंदू समाज सामर्थ्यवान होगा तो विश्व भर के हिंदुओं का सामर्थ्य अपने आप बढ़ेगा।’’

भागवत ने कहा कि हिंदू समाज को मजबूत करने के लिए काम चल रहा है लेकिन यह अभी पूरा नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, ‘‘धीरे-धीरे वह स्थिति आ रही है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए अत्याचार पर इस बार जिस तरह आक्रोश व्यक्त किया गया, वैसा पहले नहीं हुआ। वहां के हिंदुओं ने भी यह कहा है कि वे भागेंगे नहीं, बल्कि वहीं रहकर अपने अधिकार प्राप्त करेंगे।’’

आरएसस प्रमुख ने कहा कि अब हिंदू समाज का ‘‘आंतरिक सामर्थ्य’’ बढ़ रहा है। भागवत ने आरएसएस के शताब्दी वर्ष में शुभचिंतकों, विचारकों और हिंदू समाज के लिए उनके संदेश के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘‘हिंदू समाज को अब जागृत होना ही पड़ेगा। अपने सारे भेद और स्वार्थ भूलकर हमें हिंदुत्व के शाश्वत धर्म मूल्यों के आधार पर अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक एवं पेशेवर जीवन को आकार देना होगा।’’ भागवत ने कहा, ‘‘विश्व को नयी राह की प्रतीक्षा है और वह दिखाना भारत का यानी हिंदू समाज का ईश्वर प्रदत्त कर्तव्य है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कृषि क्रांति हो गई, उद्योग क्रांति हो गई, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की क्रांति हो गई, अब धार्मिक क्रांति की आवश्यकता है। मैं धर्म की बात नहीं कर रहा हूं लेकिन सत्य, शुचिता एवं करुणा के आधार पर मानव जीवन की पुनर्रचना करनी होगी।’’ भागवत ने कहा कि आरएसएस एक सिद्धांत-केंद्रित संगठन है और इसकी मूल कार्यप्रणाली में यह विचार अंतर्निहित है कि ‘भारत एक हिंदू राष्ट्र है।’

उन्होंने कहा, ‘‘हम महान व्यक्तित्वों से प्रेरणा ले सकते हैं और उनके बताए मार्ग का अनुसरण कर सकते हैं, लेकिन प्रत्येक देश-काल-परिस्थिति में हमें अपना मार्ग स्वयं बनाना होगा। इसके लिए हमें निरंतर यह समझने की आवश्यकता है कि क्या नित्य है और क्या अनित्य है।’’ भागवत ने कहा, ‘‘संघ में क्या नित्य है?

बालासाहेब ने एक बार कहा था, ‘हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है।’ इसके अलावा संघ में बाकी सब कुछ क्षणभंगुर है। पूरा हिंदू समाज इस राष्ट्र का जवाबदेह संरक्षक है। इस देश की प्रकृति और ‘संस्कृति’ हिंदू है। इसलिए, यह एक हिंदू राष्ट्र है।’’ उन्होंने कहा कि सब कुछ इसी मूल भावना को बनाए रखते हुए किया जाना चाहिए।

भागवत ने कहा कि आरएसएस में चर्चा के दौरान विविध और परस्पर विरोधी राय व्यक्त करने की ‘‘पूर्ण स्वतंत्रता’’ है, लेकिन जब आम सहमति बनाकर निर्णय लिया जाता है तो हर कोई अपनी व्यक्तिगत राय को एक तरफ रखकर सामूहिक निर्णय में खुद को शामिल कर लेता है।

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