‘तय अवधि में आरोपपत्र दायर नहीं होने पर जमानत मांगने का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपरिहार्य हिस्सा’

By भाषा | Published: October 20, 2021 03:51 PM2021-10-20T15:51:10+5:302021-10-20T15:51:10+5:30

'Right to seek bail if chargesheet is not filed within stipulated period is an indispensable part of personal liberty' | ‘तय अवधि में आरोपपत्र दायर नहीं होने पर जमानत मांगने का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपरिहार्य हिस्सा’

‘तय अवधि में आरोपपत्र दायर नहीं होने पर जमानत मांगने का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपरिहार्य हिस्सा’

नयी दिल्ली, 20 अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि निर्धारित अवधि में आरोप-पत्र दायर नहीं होने पर जमानत मांगने का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक अपरिहार्य हिस्सा भी है जिसे महामारी की स्थिति के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी के स्वतंत्र होने के अधिकार को जांच जारी रखने और आरोप पत्र दायर करने के राज्य के अधिकार पर प्राथमिकता है।

कानून के अनुसार, एक बार गिरफ्तारी के बाद मामले में जांच के लिये अधिकतम अवधि, जो 60, 90 और 180 दिन (अपराध की प्रकृति के मुताबिक) है, प्रदान की जाती है और इस अवधि में कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया जाता है, तो आरोपी जमानत पर रिहा होने का हकदार हो जाता है, जिसे ‘डिफॉल्ट’ (आरोप पत्र दायर करने में चूक के कारकण मिली) जमानत कहते हैं।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि एक विचाराधीन कैदी को हिरासत में भेजने या उसकी हिरासत अवधि के विस्तार के आदेश को एक न्यायिक कार्य माना जाता है, जिसमें दिमाग के उचित उपयोग की आवश्यकता होती है।

अदालत ने कहा, “दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत लेने का अधिकार न सिर्फ वैधानिक बल्कि एक मौलिक अधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के जरिये प्रदत्त है। इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक अपरिहार्य हिस्सा माना गया है और इस तरह के अधिकार को महामारी की स्थिति में भी निलंबित नहीं किया जा सकता है।”

अदालत ने कहा, “आरोपी के स्वतंत्र होने के अधिकार को जांच करने और आरोप पत्र जमा करने के राज्य के अधिकार पर प्राथमिकता दी गई है।”

अदालत ने कहा कि संविधान के तहत एक विचाराधीन कैदी के अधिकारों को प्रक्रिया के तकनीकी पहलुओं के आधार पर खत्म करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और यह सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश दिए गए हैं कि निर्धारित अवधि में आरोप पत्र दायर नहीं होने की स्थिति में जमानत लेने का उनका अधिकार पराजित नहीं हो और किसी आरोपी की हिरासत यंत्रवत नहीं बढ़ाई जाए।

उच्च न्यायालय ने एक विवाहिता के उत्पीड़न और दहेज के लिए हत्या के मामले में गिरफ्तारी से 90 दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर आरोप पत्र दाखिल करने में अभियोजन की विफलता के कारण जमानत की मांग करने वाले एक विचाराधीन कैदी की याचिका पर यह फैसला दिया। आरोपी ने निर्धारित अवधि में आरोप पत्र न दाखिल किये जाने के कारण जमानत के लिये दायर की गई पुनर्विचार याचिका को निचली अदालत द्वारा खारिज करने के बाद उच्च न्यायालय का रुख किया था।

उच्च न्यायालय ने निर्धारित अवधि में आरोप-पत्र दायर करने में अभियोजन के विफल रहने के कारण उस व्यक्ति को 25,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत के भुगतान पर जमानत पर रिहा कर दिया और उसे निर्देश दिया कि वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या पूर्व अनुमति के बिना दिल्ली छोड़ने की कोशिश न करे।

आरोपी व्यक्ति को 18 जनवरी 2020 को दहेज हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था और मजिस्ट्रेट अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया था जिसे समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा।

गिरफ्तारी से 90 दिन की अवधि 18 अप्रैल 2020 को खत्म होने पर आरोपी ने 20 अप्रैल को ई-मेल के जरिये जमानत केलिये आवेदन किया क्योंकि महामारी के कारण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के की वजह से प्रत्यक्ष सुनवाई नहीं हो रही थी। हालांकि उसके आवेदन पर कोई जवाब नहीं आया।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: 'Right to seek bail if chargesheet is not filed within stipulated period is an indispensable part of personal liberty'

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे