आज तक सभी ने हिन्दी या संस्कृत में रामायण पढ़ी अथवा सुनी होगी, लेकिन जब कोई उर्दू में रामायण वाचन की बात करे तो अपने आप में कुछ अलग ही एहसास होता है। राजस्थान के बीकानेर जिले में दीवाली के मौके पर प्रतिवर्ष कुछ ऐसे ही अलग अंदाज में उर्दू में रामायण का वाचन होता है जिसे सुनकर हर कोई अभिभूत हो जाता है। इसे सुनने के लिए देशभर से ही नहीं अपितु विदेशों से भी सैलानी आते हैं।
बीकानेर में रामायण का उर्दू में वाचन ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना‘ का संदेश देता प्रतीत होता है। पर्यटन लेखक संघ और महफिले अदब पिछले कई सालों से निरंतर इसका आयोजन करता आ रहा है।
यहां वाचन की जाने वाली उर्दू रामायण को लखनऊ के मौलवी बादशाह राना लखनवी ने बीकानेर में ही 1936 में लिखा था, जिसे स्वर्णपदक से नवाजा गया था और उर्दू में लिखी छंद की बेहतरीन रामायण माना जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह मात्र नौ पृष्ठों की है और छह छह लाइनों के छंदों में पूरी रामायण समाई हुई है जिसका महज आधे घंटे में पूरा पाठ किया जा सकता है।
आयोजन से जुड़े हाजी फरमान अली कहते है कि राम हिन्दू मुस्लिम के न होकर सम्पूर्ण मानव जाति के हैं। उन्होंने बताया कि मौलवी राणा द्वारा लिखी इस उर्दू रामायण की मूल प्रति तो उपलब्ध नहीं है लेकिन इससे हमारी आने वाली पीढ़ी भगवान राम के जीवन के बारे में जान सकती है। बहरहाल, गंगा-जमुनी तहजीब का संदेश देने वाली उर्दू रामायण का वाचन सुनकर और भगवान राम को लेकर हो रही राजनीति को देखकर किसी शायर का शेर बरबस ही याद आ जाता है कि ‘कब मंदिर से मस्जिद लड़ती है कब गीता से कुरान। लोग रोटियां सेकते लेकर इनका नाम।