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राजस्थानः न राजीव को अपमानित कर सके और न वाजपेयी को सम्मान दिला सके! ऐसी नादानी का क्या फायदा?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: January 23, 2019 06:38 IST

अब राजस्थान में ग्राम पंचायत और पंचायत समिति स्तरों पर सेवा केंद्रों को फिर से राजीव गांधी सेवा केंद्र पुकारा जाएगा.

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उपयोग/दुरुपयोग करके शहरों के नाम, सड़कों के नाम आदि बदलना, एक हद तक शायद सत्ताधारी दलों को संतोष प्रदान करता हो, लेकिन हर बार यह नैतिक और न्याय संगत फैसला हो, यह जरूरी नहीं है.

वर्ष 2013 के बाद केन्द्र और विभिन्न प्रदेशों में सत्ता में आई भाजपा सरकारों ने कई शहरों आदि के नाम बदल दिए. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैजाबाद जिले का नाम बदलकर अयोध्या किया तो इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किया गया. ऐसे बदलावों पर तो न जनता की और न ही किसी सियासी दल की कोई खास आपत्तियां रही, लेकिन राजस्थान की पिछली वसुंधरा राजे सरकार ने राजीव गांधी सेवा केंद्रों का नाम बदलकर अटल सेवा केंद्र कर दिया था, जिस पर सवाल खड़े हो गए. मामला न्यायालय में गया तो कोर्ट ने सरकार के इस निर्णय को रद्द कर दिया. 

इस संबंध में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का प्रेस को कहना था कि- नाम बदलने की अपनी सोच के चलते भाजपा सरकारों ने केंद्र और राज्यों में कोई कसर नहीं छोड़ी. हर योजना का नाम बदला गया. अगर आप कोई नई योजना बनाते और उसका नाम दीनदयाल उपाध्याय या कुछ और रखते तो किसी को ऐतराज नहीं होता. जो योजना चल रही है उसी का नाम बदलकर आप आगे बढना चाहें तो उसमें कटुता पैदा होती है, माहौल खराब होता है. इन्हें इसका अहसास नहीं था, अब इन्हें भुगतान ही पड़ेगा. राजस्थान में भुगत लिया अब देश की बारी है.

अशोक गहलोत का तो यह भी कहना था कि- क्योंकि राजीव गांधी एवं अटल बिहारी वाजपेयी, दोनों ही भारत रत्न हैं, इसलिए हम चाहते थे कि योजना में दोनों का नाम रहे, क्योंकि हमारी सोच भाजपा जैसी नहीं है. हम चाहते थे कि इन सेवा केंद्र का नाम- राजीव गांधी अटल सेवा केंद्र हो. अटल का मतलब अटल भी होगा. लेकिन, क्योंकि उच्च न्यायालय ने भारत सरकार के कानून के हवाले से कहा है कि योजना में कोई शब्द हटाया या जोड़ा नहीं जा सकता और उस कानून में नाम राजीव गांधी सेवा केंद्र ही है. इसलिए इसका नाम राजीव गांधी सेवा केंद्र ही रखना पड़ेगा. हमने इस बारे में कार्रवाई के लिए मुख्य सचिव को कहा है.

अब राजस्थान में ग्राम पंचायत और पंचायत समिति स्तरों पर सेवा केंद्रों को फिर से राजीव गांधी सेवा केंद्र पुकारा जाएगा.

विभिन्न सियासी दलों का पूर्व प्रधानमंत्रियों- राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी, को लेकर नजरिया कुछ भी हो, देश की जनता दोनों को सम्मान के नजरिए से देखती है, इसलिए भाजपा सरकार द्वारा राजीव गांधी सेवा केंद्र का नाम बदलना आमजन को भी रास नहीं आया.

सबसे बड़ा सवाल यह है कि- भाजपा सरकार का वह फैसला न राजीव गांधी को अपमानित कर सका और न ही अटल बिहारी वाजपेयी को सम्मान दिला सका, तो नाम बदलने की सियासी नादानी का फायदा क्या रहा?वैसे भी नाम बदलने का यह सियासी तरीका गलत था, क्योंकि किसी भी दल की सरकार हमेशा के लिए सत्ता में नहीं आती है, आज अगर कोई सरकार राजनीतिक कारणों से नाम बदलती है तो अगली बार दूसरे दल की सरकार आ कर भी नाम बदल देगी, जबकि ऐसा करना देश के सम्मानित नेताओं के प्रति सियासी मूर्खता का प्रदर्शन ही है!

टॅग्स :राजीव गाँधीअटल बिहारी वाजपेयीअशोक गहलोत
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