Diwali 2024: धनतेरसी चुनाव के बीच दिवाली...!
By विजय दर्डा | Published: October 28, 2024 05:32 AM2024-10-28T05:32:56+5:302024-10-28T05:32:56+5:30
Diwali 2024: आखिर यह त्यौहार है ही ऐसा कि जब तक आप अपनों से खुशियां साझा न करें, प्यार के उजाले में अपनों को आलोकित न करें, तब तक उजाले का आनंद अधूरा रहता है.
Diwali 2024: दिवाली की शुरुआत वैसे तो धनतेरस से मानी जाती है लेकिन अपने मित्रों और लोकमत के विशाल परिवार के साथ खुशियां साझा करने का मेरा कार्यक्रम थोड़ा पहले ही शुरू हो जाता है. जब मैं परिवार शब्द का उपयोग करता हूं तो उसमें आप विचारवान पाठकों समेत वो सभी लोग शामिल हैं जिन्होंने मुझे भरपूर प्यार दिया है और अपनी श्रेष्ठता से मुझे ऊर्जा प्रदान की है. आखिर यह त्यौहार है ही ऐसा कि जब तक आप अपनों से खुशियां साझा न करें, प्यार के उजाले में अपनों को आलोकित न करें, तब तक उजाले का आनंद अधूरा रहता है.
तो, सबसे पहले आप सबको दिवाली की ढेर सारी अग्रिम शुभकामनाएं. आपने गौर किया ही होगा कि ये दिवाली पिछले वर्षों की दिवाली से बिल्कुल अलग होने वाली है. जब मैं दिवाली के साथ ही चुनाव को लेकर सोच रहा था तो मुझे अचानक बचपन में पढ़ा एक बड़ा उम्दा सा मुहावरा याद आ गया... मन ही मन में लड्डू फूटे...हाथों में फुलझड़ियां!
जाहिर सी बात है कि मन में लड्डू फूटना और हाथों में फुलझड़ियां होना, दोनों ही खुशियों का प्रतीक है. मगर चुनाव के मौसम में किरदार अलग-अलग हैं. जिन्हें टिकट मिल गया है, उनके मन में स्वाभाविक रूप से लड्डू फूट रहे हैं. अभी यह कहना मुश्किल है कि वाकई लड्डू किसके मुंह को मीठा करेगा.
लेकिन इतना तय है कि जिनके मन में लड्डू फूट रहे हैं वे आप मतदाताओं का मुंह जरूर मीठा कराना चाहेंगे और आपके इलाके में विकास की गंगा बहाने की फुलझड़ी भी थमाएंगे. मैं जानता हूं कि बहुत से नेता ऐसे हैं जो विकास के लिए सदैव समर्पित रहते हैं लेकिन झुनझुना थमाने वालों की भी कोई कमी नहीं है.
यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि पांच साल में आने वाले चुनावी उत्सव में इस बार मतदाताओं की जिंदगी में भी दिवाली आएगी. चूंकि चुनाव के मौसम में दिवाली आई है तो मतदाताओं की आवभगत भी उसी हिसाब से होगी वर्ना तो पूरे पांच साल मतदाता ही नेताजी का मुंह मीठा कराते रहते हैं.
फूलों की माला पहनाते रहते हैं और वो कभी इलाके में आ जाएं तो फिर फुलझड़ियां तो क्या पटाखों की पूरी लड़ी फोड़ डालते हैं. लोकतंत्र के इस भारतीय दस्तूर के बीच मुझे अटल बिहारी वाजपेयी की एक कविता की कुछ पंक्तियां बार-बार याद आती हैं..
हम पड़ाव को समझे मंजिल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं.
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियां गलाएं.
आओ फिर से दिया जलाएं.
दिवाली और चुनाव पर विचार करते हुए अचानक मेरे जेहन में एक शब्द कौंधा धनतेरसी! जो धन की गिरफ्त में हो, क्या उसे धनतेरसी नहीं कहेंगे? यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है कि जब धनतेरस का त्यौहार नहीं होता है तब भी हमारी चुनावी व्यवस्था पूरी तरह से धन की गिरफ्त में होती है. तब भी धनतेरस शुरू रहता है.
चुनाव में खर्च जगजाहिर होता है, यदि उम्मीदवार लोकप्रिय है और अपने निर्वाचन क्षेत्र में बहुत काम किया है तो भी चुनाव लड़ने के लिए पंद्रह से बीस करोड़ रुपए तो चाहिए ही चाहिए. सीट पर संघर्ष हो तो आंकड़ा पचास करोड़ तक पहुंच सकता है. इसी साल लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अमेरिकी पत्रिका ‘द इकोनॉमिस्ट’ ने लिखा था कि भारत में लोकसभा के चुनाव दुनिया के सबसे महंगे, यहां तक कि अमेरिकी चुनावों से भी ज्यादा महंगे चुनाव हो सकते हैं! रिपोर्ट में कहा गया था कि कम से कम करीब 83 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है.
यानी औसतन हर सीट के लिए कम से कम 153 करोड़ रुपए. जानी-मानी संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने अनुमान लगाया था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 55 से 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे, यानी हर सीट पर करीब-करीब 100 करोड़ रुपए का खर्च. मान लीजिए कि हर सीट पर तीन गंभीर प्रत्याशी भी हों, तो हर प्रत्याशी को कम से कम 30 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने होंगे.
वास्तविक खर्च इससे भी ज्यादा होता है. आपको याद होगा कि देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से जब कहा गया कि वे चुनाव लड़ें तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह चुनाव लड़ सकें. हकीकत वास्तव में यही है कि हमारा चुनाव तंत्र धनबल की चपेट में है.
उम्मीद है कि किसी दिन वक्त बदलेगा, लोकतंत्र की असली दिवाली उसी दिन होगी जब चुनाव धनतेरसी नहीं होगी. फिलहाल दिवाली का आनंद लीजिए और चुनावी उम्मीदवारों को परखिए.. चुनाव पर चर्चा फिर कभी, फिलहाल तो बात दिवाली की...
नभ में तारों की बारात जैसे,
तम को ललकारते ये नन्हे दिये!
तम का आलिंगन कर
अमावस में नव उजियारा लाते ये नन्हे दिये!
बहुत कुछ बतियाते ये नन्हे दिये,
तम का शौर्य घटाते ये नन्हे दिये!
उजास पर्व भी मन के अंधियारे मिटाकर, प्यार और करुणा की रश्मियों से मन के अंधियारे को हटाने का ही तो पर्व है !!
दीपों का त्यौहार अच्छे स्वास्थ्य, प्रेम और खुशियों से परिपूर्ण रहे. दीपोत्सव की हार्दिक एवं अनंत शुभकामनाएं!