पूर्णिया कांड: गांव में बढ़ते तनाव को देखते हुए एसपी ने की बड़ी कार्रवाई, एसएचओ को किया निलंबित, जानें पूरा मामला
By एस पी सिन्हा | Updated: May 25, 2021 19:18 IST2021-05-25T19:16:17+5:302021-05-25T19:18:13+5:30
इस घटना में पीड़ित एक महिला ने बताया है कि सैकड़ों लोगों ने आकर सभी महादलित परिवार के घरों को घेर लिया था। जबतक महादलित परिवार कुछ समझ पाते तब तक में उनके घरों में आग जलनी शुरू कर दी थी। बेरहमी से मारना-पीटना भी शुरू कर दिया था।

(फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
बिहार के पूर्णिया जिले के बायसी थाना इलाके में महादलित बस्ती मंझुआ टोल में घटित घटना का मामला अब तूल पकड़ने लगा है। हालांकि इस मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में बायसी थानाध्यक्ष अमित कुमार को निलंबित कर दिया गया है। लेकिन इस घटना के बाद से महादलित परिवार अभी भी सहमे-सहमे हुए हैं। वैसे जिला प्रशासन की ओर से वहां पुलिस बल तैनात कर दिया गया है।
इस मामले में सोमवार को एसपी दयाशंकर ने खुद घटनास्थल पर जाकर पीड़ित परिवारों से बात की तथा इस मामले में लापरवाही बरतने वाले थाना अध्यक्ष अमित कुमार को निलंबित करते हुए लाइन हाजिर कर दिया है। प्रशासन के मुताबिक, 19 मई की रात पूर्णिया के बायसी अंचल अंतर्गत खपडा पंचायत के नियामतपुर गांव के दलित टोले में 13 घरों में 100-150 लोगों ने मारपीट और आगजनी की थी।
इस घटना में सेवानिवृत्त चौकीदार नेवीलाल राय की मौत हो गई थी। 20 मई को बायसी थाने में तीन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और अब तक दो नामजद लोगों की गिरफ्तारी हुई है। स्थिती की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस जगह पर पांच दिन पहले तक महादलित परिवारों का बडा गांव आबाद था पर आज वहां कहीं राख की ढेर है तो कहीं बांस की टूटी बत्तियों पर लटकती टूटी टाट। बांस और फूस की जली अधजली झोंपडियां, बरसाती जमीन पर बिखरे सामान और उजडे हुए गरीबों के आशियाने आज पांच दिनों के बाद भी दरिन्दगी की बानगी बयां कर रहे हैं। यहां के हर चेहरे पर अनजाना खौफ है और हर आंखें मूक भाव से हैवानियत की दास्तां सुना रही हैं।
बताया जाता है कि बीते बुधवार की रात मझुआ गांव में जमीन विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। इस घटना में दो महादलित बुरी तरह घायल हो गये थे। इस घटना के बाद उसी रात करीब साढे 11 बजे हमलावरों ने तीन तरफ से महादलित परिवार पर हमला बोल दिया। हमलावरों ने कई घरों में आग लगा दी और बेरहमी से पिटाई की। पीडित अशोक कुमार ने बताया कि बीते बुधवार की रात हमसभी लोग सोये हुए थे।
अचानक गांव में हल्ला हुआ, भागो-भागो। हमलोग सभी उठ गये। अचानक कुछ लोग उसके घर में घुस गये और मारपीट करने लगे। मेरी पत्नी को भी बेरहमी से पीटने लगा और इज्जत लूटने की कोशिश की। जब पत्नी ने कहा कि वह गर्भवती है। भगवान के लिए मुझे माफ कर दो। पत्नी के काफी आरजू-मिन्नत के बाद अतातायियों ने उसे बख्श दिया। इसके बाद किसी तरह हमलोग जान बना कर भागे।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बायसी थाना क्षेत्र में के मझवा गांव में दो पक्षों के बीच विवाद में 24 अप्रैल को दर्ज हुए प्राथमिकी में थानाध्यक्ष अमित कुमार के द्वारा लापरवाही बरती गई। जिसका नतीजा यह हुआ कि 19 मई की रात एक समुदाय के लोगों को आग के हवाले कर दिया गया। आग में एक दर्जन लोगों का घर जलकर राख हो गया और मारपीट में कई लोग जख्मी हैं।
कहा जा रहा है कि अगर इस मामले को लेकर बायसी पुलिस संजीदा रहती तो 19 मई की घटी घटना को रोका जा सकता था। सबसे हैरत की बात तो यह है की 24 अप्रैल के मामले में कार्रवाई की बात तो दूर आरोपितों द्वारा महादलित परिवार के ऊपर उल्टा बिना जांच किए ही झूठा मामला दर्ज किया गया। इस मामले में बायसी डीएसपी की भूमिका भी काफी संदिग्ध मानी जा रही है। महादलितों ने एसपी को बताया है कि डीएसपी जब आग लगने के मामले की जांच करने यहां पहुंचे तो जांच की बजाय उन्होंने महादलित परिवार के लोगों को सडक किनारे बने घरों को खाली करने को कहा।
बताया जाता है कि बायसी पुलिस इस मामले में किस तरह लापरवाह थी, इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जब 19 मई के दिन में रास्ते को लेकर विवाद हुआ और पूर्व चौकीदार नेवालाल राय की पिटाई की गई तो भी पुलिस की नींद नहीं टूटी। पुलिस ने दो चौकीदारों को भरोसे इस विवाद को छोड दिया। महादलित टोले पर हमले को लेकर लगातार बैठकें होती रही लेकिन बायसी पुलिस सोई रही।
वहीं डीएसपी बायसी इस पूरे मामले में अंजान बने रहे। पुलिस तब सक्रिय हुई जब महादलितों को घर को फूंक दिया गया और हमलावरों की पिटाई से एक की मौत हो गई। एसपी के सामने आये लोगों ने जब यह दिखाया कि किसी पीडित के बांह पर लाठी के लाल निशान हैं तो किसी के माथे पर गहरी चोट है, जो यह बताने के लिए काफी है कि हजारों के हुजूम ने कैसे महादलितों की बस्ती को तीन तरफ से घेर कर आग के हवाले कर दिया।
यहां उल्लेखनीय है कि परमान नदी के किनारे बसे इस गांव में करीब साढे चार सौ महादलित परिवार हैं। इसमें 13 महादलित परिवार के घर जले हैं। एक दर्जन से अधिक लोग घायल हुए हैं। इनमें एक रिटायर्ड चौकीदार की मौत हुई है। बताया जाता है कि इसी जमीन विवाद को लेकर 2015 में भी महादलितों के घर में आग लगाया गया था और मारपीट की घटना घटी थी।
उस वक्त भी यह विवाद काफी गहराया था और इस टोले में लंबे समय तक अस्थाई पुलिस कैंप खोला गया था। लेकिन पुलिस के वरीय अधिकारियों ने इस विवाद का बिना कोई हल निकाले पुलिस शिविर को बंद कर दिया था। जबकि 2015 में दर्ज हुए मामले की फाइल को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। अगर पुलिस ने 2015 में घटी घटना से सीख ली होती तो शायद इस घटना को रोका जा सकता था।