Project Cheetah: बड़ी उम्र के चीतों की तुलना में कम उम्र के चीते लाइये, नए माहौल में अधिक आसानी से ढल जाते हैं, 9 चीतों की मौत पर विदेशी विशेषज्ञ ने और क्या दी सलाह

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 3, 2023 07:44 PM2023-08-03T19:44:54+5:302023-08-03T19:46:39+5:30

Project Cheetah: सरकार को सौंपी गई एक स्थिति रिपोर्ट में, विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि कम उम्र के चीते अपने नये वातावरण के अनुरूप अधिक आसानी से ढल जाते हैं और बड़ी उम्र के चीतों की तुलना में उनके जीवित रहने की दर अधिक होती है।

Project Cheetah Advice ignored 9 dead what ails Kuno Compared older cheetahs young cheetahs were brought they adapt more easily new environment foreign expert | Project Cheetah: बड़ी उम्र के चीतों की तुलना में कम उम्र के चीते लाइये, नए माहौल में अधिक आसानी से ढल जाते हैं, 9 चीतों की मौत पर विदेशी विशेषज्ञ ने और क्या दी सलाह

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Highlightsप्रबंधन के कार्य में शामिल वाहनों और मानव की उपस्थिति में रहने के आदी हों। ‘प्रोजेक्ट चीता’ को निस्संदेह इस तरह के और अधिक नुकसान का अनुभव करना होगा। चीतों की आबादी बढ़ने की उम्मीद है।

Project Cheetah: ‘प्रोजेक्ट चीता’ में शामिल अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में शुरुआती अनुभव के आधार पर सरकार को भारत में बसाने के लिए कम उम्र के ऐसे चीतों को प्राथमिकता देने की सलाह दी है, जो प्रबंधन के कार्य में शामिल वाहनों और मानव की उपस्थिति में रहने के आदी हों।

हाल ही में सरकार को सौंपी गई एक स्थिति रिपोर्ट में, विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि कम उम्र के चीते अपने नये वातावरण के अनुरूप अधिक आसानी से ढल जाते हैं और बड़ी उम्र के चीतों की तुलना में उनके जीवित रहने की दर अधिक होती है। कम उम्र के चीते अन्य चीतों के प्रति अपेक्षाकृत कम आक्रामक होते हैं जिससे चीतों के बीच आपसी लड़ाई से होने वाली मौत का खतरा कम हो जाता है।

विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में कहा कि प्रबंधन में शामिल वाहनों और मानव की उपस्थिति में रहने के आदी चीतों से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की निगरानी, ​​तनाव मुक्त पशु चिकित्सा और प्रबंधन हस्तक्षेप को सरल बनाने समेत पर्यटन मूल्य को बढ़ाने में मदद मिलती है। उन्होंने सरकार को चीतों को बसाने के लिए मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान के अलावा अन्य स्थान चिह्नित करने की भी सलाह दी।

उन्होंने कहा कि कूनो को पर्यटन के लिए खोला जाने वाला है और चीतों के मानव उपस्थिति के आदी होने से उद्यान को पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाने में मदद मिल सकती है। कूनो में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से दो समूहों में चीतों को लाया गया था।

विशेषज्ञों ने कहा कि कम उम्र के वयस्क चीते नए माहौल में अधिक आसानी से ढल जाते हैं और अधिक उम्र के चीतों की तुलना में उनके जीवित रहने की दर भी अधिक होती है। विशेषज्ञों ने चीतों को बाहर से लाकर भारत में बसाने पर आने वाले खर्च को ध्यान में रखते हुए रेखांकित किया कि कम उम्र के चीते छोड़े जाने पर वह अधिक समय तक जीवित रहते हैं।

अफ्रीकी विशेषज्ञों ने 19 महीने से 36 महीने की उम्र के 10 चीतों का भी चयन किया है जिन्हें 2024 की शुरुआत में भारत भेजने के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की मौत की दर दुर्भाग्यपूर्ण है और इसके कारण मीडिया में कई नकारात्मक समाचार प्रकाशित एवं प्रसारित हुए हैं, लेकिन यह मृतक संख्या वन्य चीता पुनर्वास के सामान्य मापदंडों के भीतर है। मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में मार्च के बाद से नौ चीतों की मौत हो चुकी है, जिनमें छह वयस्क एवं तीन शावक शामिल हैं।

बहुप्रतीक्षित ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत कुल 20 चीतों को दो समूहों में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से केएनपी में लाया गया था। चार शावकों के जन्म के बाद चीतों की कुल संख्या 24 हो गई थी, लेकिन नौ चीतों की मौत के बाद यह संख्या घटकर अब 15 रह गई है।

विशेषज्ञों ने दक्षिण अफ्रीका में चीतों को बसाने की कोशिश के दौरान शुरुआत में हुई दिक्कतों पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया और कहा कि उसकी 10 में से नौ कोशिश असफल हो गई थीं। उन्होंने कहा कि इन अनुभवों के आधार पर वन्य चीता पुनर्वास एवं प्रबंधन की सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं को स्थापित किया गया।

दक्षिण अफ्रीकी वन्यजीव विशेषज्ञ विसेंट वान डेर मेर्वे ने कहा, ‘‘दक्षिण अफ्रीका में चीता के पुनर्वास को पूर्ण रूप देने में हमें 26 साल लग गए और इस प्रक्रिया में हमने 279 जंगली चीतों को खो दिया। हम भारत से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह सिर्फ 20 चीतों के साथ इसे ठीक कर लेगा।

भारत में इतने बड़े नुकसान की संभावना नहीं है, लेकिन ‘प्रोजेक्ट चीता’ को निस्संदेह इस तरह के और अधिक नुकसान का अनुभव करना होगा।’’ रिपोर्ट में कहा गया कि अफ्रीका के अनुभव के आधार पर देखा जा सकता है कि शुरुआती दौर में 20 चीतों की संख्या गिरकर पांच से सात रह सकती है, जिसके बाद चीतों की आबादी बढ़ने की उम्मीद है।

विशेषज्ञों ने कहा कि वयस्क होने तक जीवित रहने की संभावनाओं वाले पहले चीता शावकों का जन्म 2024 में होने की उम्मीद है। रिपोर्ट में ‘सुपरमॉम’ के महत्व को भी रेखांकित किया गया है। ‘सुपरमॉम’ दक्षिण अफ्रीका से लाई गईं ऐसी मादा चीतों को कहा जाता है, जो अधिक स्वस्थ और प्रजनन क्षमता के लिहाज से बेहतर होती हैं।

विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में लाए गए चीतों में से सात मादा हैं और उनमें से केवल एक के ‘सुपरमॉम’ होने की उम्मीद है। विशेषज्ञों ने भारतीय अधिकारियों को चीतों को पुन: बसाने के लिए कूनो के स्थान पर अन्य स्थलों की पहचान करने की सलाह दी।

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