"कूनो में किसी भी चीते की मौत रेडियो कॉलर की वजह से नहीं हुई" प्रोजेक्ट चीता प्रमुख एसपी यादव ने कहा
By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: September 15, 2023 08:12 IST2023-09-15T08:06:58+5:302023-09-15T08:12:37+5:30
कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गये गये चीतों में से कुछ की मौत पर उठे सवाल के बारे में प्रोजेक्ट चीता प्रमुख एसपी यादव ने कहा है कि एक भी चीते की मौत रेडियो कॉलर से जुड़े संभावित संक्रमण से नहीं हुई है।

फाइल फोटो
श्योपुर: कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गये गये चीतों में से कुछ की मौत पर उठे सवाल के बारे में प्रोजेक्ट चीता प्रमुख एसपी यादव ने कहा है कि एक भी चीते की मौत रेडियो कॉलर से जुड़े संभावित संक्रमण से नहीं हुई है। एसपी यादव ने जोर देते हुए कहा कि रेडियो कॉलर को किसी भी चीते की मौत के लिए जिम्मेदार माना जाना सही नहीं है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के सदस्य सचिव एसपी यादव ने समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा कि मांसाहारी जानवरों की निगरानी दुनिया भर में रेडियो कॉलर द्वारा की जाती है और यह एक सिद्ध तकनीक है। उन्होंने कहा, “इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि किसी चीते की मौत रेडियो कॉलर के कारण हुई है। मैं यह साफ कहना चाहता हूं कि रेडियो कॉलर के बिना जंगल में उनकी निगरानी संभव नहीं है।''
यादव ने कहा, “नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कुल 20 चीते लाए गए थे, जिनमें से 14 वयस्क पूरी तरह से स्वस्थ हैं और अच्छी तरह से रह रहे हैं। भारत की धरती पर चार चीतों का जन्म हुआ है और उनमें से एक अब छह महीने का हो गया है और ठीक है। जबकि मरने वाले तीन शावकों के मौत के पीछे जलवायु संबंधी कारण रहे हैं।''
इस साल मार्च से कूनो नेशनल पार्क में नौ चीतों की मौत हो गई थी, जिसके बाद से सवाल उठने लगा था कि क्या उनकी मौत के पीछे रेडियो कॉलर तो जिम्मेदार नहीं है। हालांकि एसपी यादव ने इन आशंकाओं पर स्थिति स्पष्ट की और साथ में यह भी कहा कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में किसी भी चीते की मौत "शिकार या अवैध शिकार" के कारण भी नहीं हुई।
उन्होंने कहा, "आम तौर पर दूसरे देशों में अवैध शिकार से मौतें होती हैं, लेकिन हमारी तैयारी इतनी अच्छी थी कि एक भी चीता अवैध शिकार या जहर के कारण नहीं मरा है और न ही कोई चीता मानव संघर्ष के कारण मरा है।”
प्रोजेक्ट चीता प्रमुख यादव ने आगे कहा, "चीते को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में ले जाने का प्रयास कभी नहीं किया गया और यह पहला जंगल से जंगल स्थानांतरण था और इसमें बहुत सारी चुनौतियाँ थीं। आमतौर पर इस तरह की लंबी दूरी के स्थानांतरण में चीते मर भी सकते थे क्योंकि वो बेहद संवेदनशील जानवर होते हैं लेकिन यहां पर एक भी ऐसी मौत नहीं हुई।"
इसके साथ ही एसपी यादव ने यह भी कहा कि पिछले साल बाद इन चीतों को 75 साल बाद किसी दूसरे देश से अन्य देश में लगाया गया है। इस लिहाज से इसे बड़ी सफलता मानी जानी चाहिए।
मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को भारत में विलुप्त हो चुके जंगली चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। नामीबिया से लाए गए चीतों को प्रोजेक्ट चीता के तहत भारत में लाया गया, जो दुनिया की पहली अंतर-महाद्वीपीय बड़े जंगली मांसाहारी जीवों के स्थानांतरण की परियोजना थी।
पिछले साल सितंबर में और इस साल फरवरी में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से बीस चीतों को दो बैचों में कुनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था। दक्षिण अफ्रीका द्वारा भारत में चीतों से संबंधित एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुआ था। जिसके बाद 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते कुनो राष्ट्रीय उद्यान में पहुंचे। वहीं आठ चीतों को नामीबिया से लाया गया था और पीएम मोदी ने उन्हें कूनो में मुक्त किया था।
सभी चीतों की गर्दन में रेडियो कॉलर लगाए गए हैं और सैटेलाइट से भी निगरानी की जा रही है। इसके अलावा एक विशेष निगरानी टीम कूनो में दिन-रात उनकी निगरानी का काम करती है।