राजस्थान चुनावः सैद्धांतिक सोच और प्रायोगिक परेशानी में से किसकी होगी जीत?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: November 5, 2018 03:20 PM2018-11-05T15:20:08+5:302018-11-05T15:20:08+5:30

पांच राज्यों के विस चुनावों में भाजपा के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल राजस्थान की टिकट सूची फाइनल करने में ही आ रही है, क्योंकि एक तो, सत्ता विरोधी लहर के चलते कई मंत्रियों-विधायकों की जीत पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है।

Rajasthan elections 2018: Who will win from theoretical thinking and experimental problem | राजस्थान चुनावः सैद्धांतिक सोच और प्रायोगिक परेशानी में से किसकी होगी जीत?

राजस्थान में पिछले दो दशकों से बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता की अदलाबदली चल रही है। (लोकमत ग्राफिक्स)

चुनावी टिकट वितरण में वंशवाद और भाई-भतीजावाद को सैद्धान्तिक रूप से नकारने वाली केन्द्रीय भाजपा क्या प्रायोगिक परेशानियों के चलते अपने सिद्धान्तों पर कायम रह पाएगी? यह सवाल भाजपा के भीतर भी बेचैनी पैदा कर रहा है।

दरअसल, पांच राज्यों के विस चुनावों में भाजपा के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल राजस्थान की टिकट सूची फाइनल करने में ही आ रही है, क्योंकि एक तो, सत्ता विरोधी लहर के चलते कई मंत्रियों-विधायकों की जीत पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है और दूसरा, यदि ऐसे एमएलए के टिकट काटते हैं तो उनके रिश्तेदारों को टिकट देने के पक्ष में केन्द्रीय भाजपा नहीं है। 

उधर, सीएम वसुंधरा राजे की पसंद और नापसंद के उम्मीदवारों पर भी केन्द्रीय भाजपा की नजर है, इसलिए किसी एक सूची पर सर्वसम्मति बनाना आसान नहीं है। केन्द्रीय भाजपा के एक तरफा निर्णय को स्वीकार करना भी राजे के लिए संभव नहीं है। परेशानी यह भी है कि यदि परिवारजनों या टिकट कटने वाले एमएलए के रिश्तेदारों को टिकट नहीं दिया जाता है तो बगावत का भी खतरा है, एमपी में ऐसा हो भी चुका है! दीपावली के बाद टिकट सूची जारी होने पर ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि सैद्धाान्तिक सोच और प्रायोगिक परेशानी में से किसकी जीत होगी?

वर्ष 2013 के विस चुनाव में अशोक परनामी, अरूण चतुर्वेदी, ज्ञानदेव आहुजा, ज्ञानचन्द पारख, देवेन्द्र कटारा, भीमाभाई, श्रीचन्द्र कृपलानी, प्रहलाद गुंजल, प्रभुलाल सैनी सहित ऐेसे कई भाजपा के एमएलए हैं जिन्होंने पन्द्रह हजार से कम वोटो के अंतर से जीत दर्ज करवाई थी। इनके लिए सत्ता विरोधी लहर को पार करना बड़ी चुनौती है।

केन्द्रीय भाजपा के चयन का आधार- जीतने वाला उम्मीदवार, है। ऐसे उम्मीदवारों की जानकारी एकाधिक सोर्स से जुटाई जा रही है तथा प्रदेश के अलग-अलग नेताओं को भी विभिन्न संभागों से ऐसी सूचियां तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है।

यूपी विस चुनाव से पहले भी ऐसे ही सिद्धान्तों की चर्चा थी, लेकिन प्रायोगिक तौर पर ऐसा करना संभव नहीं हो पाया। अब भी राजनीतिक जानकारों का मानना यही है कि ऐसा होना मुश्किल है, लेकिन यदि सैद्धान्तिक सोच के सापेक्ष भाजपा में टिकट वितरण हुआ तो बगावत से लेकर चुनाव में ऐसे नेताओं की उदासीनता तक की प्रायोगिक परेशानी रहेगी। तो क्या भाजपा हार की जोखिम पर भी अपने सिद्धान्तों की रक्षा करेगी?

Web Title: Rajasthan elections 2018: Who will win from theoretical thinking and experimental problem

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