खनन के 1.36 लाख करोड़ रुपये के बकाए के लिए हेमंत सोरेन ने केंद्र को लिखा पत्र, कहा- झारखंड विकास खनिज राजस्व पर निर्भर
By विशाल कुमार | Published: March 26, 2022 12:06 PM2022-03-26T12:06:10+5:302022-03-26T12:09:29+5:30
आज एक ट्वीट करते हुए सोरेन ने कहा कि कोयला मंत्रालय और नीति आयोग के साथ लगातार चर्चा के बाद भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अब उन्होंने कोयला एवं खनन मंत्री प्रह्लाद जोशी को बकाए का ध्यान दिलाया है।
रांची:झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर राज्य में केंद्रीय कंपनियों द्वारा किए गए खनन के लिए 1.36 लाख करोड़ रुपये बकाए की मांग की है। उन्होंने यह मुद्दा विधानसभा में भी उठाया था।
आज एक ट्वीट करते हुए सोरेन ने कहा कि कोयला मंत्रालय और नीति आयोग के साथ लगातार चर्चा के बाद भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अब उन्होंने कोयला एवं खनन मंत्री प्रह्लाद जोशी को बकाए का ध्यान दिलाया है।
सोरेन ने ट्वीट कर कहा कि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों) द्वारा किए गए खनन से संबंधित 1.36 लाख करोड़ रुपये के लंबे समय से वैध बकाया का भुगतान न करने के संबंध में कोयला मंत्रालय और नीति आयोग के साथ बार-बार परामर्श के बावजूद, भारत सरकार ने अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है। इस संबंध में मैंने प्रह्लाद जोशी जी को पत्र लिखा है।
Inspite of repeated consultations held with @CoalMinistry & @NITIAayog regarding non payment of long standing legitimate dues of Rs 1.36 lakh crores related to mining done by Central PSUs, Govt of India has paid no heed so far. I have written to @JoshiPralhad’ji in this regard. pic.twitter.com/VcSReuyQaa
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) March 26, 2022
खनिज समृद्ध झारखंड में कोयला खनन का एक बड़ा हिस्सा कोल इंडिया लिमिटेड, या सीआईएल की एक सहायक कंपनी द्वारा किया जाता है।
मुख्यमंत्री ने पत्र में कहा कि ये कोयला कंपनियां राज्य को राजस्व की वैध मांग का भुगतान नहीं कर रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप इन कंपनियों से राज्य को भारी बकाया है।
सोरेन ने खनिज रियायत नियम, 1960 की ओर ध्यान आकर्षित कराया, जिसमें कहा गया है कि अन्य समान शर्तों के साथ, पट्टे पर दिए गए क्षेत्र में खनन के लिए रॉयल्टी भुगतान योग्य है।
मुख्यमंत्री ने अनिवार्य रायल्टी भुगतान पर कानून की धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि वर्तमान में झारखंड में सीआईएल की सहायक कोयला कंपनियां प्रसंस्कृत कोयले को भेजने के बजाय रन-ऑफ-माइन कोयले के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान कर रही हैं। अदालत ने नियम 64बी और नियम 64सी के पक्ष में फैसला सुनाया है।
सोरेन ने कहा कि झारखंड का सामाजिक-आर्थिक विकास मुख्य रूप से इन खनिजों से होने वाले राजस्व पर निर्भर करता है।
सोरेन ने पत्र में कहा कि कानून में प्रावधान और उसमें की गई न्यायिक घोषणाओं के बावजूद, कोयला कंपनियां धुले हुए कोयले पर रॉयल्टी का भुगतान नहीं कर रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप बड़ी मांग लंबित है।