दंगा मामलों में घरों पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन बताया

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 18, 2022 10:13 AM2022-04-18T10:13:49+5:302022-04-18T10:41:38+5:30

हाल ही में रामनवमी के मौके पर मध्य प्रदेश के खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद राज्य सरकार ने आरोपी व्यक्तियों के घरों को बुलडोजर से गिरा दिया था। ऐसा आरोप लगाया गया कि केवल मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया।

plea-in-supreme-court-against-bulldozing-of-properties-in-riot-cases | दंगा मामलों में घरों पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन बताया

दंगा मामलों में घरों पर बुलडोजर चलाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन बताया

Highlightsअरशद मदनी ने कहा कि बुलडोजर की खतरनाक राजनीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।उन्होंने कहा कि इस तरह के उपायों का सहारा लेना संवैधानिक लोकाचार और आपराधिक न्याय प्रणाली के खिलाफ है।

नई दिल्ली: जमीयत उलमा-ए-हिंद ने हिंसा जैसी आपराधिक घटनाओं में शामिल होने के संदिग्ध व्यक्तियों के घरों को बुलडोजर से गिराने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट से भारत सरकार और सभी राज्यों को उचित निर्देश जारी करने का आग्रह किया है कि किसी भी आपराधिक कार्यवाही में किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई स्थायी त्वरित कार्रवाई नहीं की जाए और निर्देश जारी करें कि आवासीय आवास को दंडात्मक रूप में ध्वस्त नहीं किया जा सकता है। 

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने एक ट्वीट में कहा कि जमियत उलमा-ए-हिंद ने बुलडोजर की खतरनाक राजनीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जो भाजपा शासित राज्यों में अपराध की रोकथाम की आड़ में अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को तबाह करने के लिए शुरू किया गया है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपनी याचिका में कहा कि हाल ही में कई राज्यों में सरकारी प्रशासन द्वारा आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियों को तोड़ने की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जो कथित रूप से दंगों जैसी आपराधिक घटनाओं में शामिल व्यक्तियों के प्रति दंडात्मक उपाय के रूप में है।

याचिका के अनुसार, इस तरह के उपायों/कार्यों का सहारा लेना संवैधानिक लोकाचार और आपराधिक न्याय प्रणाली के खिलाफ है, साथ ही आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों का भी उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता ने यह निर्देश जारी करने का भी आग्रह किया कि मंत्रियों, विधायकों और आपराधिक जांच से असंबद्ध किसी को भी आपराधिक कार्रवाई के संबंध में आपराधिक जिम्मेदारी को सार्वजनिक रूप से या किसी भी आधिकारिक संचार के माध्यम से तब तक प्रतिबंधित किया जाना चाहिए जब तक कि एक आपराधिक अदालत द्वारा सार्वजनिक रूप से या किसी आधिकारिक संचार के माध्यम से निर्धारण नहीं किया जाता है।

बता दें कि, हाल ही में रामनवमी के मौके पर मध्य प्रदेश के खरगोन में सांप्रदायिक हिंसा के बाद राज्य सरकार ने आरोपी व्यक्तियों के घरों को बुलडोजर से गिरा दिया था। ऐसा आरोप लगाया गया कि केवल मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया।

वहीं, इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों के न केवल घरों की कुर्की कर दी थी बल्कि उन पर भारी भरकम जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यूपी सरकार को सभी आरोपियों से वसूली गई राशि को वापस लौटाने का आदेश दिया था।

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