देश में पहली बार नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) की सुगबुगाहट कारगिल युद्ध के बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में शुरू हुई थी। मंगलवार (24 दिसंबर) को केंद्र सरकार ने ऐलान किया है कि अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 के बीच देश में एनपीआर की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
इकॉनामिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, कारगिल युद्ध के बाद बनी एक समिति ने पहली बार देश में नागरिक और गैर नागरिक का रजिस्ट्रेशन करने का सुझाव दिया था। इस सुझाव को तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 2001 में स्वीकार कर लिया था।
जानें सिलसिलेवार घटनाक्रम
- अटल सरकार में 2003 में नागरिक (रजिस्ट्रेशन और राष्ट्रीय पहचान पत्र) का नियम पास हुआ-2004 में यूपीए के शासनकाल में नागरिकता कानून 1955 में एक संशोधन के जरिए राष्ट्रीय पहचान पत्र अनिवार्य किया गया-2003 से 2009 के दौरान सीमावर्ती इलाकों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ, 2009 से 2011 के बीच तटवर्ती इलाकों में एनपीआर की प्रक्रिया लागू की गई। मुंबई हमले के बाद समुद्री तटों पर इसे शुरू किया गया था। 66 लाख लोगों को आवासीय पहचान पत्र जारी किया गया।-इस डेटा को राज्य सरकारों को भी दिया गया जिससे लाभार्थियों तक मदद पहुंचाई जा सके-जनगणना 2011 के समय एनपीआर की प्रक्रिया पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर हुई
-एनपीआर को 2015 में अपडेट किया गया था। नरेंद्र मोदी सरकार ने 25 जून 2015 को विशेष अधिसूचना के जरिये यूपीए शासन के दौरान तैयार एनपीआर को अपडेट किया था। अपडेट एनपीआर को भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त (आरजीसीसीआई) की वेबसाइट पर अब तक अपलोड नहीं किया गया है।
-24 दिसंबर, 2020 को केंद्र सरकार ने एनपीआर की प्रक्रिया शुरू करने की घोषणा की। इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार, मोदी सरकार एनपीआर में 21 डाटा एकत्रित करेगी। 2010 में एनपीआर की प्रक्रिया में 15 दस्तावेज मांगे गए थे। इस बार 13 पुराने दस्तावेज के साथ ही आधार सहित 8 नए दस्तावेज की जानकारी लोगों से ली जाएगी।