लंबी बीमारी के बाद वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी का 95 साल की उम्र में निधन हो गया। अपने खान-पान को लेकर बेहद संजीदा रहने वाले जेठमलानी बीमारी के कारण बेहद कमजोर भी हो गए थे। राम जेठमलानी ही वो वकील थे जिसके लिए बार काउंसिल ने अपना नियम भी बदल दिया था। जानिए क्या थी पूरी कहानी।।
राम जेठमलानी ने अपने पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर वकालत की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 17 साल के जेठमलानी के सामने एक परेशानी आई। दरअसल बार काउंसिल के नियमों के अनुसार 21 साल की आयु पूरी करने से पहले किसी भी व्यक्ति को वकालत करने का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता था।
ऐसी स्थिति में राम जेठमलानी को वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी चार साल का लंबा इंतज़ार करना पड़ता। लेकिन जेठमलानी न तो निराश हुए न ही हार माने। उन्होंने कराची हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा।
न्यायाधीश को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिलना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने जेठमलानी को मिलने का समय और अपनी बात कहने का मौका दिया।
एक इंटरव्यू में राम जेठमलानी ने बताया था कि उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि जब मैंने वकालत में दाखिला लिया था उस समय तक ऐसा कोई नियम नहीं था कि 21 साल से पहले लाइसेंस नहीं दिया जा सकता। इस वजह से मेरे ऊपर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश ने 17 साल के जेठमलानी के तर्क और आत्मविश्वास से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए। इसके बाद मुख्य न्यायाधीश ने बार काउंसिल को पत्र लिखकर राम जेठमलानी को लाइसेंस देने पर विचार करने को कहा। नियमों में बदलाव किया गया और 18 साल की उम्र में ही राम जेठमलानी को वकालत का लाइसेंस जारी कर दिया गया। इसी के साथ जेठमलानी सबसे कम उम्र में वकालत शुरू करने वाले देश के पहले व्यक्ति बने।