नई दिल्लीः वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा जीएसटी कौंसिल की बैठक में राज्यों के साथ किये व्यवहार को लेकर देश के अनेक राज्य अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रहे है। ग़ौरतलब है कि निर्मला सीतारमण ने कौंसिल की बैठक में बिना राज्यों के सवालों का जवाब दिए अचानक बैठक को समाप्त करने की घोषणा कर दी।
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने निर्मला सीतारमण के इस व्यवहार पर आश्चर्य जताते हुए आरोप लगाया कि राज्यों की अपनी भूमिका है और उनके सवालों के जवाब दिए जाने चाहिए, यदि सरकार ऐसा नहीं करती है तो निश्चय ही राज्य सरकारें उन तमाम विकल्पों का उपयोग करेंगी जो उन्हें उपलब्ध हैं।
ग़ौरतलब है कि केंद्र द्वारा जीएसटी की बकाया राशि राज्यों को दिए जाने के सवाल पर केंद्र और राज्य आमने सामने हैं क्योंकि वित्त मंत्री चाहती हैं कि वे इस बकाया राशि को ऋण के रूप में लें, जो राज्यों को स्वीकार नहीं है। पी चिदंबरम ने वित्त मंत्री के उस फैसले की भी आलोचना की जिसमें उन्होंने कल बड़ी घोषणा करते हुए अर्थ व्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए पैकेज की घोषणा की थी।
चिदंबरम ने कहा कि सरकार और वित्त मंत्री माँ-बाप की तरह कर्मचारियों के साथ व्यवहार कर रहे हैं। आखिर वे क्यों 12 फीसदी जीएसटी वाले उत्पाद की अपने पैसे से ही खरीदी करे। वह स्वतंत्र है कि जहाँ चाहे वहां अपने पैसे को खर्च करे। कर रियायत के नाम पर सरकार कर्मचारियों को उन उत्पादों को खरीदने के लिए मज़बूर कर रही है जिनकी उसको आवश्यकता हो या नहीं।
चिंदबरम ने सरकार पर 7 सवाल दागे और पूछा आखिर सरकार ऐसे अंकुश कैसे लगा सकती है जिसमे जीएसटी का बिल हो, जिसपर 12 फीसदी जीएसटी हो , जीएसटी पंजीकृत दुकान हो , डिजिटल पेमेंट हो।चिदंबरम ने सलाह दी कि इन कदमों से अर्थ व्यवस्था में कोई सुधार आने वाला नहीं है , सरकार को गंभीरता से ऐसे उपाय खोजने होंगे जिससे लोगों की जेब में पैसा हो और वे स्वेच्छा से उसे खर्च कर सकें।