Mukhtar Ansari: एक था मुख्तार अंसारी, जानिए कैसे बना अपराध और राजनीति का कॉकटेल, पढ़िये पूरी कुंडली

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 29, 2024 08:37 AM2024-03-29T08:37:13+5:302024-03-29T08:49:21+5:30

मुख्तार अंसारी, उत्तर प्रदेश का वो बाहुबली था। जो एक जमाने में माननीय था फिर जेल की सलाखों के पीछे खुद को जहर देने का आरोप लगा रहा था और आखिरकार 28 मार्च की देर शाम 'है से था' हो गया।

Mukhtar Ansari: There was one Mukhtar Ansari, know how the cocktail of crime and politics was made, read the complete horoscope of crime | Mukhtar Ansari: एक था मुख्तार अंसारी, जानिए कैसे बना अपराध और राजनीति का कॉकटेल, पढ़िये पूरी कुंडली

फाइल फोटो

Highlightsउत्तर प्रदेश का बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी 28 मार्च की देर शाम 'है से था' हो गयामुख्तार अंसारी की बांदा जेल में हार्ट अटैक से गुरुवार देर रात मौत हो गईउत्तर प्रदेश के अपराध और राजनीति में दखल रखने वाला मुख्तार 5 बार का विधायक था

लखनऊ: मुख्तार अंसारी, उत्तर प्रदेश का वो बाहुबली था। जो एक जमाने में माननीय था फिर जेल की सलाखों के पीछे खुद को जहर देने का आरोप लगा रहा था और आखिरकार 28 मार्च की देर शाम 'है से था' हो गया। बांदा की जेल में हार्ट अटैक से गुरुवार रात मौत हो गई। जेल अधिकारियों को अनुसार रमजान में वह पूरे दिन उपवास पर था, शाम में अचानक तबियत खराब हुई और वो हमेशा के लिए इतिहास हो गया।

पांच बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी का उत्तर प्रदेश के अपराध और राजनीति की दुनिया में ऐसा नाम था, जिसे सुनकर कोई भी कांप जाता था। गैंगस्टर से राजनेता बने मुख्तार पर हत्या से लेकर जबरन वसूली तक के 65 आपराधिक मामले दर्ज थे।

आज हम उसी मुख्तार का पूरा कच्चा-चिट्ठा आपके सामने रख रहे हैं। 53 साल के मुख्तार की कहानी भी कुछ उसी रंग-ढंग में रंगी हुई है, जैसे किसी खाते-पीते घर के मनबढ़ नौजवान के बिगड़ जाने का किस्सा होता है। यूपी के पूर्वांचल में एक जिला है गाजीपुर, कहते हैं यहां पर अफीम, अपराधी और अफसर थोकभाव में पैदा होते हैं।

इसी गाजीपुर में पड़ता है मोहम्म्दाबाद-युसुफपुर। जहां ‘बड़का फाटक’ नाम से मशहूर है मुख्तार अंसारी का घर। मुख्तार को परिवार की जितनी ऊंची विरासत मिली, उसे मुख्तार ने मिट्टी में मिलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

मुख्तार के दादा कांग्रेस के अध्यक्ष थे

साल 1963 में मुख्तार उस परिवार में पैदा हुआ, जिसका नाम इस देश की सियासत में उस समय से चर्चा में रहा, जब यह देश अंग्रेजों का गुलाम था। जी हां, मुख्तार की पैदाइश उस परिवार में हुई, जिसने इस मुल्क के इतिहास को समृद्ध बनाने पर बहुत योगदान दिया है।

पिता सुभानुल्लाह अंसारी ने मुख्तार का नाम उसके दादा के नाम पर रखा। जी हां, हम उस मुख्तार अहमद अंसारी के नाम का जिक्र कर रहे हैं, जिन्होंने देश की आजादी के दौरान साल 1927 में मद्रास में हुए कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की।

मुख्तार अहमद अंसारी जामिया मिलिया इस्लामिया के वाइस चांसलर भी रहे हैं। दिल्ली का अंसारी रोड का नाम इन्हीं मुख्तार अहमद अंसारी की याद में रखा गया है। इसके अलावा दिल्ली में एम्स के बगल में अंसारी नगर का रिहाइशी एरिये का नाम भी मुख्तार के दादा के नाम पर रखा गया है। ये तो रही मुख्तार के दादा की बात, अब बात करते हैं मुख्तार के नाना का। जिनकी शहादत पर आज भी पूरा हिंदुस्तान गर्व करता है।

मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ कहते थे

मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता है। मुख्तार के नाना ब्रिगेडिय उस्मान गाजीपुर के पड़ोसी जिले आजमगढ़ के बिबिबुआ के रहने वाले थे। भारत के सेना प्रमुख रहे सैम मानेकशॉ और पाकिस्तान के सेना प्रमुख रहे मोहम्मद मूसा, ब्रिगेडियर उस्मान के बैचमेट थे।

