समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलटने वाला कानून नहीं बना सकेगी मोदी सरकार, ये है वजह

By रंगनाथ सिंह | Published: September 11, 2018 07:22 AM2018-09-11T07:22:39+5:302018-09-11T09:48:56+5:30

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को दंडनीय अपराध माने के कानून को रद्द कर दिया।

Narendra Modi can not make homosexuality even if the government wants to do so, CJI Deepak Mishra has made a permanent arrangement | समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलटने वाला कानून नहीं बना सकेगी मोदी सरकार, ये है वजह

नरेंद्र मोदी सरकार ने आईपीसी की धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया था।

सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों की संविधान पीठ ने जब समलैंगिकता की गैर-आपराधिक घोषित करके 158 साल पुराने औपनिवेशिक ब्रिटिशकालीन आईपीसी धारा 377 को रद्द किया तो कुछ लोग दबे स्वर में यह कहने लगे कि नरेंद्र मोदी सरकार चाहे तो अध्यादेश लाकर या संसद में कानून बनाकर दोबारा समलैंगिकता को आपराधिक घोषित कर सकती है। कुछ उसी तरह जैसे राजीव गांधी सरकार ने ऐतिहासिक शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए संसद में नया कानून बना दिया था।

न्यायपालिका और विधायिका के बीच ये टकराहट पुरानी रही है कि दोनों में कौन ज्यादा शक्तिशाली है। मोटे तौर पर ये माना जाता है कि भारत एक लोकतंत्र है इसलिए जनता की सच्ची प्रतिनिधि संसद से ऊपर कुछ नहीं हो सकता। लेकिन इस तर्क के आलोचक कहते हैं कि न्यायापालिका भी लोकतंत्र का एक मजबूत स्तम्भ है और सत्ता के संतुलन के लिए उसका समान शक्तिशाली होना प्रजातंत्र के लिए जरूरी है।  

तो क्या सचमुच नरेंद्र मोदी सरकार या आने वाली कोई केंद्र सरकार चाहे  तो समलैंगिकता को कानूनन अपराध बना सकती है? इसका सीधा जवाब है, शायद नहीं।

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संविधान पीठ के फैसले में ही यह व्यवस्था की गयी है कि आने वाली केंद्र सरकारें चाहें तो भी दोबारा समलैंगिकता को अपराध नहीं बना सकेंगी।

सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ के 4 फैसले एक निर्णय

देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला देने वाली पीठ में सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों ने कुल मिलाकर 493 पन्नों का आदेश पारित किया जिसमें समलैंगिकता गैर-आपराधिक घोषित किया गया। सरल भाषा में कहें तो अब देश में लेस्बियन, गे, बाईसेक्सअल और ट्रांसजेंडर इत्यादि होना कानूनन अपराध नहीं है। यानी पुरुष पुरुष और महिला महिला के बीच यौन सम्बन्ध अब अपराध नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के पाँच न्यायधीशों ने कुल चार ने अलग-अलग अपना फैसला लिखा है। खास बात ये रही कि सभी जजों द्वारा लिखे गये चारों फैसलों में समलैंगिकता को गैर-आपराधिक घोषित करने का अनुमोदन किया गया है। यानी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया।

दो न्यायाधीशों जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएम खानविलकर ने साझा फैसला दिया है जिसे जस्टिस मिश्रा ने लिखा। जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने अपने फैसले अलग-अलग लिखे।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार नहीं बना सकती कानून

देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपने फैसले में "डॉक्ट्रिन ऑफ प्रोग्रेसिव रियलाइजेशन ऑफ राइट्स" का सिद्धांत दिया है जिसके तहत वर्तमान या भविष्य में किसी भी सरकार के लिए समलैंगिकता को अपराध बनाना सम्भव नहीं होगा।

जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपने फैसले में "डॉक्ट्रिन ऑफ प्रोग्रेसिव रियलाइजेशन ऑफ राइट्स" का अर्थ साफ किया है। जस्टिस दीपक मिश्रा के अनुसार एक बार जब जनता के किसी अधिकार को पहचान कर उसे स्वीकार कर लिया गया हो उस अधिकार को सरकार भविष्य में भी नहीं छीन सकती।

जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपने फैसले में लिखा है, "एक प्रगतिशील और निरंतर बेहतरी की तरफ बढ़ने वाले समाज में पीछे लौटने या प्रतिगामी क़दम उठाने की कोई जगह नहीं। समाज को आगे ही बढ़ना चाहिए।"

जस्टिस मिश्रा ने फैसले में लिखा है, "सरकार के ऊपर ये जिम्मेदारी है कि वो आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगतिशील अधिकारों को लागू करने के लिए उचित उपाय करे। " 

जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के साल 2013 के उस फैसले को भी ग़लत बताया जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट के समलैंगिकता को गैर-आपराधिक करार देने के फैसले को पलटते हुए आईपीसी की धारा 377 को फिर से बहाल कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 2009 में अपने फैसले में एलजीबीटीक्यू समुदाय को अपराधी करार देने वाली धारा 377 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।

English summary :
Government can not change IPC 377 act homosexuality Law: It has been decided in the verdict of Supreme Court Chief Justice Deepak Mishra that, the upcoming Central Government will not be able to change IPC 377 homosexuality law again.


Web Title: Narendra Modi can not make homosexuality even if the government wants to do so, CJI Deepak Mishra has made a permanent arrangement

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