जन्मदिन विशेष: जानिए आखिर क्यूं राजा राम मोहन राय को कब्रिस्तान में दफनाया गया?

By कोमल बड़ोदेकर | Published: May 22, 2018 12:19 PM2018-05-22T12:19:01+5:302018-05-22T13:04:24+5:30

आज से करीब ढाई सौ साल पहले एक ऐसे शख्त ऐसे महान पुरूष का जन्म हुआ जिसने न सिर्फ देश की सोच बदली बल्कि देश को सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को खत्म किया। हम बात कर रहें महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय की। आखिर रूढ़वादी लोगों के बीच से इन कुरीतियों को खत्म करने वाले कौन थे राजा राजा राम मोहन राय और कैसा था उनका जीवन, जानिए इस रिपोर्ट में....

raja ram mohan roy 246 birth anniversary: Maker Of Modern India, read special things | जन्मदिन विशेष: जानिए आखिर क्यूं राजा राम मोहन राय को कब्रिस्तान में दफनाया गया?

जन्मदिन विशेष: जानिए आखिर क्यूं राजा राम मोहन राय को कब्रिस्तान में दफनाया गया?

नई दिल्ली, 22 मई। आज उस महान शख्सियत की जंयती है जिसे आधुनिक भारत का पिता कहा जाता है। अपनी नई सोच के चलते भारत की दुनिया भर में एक अलग पहचान है। बाल विवाह, सति प्रथा, ये ऐसी समाजिक कुरीतियां हैं जिनके बारे हम खुलकर विरोध करते हैं। एक वक्त था जब लोग इन कुप्रथाओं को नियति मानकर इनके खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोलते थे लेकिन आज से करीब ढाई सौ साल पहले एक ऐसे शख्त ऐसे महान पुरूष का जन्म हुआ जिसने न सिर्फ देश की सोच बदली बल्कि देश को सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को खत्म किया। हम बात कर रहें महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय की। आखिर रूढ़वादी लोगों के बीच से इन कुरीतियों को खत्म करने वाले कौन थे राजा राजा राम मोहन राय और कैसा था उनका जीवन, जानिए इस रिपोर्ट में....

शुरूआती जीवन और मूर्ति पूजा का विरोध
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को पश्चिम बंगाल के राधानगर में हुआ था। उन्होंने न सिर्फ ब्रह्म समाज स्थापना की बल्कि नव जागरण युग की स्थापना भी की। महज 15 साल की छोटी सी उम्र में ही उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा का ज्ञान हो गया था। साल 1803 से लेकर 1814 तक उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए काम किया। उनकी नई सोच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज 17 साल की उम्र में ही उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था। 

सती प्रथा जैसी कुरीति को जड़ से खत्म किया
देश की कुरीतियों से चिंतित राजा राम मोहन राय ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़ दी और खुद को राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित कर दिया। एक ओर जहां देश अंग्रेजों से संघर्ष कर था वहीं दूसरी ओर राजा राम मोहन राय अग्रेंजो के साथ ही अपने देश की कुरूतियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। उस दौर में सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियां अपने चरम पर थीं। ऐसे में इन कुरीतियों को ख्त्म करने में राजा राम मोहन राय को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

आधुनिक शिक्षा में अहम योगदान
राजा राम मोहन राय को मानना था कि भारत की प्रगति केवल उदार शिक्षा से ही हो सकती है। अपनी नई सोच के चलते उन्होंने भारतीय शिक्षा को एक नया रूप देने के लिए बड़ा कदम उठाते हुए ऐसे लोगों का समर्थन किया, जिन्होंने अंग्रेज़ी भाषा और पश्चिमी विज्ञान के अध्ययन का भारत में आरम्भ किया था। उन्होंने न सिर्फ उस दौर की सबसे आंधुनिक शिक्षा संस्था को बनाने में मदद की बल्कि हिन्दू कॉलेज की स्थापना में में भी अहम योगदान निभाया।

इंग्लैंड में निधन
राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन', 'संवाद कौमुदी', मिरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे समचार पत्रों का संपादन और प्रकाशन किया। इनमें बंगदूत सबसे लोकप्रिय अनोखा समाचार पत्र साबित हुआ जिसमें बंगाली, हिन्दी के साथ फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया गया। सती प्रथा के कानून को पलटने के लिए साल 1830 में  वे एक मुगल साम्राज्य का दूत बनकर ब्रिटेन गए। 27 सितम्बर 1833 को राजा राममोहन राय का इंग्लैंड में निधन हो गया। ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोस वेल कब्रिस्तान में राजा राम मोहन राय पंच तत्व में लीन हो गए। 

इसलिए नहीं जलाया गया
27 सितंबर 1833 में 61 साल की उम्र में राजा राममोहन राय ने दुनिया को अलविदा। उनका निधन इंग्लैंड में हुआ था। इंग्लैंड में तत्कालीन नियमों के मुताबिक, देह को जलाने की अनुमति नहीं थी जिसके चलते उन्हें दफ़्न किया गया। लेकिन सालों तक उनकी कब्र जर्जर रही। इसके बाद एक भारतीय पारसी से शादी करने वाली एक ब्रिटिश महिला आर्नस वेल सीमेटरी की ट्रस्टी कार्ला कॉन्ट्रैक्टर ने कोलकाता के तत्कालिक मेयर और एक व्यवसायी की मदद से राजा राममोहन राय की समाधि का जीर्णोद्धार किया गया। ब्रिस्टल के एक ख़ास हिस्से में भारत के इस महान समाज सुधारक की एक मूर्ति भी लगाई गई है।

Web Title: raja ram mohan roy 246 birth anniversary: Maker Of Modern India, read special things

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