सुपौल लोकसभा सीट: रंजीत रंजन की राह आसान नहीं, मुद्दे हाशिये पर, जातीय गोलबंदी हावी
By सतीश कुमार सिंह | Published: April 22, 2019 08:56 PM2019-04-22T20:56:47+5:302019-04-22T20:56:47+5:30
नेपाल के पास होने की वजह से रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण, बिहार के सुपौल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में रेल सेवा, रोजगार और कृषि आधारित उद्योग नहीं होने जैसे गंभीर मुद्दों को लेकर आंदोलन तो खूब हुए लेकिन चुनाव में ये मुद्दे हाशिये पर हैं और जातीय गोलबंदी हावी है।
यादव और मुस्लिम मतदाताओं के प्रभाव वाली सुपौल सीट पर लोकसभा चुनाव में इस बार अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भूमिका भी अहम मानी जा रही है। सुपौल संसदीय सीट पर लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के तहत 23 अप्रैल को मतदान होगा।
इस संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 12,79,549 है जिनमें से 6,72,904 पुरुष और 6,06,645 महिला मतदाता हैं। महागठबंधन में सीटों के बंटवारे के तहत यह सीट कांग्रेस को मिली जिसने यहां से रंजीत रंजन को उम्मीदवार बनाया है। रंजीत रंजन जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष और मधेपुरा से सांसद पप्पू यादव की पत्नी हैं ।
कहा जा रहा है कि इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश प्रसाद यादव को राजद का परोक्ष समर्थन है। इसका स्पष्ट संकेत तब मिला जब पिछले शनिवार को सुपौल में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रैली में राजद नेता तेजस्वी यादव शामिल नहीं हुए।
रंजीत रंजन का मुकाबला राजग के उम्मीदवार दिलेश्वर कमैत से
दिनेश प्रसाद यादव का पिपरा विधानसभा क्षेत्र में खासा प्रभाव माना जाता है। रंजीत रंजन का मुकाबला राजग के उम्मीदवार दिलेश्वर कमैत से है। कमैत अति पिछड़ा वर्ग की केवट जाति से आते हैं जबकि रंजीत रंजन यादव समुदाय से आती हैं । निर्दलीय दिनेश प्रसाद यादव भी यादव समुदाय से आते हैं। ऐसे में कांग्रेस को निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश प्रसाद यादव से वोट कटने की आशंका है ।
परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आई सुपौल सीट पर अब तक हुए दो लोकसभा चुनाव में एक बार जदयू जबकि एक बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 2014 में मोदी लहर के बावजूद इस सीट पर भाजपा तीसरे नंबर पर रही थी। कांग्रेस की रंजीत रंजन ने जदयू के दिलेश्वर कमैत को 60 हजार वोटों से हराया और पहली बार लोकसभा पहुंची थीं।
वर्ष 2009 के चुनाव में यहां से जदयू के विश्व मोहन कुमार सांसद बने जिन्होंने कांग्रेस की रंजीत रंजन को डेढ़ लाख वोटों से हराया था। इस चुनाव में भाजपा और जदयू साथ थे । चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा और जदयू के दोबारा साथ आने के बाद रंजीत रंजन के सामने इस बार चुनौती कड़ी है। रंजीत रंजन ने सुपौल में ‘मां-बहनों का साथ, बदल के रहेंगे हालात’ को सूत्र वाक्य बनाया है।
उन्होंने कहा कि सुपौल की आधी आबादी से मिली ताकत से ही वह लोकसभा में आम लोगों के हक के विषयों को मजबूती से रख पाती हैं । कांग्रेस प्रत्याशी ने कहा, ‘‘मैंने सुपौल के विकास के लिए भरसक प्रयास किया है। मैंने हर वर्ग के लोगों से समर्थन मांगा है ।’’
जदयू-भाजपा गठबंधन समय की मांग है, जो राज्य और देशहित के लिए जरूरी
रंजन ने कहा कि जनता जुमलेबाजों को और दो करोड़ रोजगार व 15 लाख रुपये देने के नाम पर ठगने वालों को अपने वोट से जवाब देगी । जदयू उम्मीदवार दिलेश्वर कमैत ने कहा कि जदयू-भाजपा गठबंधन समय की मांग है, जो राज्य और देशहित के लिए जरूरी है।
उन्होंने कहा, ‘‘राष्ट्र का सर्वांगीण विकास मोदी के नेतृत्व में ही संभव है, इसीलिए लोग भी मोदी को देश की कमान फिर सौंपने का मन बना चुके हैं ।’’ हर साल बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने वाले सुपौल से युवा उद्योग और रोजगार के अभाव में पलायन करते हैं। यहां रेल नेटवर्क का अभाव भी है।
स्थानीय स्तर पर इन मुद्दों को लेकर खूब आंदोलन हुए लेकिन चुनाव में ये मुद्दे गायब हो गये हैं और जातीय गोलबंदी का प्रभाव स्पष्ट है। सांस्कृतिक रूप से समृद्ध सुपौल सहरसा जिले से 1991 में अलग होकर जिले के रूप में अस्तित्व में आया था।
लोकगायिका शारदा सिन्हा इसी इलाके से हैं। दिवंगत पंडित ललित नारायण मिश्र भी इसी इलाके से थे। सुपौल सीट के तहत विधानसभा की 6 सीटें - निर्मली, पिपरा, सुपौल, त्रिवेणीगंज, छत्तापुर, सिंघेश्वर आती हैं। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इनमें से 4 पर जदयू, एक पर राजद और एक सीट पर भाजपा को जीत मिली थी।