यूपी चुनाव: योगी के गढ़ पूर्वांचल में नहीं चल पा रहा है धार्मिक कार्ड, जातीय समीकरण तय करेंगे हार-जीत
By शीलेष शर्मा | Published: March 2, 2022 08:11 PM2022-03-02T20:11:17+5:302022-03-02T20:21:55+5:30
साल 2017 के चुनाव में योगी ने पूर्वांचल से भाजपा की झोली में 57 में से 46 सीटें डाल दी थी लेकिन इस बार समीकरण बदले हुये हैं। इस चुनाव में जो भी दल जातीय समीकरण का गणित बैठाने में कामयाब होगा, वही 57 सीटों पर कब्जा जमा पाएगा।
दिल्ली: उत्तर प्रदेश चुनाव लगभग अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। छठवें चरण का मतदान प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिये परीक्षा की घड़ी है क्योंकि अगर सही मायने में देखें तो छठवें चरण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अस्तित्व दांव पर लगा है। वह स्वयं भी गोरखपुर से चुनाव मैदान में हैं।
साल 2017 के चुनाव में योगी ने पूर्वांचल से भाजपा की झोली में 57 में से 46 सीटें डाल दी थी लेकिन इस बार समीकरण बदले हुये हैं। इस चुनाव में जो भी दल जातीय समीकरण का गणित बैठाने में कामयाब होगा, वही 57 सीटों पर कब्जा जमा पाएगा।
हमको याद करना होगा कि साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने 32 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा को केवल 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इन नतीजों से साफ है कि जिसके पक्ष में हवा बहती है, पूर्वांचल का मतदाता उधर रुख कर लेता है। लेकिन इस बार जातीय समीकरण हावी होती नजर आ रही है।
ब्राह्मण मतदाताओं का इस इलाके में दबदबा रहा है, ब्राह्मण ने जिस दल की ओर रुख किया, दूसरी जातियां भी उधर की ओर मुड़ जाती हैं। दलित और मुस्लिम मतदाता भी कुछ सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। धार्मिक मुद्दे यहां गैर मायने साबित हो रहे हैं क्योंकि जातीय समीकरण यहां काफी हावी है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में छोटी जातियों के प्रभाव को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है। बसपा प्रमुख मायावती दलित और मुस्लिम मतदाताओं पर दांव लगा रही हैं, वहीं सपा अपने पक्ष में यादव ,मुस्लिम और छोटी जातियों को लामबंद कर रही है।
भाजपा ठाकुर और निषाद सहित अन्य छोटी जातियों के दम पर जीतने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस महिला मतदाताओं के आलावा ब्राह्मण और मुस्लिम वोटों पर नज़र लगाये बैठी है, जो दल जातीय समीकरण का गणित बैठा लेगा वो ही छठवें चरण के चुनाव का शहंशाह बनेगा।