राहुल गांधी को मिल रहा है मंदिर दर्शन-पूजन का फल, बीजेपी पर भारी पड़ रहा है कांग्रेस का हिंदू अवतार'!
By विकास कुमार | Published: December 11, 2018 03:14 PM2018-12-11T15:14:09+5:302018-12-11T15:18:14+5:30
विधान सभा चुनाव के नतीजों से ये साफ हो गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी पुरानी छवि को गंगाजल से धो डाला है। जिसमें गायत्री मंत्र और गोत्र का भरपूर समर्थन मिला है। कैलाश मानसरोवर का आशीर्वाद और दक्षिण के मंदिरों का प्रसाद उन्हें राजनीतिक जीवनदान देने में सबसे आगे रहा।
देश की राजनीति में 'कांग्रेस मुक्त भारत' का दावा फिलहाल पिटता हुआ दिख रहा है। नरेन्द्र मोदी ने बड़े अरमानों के साथ इस नारे का प्रचार किया था। लेकिन देश की जनता ने ये सन्देश दे दिया है कि लोकतंत्र में सत्ता पक्ष के मनमानियों को रोकने के लिए विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। सत्ता में संतुलन का होना जरूरी है। इसी संतुलं को बरकरार रखने के लिए राज्यों कि जनता ने इस बार भाजपा को सबक सिखाया है।
कांग्रेस की जीत के प्रणेता राहुल गांधी को इसका पूरा क्रेडिट दिया जा रहा है और दिया भी जाना चाहिए। जिस तरह से उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में संघर्ष किया है उसका असर उनके पार्टी पर तो दिखना ही था। इन संघर्षों में किसानों के मंच पर जाना हो या नौजवानों को समर्थन देना हो। लेकिन एक जगह और है जहां उनके संघर्ष ने सबसे ज्यादा असर दिखाया है और वो है मंदिर का ताबड़तोड़ दौरा। उनके इस दौरे से भले ही उनकी विपक्षी पार्टी भाजपा भयभीत हो गई लेकिन संघ के कलेजे को इससे ज्यादा ठंडक कभी नहीं मिला।
कैलाश मानसरोवर से लेकर दक्षिण के उन मंदिरों तक उनके चरण स्पर्श हुए जहां नरेन्द्र मोदी और मोहन भागवत ने भी कभी नहीं सोचा। हिंदूत्व का चोला जो कल तक बीजेपी अकेले ओढ़कर बीजेपी बैठी हुई थी, राहुल गांधी ने उसके दो टुकड़े कर दिए हैं। खैर, भगवान का आशीर्वाद उन्हें भी मिला क्योंकि भगवान अपने भक्तों के साथ भेदभाव नहीं करता है। सत्ता प्राप्ति का ईशारा देखकर राहुल गांधी ने अपने मां के भी दर्शन किए। जी हां उन्होंने सोनिया गांधी से मुलाकात की। माँ को ऐसे भी भारतीय संस्कृति में भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया जाता है।
'राहुल गांधी का कौल ब्राह्मण अवतार'
राहुल गांधी ये समझ गए थे कि संघ और भाजपा ने जिस तरह से कांग्रेस और उनके परिवार की छवि को एंटी-हिन्दू के रूप में प्रस्तुत किया है, उससे उन्हें सत्ता परिवर्तन का मौका नहीं मिलेगा। इसलिए उन्होंने भारतीय जीवन-दर्शन को केंद्र में रखते हुए सॉफ्ट हिंदूत्व का कार्ड खेला। कुछ राज्यों में फेल होने के बाद आखिरकार उन्हें सफलता मिली और भरपूर मिली। उनकी पार्टी ऐसे भी कई मौकों पर बोलती रही है कि 'हिंदूत्व' भाजपा की बपौती नहीं है। इसलिए राहुल गांधी भी अपना जनेऊ दिखा सकते हैं और अपने गोत्र का खुलेआम प्रदर्शन कर सकते हैं।
राहुल गांधी के अलावा भी कई कांग्रेस नेताओं में हिंदूत्व को लेकर होड़ मची हुई है। जिनमें दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और सिंधिया भी शामिल हैं।
इन नतीजों से ये साफ हो गया है कि राहुल गांधी ने अपनी पुरानी छवि को गंगाजल से धो डाला है। जिसमें गायत्री मंत्र और गोत्र का भरपूर समर्थन मिला है। कैलाश मानसरोवर का आशीर्वाद और दक्षिण के मंदिरों का प्रसाद उन्हें राजनीतिक जीवनदान देने में सबसे आगे रहा।