सुरंग से निकाले गए श्रमिकों को वायुसेना के चिनूक हेलिकॉप्टर से एम्स ऋषिकेश लाया गया, गहन स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 29, 2023 03:47 PM2023-11-29T15:47:39+5:302023-11-29T15:50:36+5:30
सुरंग से बाहर निकाले जाने के बाद उन्हें सिलक्यारा से 30 किलोमीटर दूर स्थित चिन्यालीसौड़ अस्पताल ले जाया गया था जहां उन्हें चिकित्सकीय निगरानी में रखा गया था । सभी श्रमिक स्वस्थ हैं लेकिन 16 दिन सुरंग में रहने के कारण संभावित स्वास्थ्य परेशानियों के द्रष्टिगत उन्हें एम्स ऋषिकेश ले जाया गया है।
ऋषिकेश: उत्तरकाशी जिले की सिलक्यारा सुरंग से निकाले गए श्रमिकों को हवाई रास्ते के जरिए बुधवार को एम्स ऋषिकेश लाया गया जहां उनका गहन स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा । भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर के जरिए सभी 41 श्रमिकों को चिन्यालीसौड़ से एम्स ऋषिकेश पहुंचा दिया गया है । केंद्र और राज्य सरकार की विभिन्न एजेंसियों द्वारा लगातार युद्धस्तर पर चलाए गए बचाव अभियान के 17 वें दिन मंगलवार रात को सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया था।
सुरंग से बाहर निकाले जाने के बाद उन्हें सिलक्यारा से 30 किलोमीटर दूर स्थित चिन्यालीसौड़ अस्पताल ले जाया गया था जहां उन्हें चिकित्सकीय निगरानी में रखा गया था । सभी श्रमिक स्वस्थ हैं लेकिन 16 दिन सुरंग में रहने के कारण संभावित स्वास्थ्य परेशानियों के द्रष्टिगत उन्हें एम्स ऋषिकेश ले जाया गया है। एम्स ऋषिकेश के एक अधिकारी ने बताया कि श्रमिकों को पहले ट्रॉमा वार्ड में ले जाया जाएगा।
उन्होंने बताया कि वहां से उन्हें 100 बिस्तरों वाले आपदा वार्ड में स्थानांतरित कर दिया जाएगा जहां उनके स्वास्थ्य के सभी पैरामीटर चेक किए जाएंगे । उन्होंने बताया कि अस्पताल में श्रमिकों के स्वस्थ्य परीक्षण के लिए सभी सुविधाएं और चिकित्सक मौजूद हैं । इससे पहले, चिन्यालीसौड़ अस्पताल में श्रमिकों से मिलकर उनका हालचाल लेने के बाद मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि सभी लोग स्वस्थ और प्रसन्न हैं लेकिन डॉक्टरों के परामर्श पर उन्हें जांच के लिए एम्स ऋषिकेश भेजा जा रहा है।
बारह नवंबर को चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही साढ़े चार किलोमीटर लंबी सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने से मलबे के दूसरी ओर 41 श्रमिक फंस गए थे जो युद्धस्तर पर चलाए गए बचाव अभियान के बाद मंगलवार को सकुशल बाहर निकाले गए ।
अंदर फंसे मजदूरों ने अपनी प्यास बुझाने के लिए चट्टानों से टपकते पानी को चाटा और शुरूआती दस दिनों तक मुरमुरे खाकर जीवित रहे। शुरूआती दस दिनों की चिंता के बाद पानी की बोतलें, केले, सेब और संतरे जैसे फलों के अलावा चावल, दाल और चपाती जैसे गर्म भोजन की आपूर्ति नियमित रूप से की जाने लगी।