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शिक्षा का अधिकार का मकसद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है, इसके लिये प्रतिभावान शिक्षक होने चाहिए:न्यायालय

By भाषा | Updated: November 19, 2020 22:13 IST

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नयी दिल्ली, 19 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21ए के अंतर्गत शिक्षा के अधिकार का मकसद बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना है और इसके लिये शिक्षकों का प्रतिभावान और श्रेष्ठ होना जरूरी है।

न्यायमूर्ति उदय यू ललित और न्यायमूर्ति एम एम शांतानागौडार की पीठ ने उत्तर प्रदेश में 2019 के लिये सहायक शिक्षकों की भर्ती परीक्षा में योग्यता के लिये न्यूनतम अंक 65 और 60 प्रतिशत निर्धारित करने के राज्य सरकार के निर्णय को सही ठहराते हुये यह टिप्पणी की।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार का प्रयास श्रेष्ठ शिक्षकों का चयन करना है और इसलिए उसका यह कदम पूरी तरह से न्यायोचित है। न्यायालय ने राज्य सरकार को इस साल 12 मई को घोषित नतीजों के आधार पर प्रदेश में सहायक बेसिक शिक्षकों के रिक्त 69,000 पदों पर नियुक्तियां करने की अनुमति प्रदान कर दी।

न्यायालय ने कहा कि सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा-2019 में कट ऑफ प्रतिशत 65-60 निर्धारित करने का सरकार का फैसला पूरी तरह वैध और न्यायोचित है। न्यायालय ने कहा कि इस परीक्षा में बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों के शामिल होने और परीक्षा के स्वरूप को देखते हुये उपलब्ध प्रतिभा में से श्रेष्ठ का चयन करने के लिये यह कट ऑफ निर्धारित किया गया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस पर जोर देने की कोई आवश्यकता नहीं है कि अनुच्छेद 21ए में शिक्षा के अधिकार में यह परिकल्पित किया गया है कि बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान की जायेगी और इसके लिये प्रतिभावान और श्रेष्ठ शिक्षकों का होना महत्वपूर्ण है।

पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पिछले साल के आदेश के खिलाफ ‘उप्र प्राथमिक शिक्षा मित्र एसोसिएशन’ और अन्य शिक्षा मित्रों की अपील खारिज करते हुये कहा, ‘‘कोई भी प्रक्रिया जो सभी अभ्यर्थियों पर समान रूप से लागू होती है और जिसे श्रेष्ठ प्रतिभा लाने के लिये तैयार किया गया है, उसे मनमाना या तर्कहीन नहीं कहा जा सकता।’’ उच्च न्यायालय ने इस परीक्षा में कट ऑफ अंक 65-60 प्रतिशत निर्धारित करने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा था।

शीर्ष अदालत ने यह फैसला बुधवार को सुनाया था।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें 7 जनवरी, 2019 के आदेश के तहत कट ऑफ 65-60 निर्धारित करने में कोई भी अवैध या अनुचित नही मिला है। रिकार्ड पर उपलब्ध तथ्यों से संकेत मिलता है कि यह कट ऑफ रखने के बाद भी पात्रता रखने वाले अभ्यर्थियों की संख्या उपलब्ध रिक्त स्थानों से दुगुनी से भी अधिक है।’’

राज्य सरकार ने इस आदेश के तहत सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा में सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों के लिये 65 प्रतिशत और आरक्षित वर्ग के लिये 60 प्रतिशत अंकों की कट ऑफ सीमा निर्धारित की थी।

पीठ ने कहा कि परीक्षा के स्वरूप और इसकी कठिनाई, परीक्षा में शामिल अभ्यर्थियों की संख्या पर विचार करने के बाद संबंधिति प्राधिकारियों को चयन का ऐसा आधार तैयार करने का अधिकार है जिससे श्रेष्ठ उपलब्ध शिक्षकों का चयन सुनिश्चित किया जा सके। इस तरह का प्रयास निश्चित ही शिक्षा के अधिकार कानून के अंतर्गत प्रतिपादित उद्देश्यों के अनुरूप है।

न्यायालय ने राज्य सरकार के इस कथन का भी संज्ञान लिया कि वह अगली सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिये ‘शिक्षा मित्रों’ को एक अवसर और देने के लिये तैयार है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस अवसर का लाभ उठाने के लिये इसके तरीके और स्वरूप पर विचार का मसला राज्य सरकार के विवेक पर छोड़ रहे है। यह कहने की आवश्यकता नही है कि यह मामला पूरी तरह से राज्य सरकार के विवेक पर छोड़ा जा रहा है।

राज्य सरकार का कहना था कि कट ऑफ बढ़ाने का उद्देश्य इस परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ अभ्यर्थियों को आकर्षित करना था और इस फैसले में कुछ भी गैर कानूनी नहीं है।

शीर्ष अदालत ने 25 जुलाई, 2017 को राज्य सरकार से कहा था कि टेट सहायक शिक्षक के पद के लिये 1,37,517 शिक्षकों की भर्ती रद्द की जाये लेकिन उन्हें दो बार की भर्तियों में अनुभव का लाभ दिया था।

राज्य सरकार ने छह महीने बाद 17 जनवरी, 2018 को पहली बार 69,000 शिक्षकों की सेवाओं के लिये सहायक शिक्षक पदों के लिये लिखित परीक्षा करने का आदेश जारी किया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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