ब्रिगेडियर उस्मान ने नवंबर 1947 में पाकिस्तानी कबायलियों के हमले को रोकने के लिए जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर में कमान संभाली। झांगर पर दोबारा कब्ज़ा करने के प्रयास में 03 जुलाई 1948 को देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। मरणोपरांत देश ने ब्रिगेडियर उस्मान को महावीर चक्र (MCV) से सम्मानित किया और ‘नौशेरा का शेर’ की उपाधि भी दी।

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार के रिश्तेदार थे

भारत के भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की और यह बात हम नहीं खुद मुख्तार कह रहे हैं कि पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी रिश्ते में उनके चाचा लगते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे हामिद अंसारी के अलावा एक और वाहिद शख्स का नाम मुख्तार के साथ जुड़ता है और वो हैं वरिष्ठ पत्रकार जावेद अंसारी। देश की कई समाचार पत्र और पत्रिकाओं में जावेद अंसारी की लेखनी पढ़ी जा सकती है। जावेद अंसारी रिश्ते में मुख्तार के भाई लगते हैं।

मुख्तार के नाम पहला केस

साल 1988 में पहली बार अपने घर मुहम्मदाबाद गोहना के हरिहरपुर गांव के रहने वाले सचिदानंद राय की हत्या के मामले में मुख्तार का नाम पुलिस की डायरी में दर्ज हुआ। सचिदानंद राय भी दबंग छवि के नेता थे और गाजीपुर नगर पालिका के चेयरमैन रह चुके कम्युनिस्ट नेता सुभानुल्लाह अंसारी के राजनीतिक विरोधी भी थे।

सुभानुल्लाह अंसारी मुख्तार के पिता थे। सच्चिदानंद राय की हत्या में नाम आने के बाद पूरे गाजीपुर में मुख्तार के नाम की दहशत फैल गई। उसके बाद मुख्तार गाजीपुर में आतंक का पर्याय बने साधु सिंह, मकनू सिंह के गिरोह में शामिल होकर दुर्दांत बनने की राह पर चल चुका था।

मुख्तार-बृजेश  की जंग

वहीं दूसरी तरफ बनारस के चौबेपुर क्षेत्र के धरहरा निवासी बृजेश सिंह भी यूपी कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई अधूरी छोड़कर पिता रविंद्र सिंह की हत्या का बदला लेने अपने गांव धरहरा वापस आ जाते हैं। गांव में ही हरिहर, पांचू, ओमप्रकाश, नागेंद्र और प्रधान रधुनाथ यादव जमीनी विवाद में बृजेश सिंह के पिता की हत्या कर देते हैं। बृजेश सिंह ने पहले पांचू के पिता हरिहर सिंह की हत्या की और उसके बाद एक-एक कर सभी को मौत के घाट उतार डाला। इन हत्याओं में बृजेश को गाजीपुर के मुडियार गांव के रहने वाले त्रिभुवन सिंह का साथ मिलता है।

त्रिभुवन सिंह की गाजीपुर के सैदपुर में एक प्लॉट को लेकर साधु सिंह और मकनू सिंह से ठनी हुई थी और उसी चक्कर में 1988 में साधु सिंह औऱ मकनू सिंह ने त्रिभुवन सिंह के भाई राजेंद्र सिंह की वाराणसी पुलिस लाइन में गोली मारकर हत्या कर दी। राजेंद्र सिंह यूपी पुलिस में सिपाही थे। इस केस में साधु और मकनू के साथ मुख्तार अंसारी को भी नामजद किया गया और यहीं से आमने-सामने हो गया मुख्तार और बृजेश सिंह का गिरोह। दोनों ओर से न जाने कितने गैंगवार हुए। पूरा पूर्वांचल AK-47 की गोलियों से कांप उठा।

अवधेश राय हत्याकांड

मुख्तार और बृजेश सिंह के बीच यह दुश्मनी तब और गहरी हो उठी जब साल 1991 में वाराणसी के चेतगंज में थाने के ठीक सामने कांग्रेसी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय को मुख्तार ने गोली मरवा दी। अवधेश राय बृजेश खेमे के आदमी थे और बनारस में बृजेश गैंग का सारा दारोमदार इन्हीं के कंधे पर था। अवधेश राय भी मूलतः गाजीपुर के ही रहने वाले थे।

मुख्तार अंसारी राजनीति में गया

अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार पर पुलिस का दबाव बढ़ने लगा। उसने साल 1995 में बहुजन समाज पार्टी ज्वाइन कर ली और साल 1996 में पहली बार मऊ सदर की सीट से बसपा प्रत्याशी के तौर चुनाव लड़ा और जीतकर सीधे लखनऊ विधानसभा पहुंचा।

उसके बाद 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में मुख्तार ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में मऊ सीट पर अपना सफल प्रदर्शन जारी रखा। 2012 में उसने कौमी एकता दल बनाया और 2017 में भी वह मऊ से जीता। साल 2022 में मुख्तार ने मऊ सीट अपने बेटे अब्बास अंसारी के लिए खाली कर दी, जिसने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर इस सीट को जीता है।

रूंगटा अपहरण कांड

मुख्तार अंसारी की असली दशहत पू्र्वांचल में तब फैली जब उसने बनारस के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी और विश्व हिंदू परिषद के कोषाध्यक्ष नंद किशोर रूंगटा को उनके वाराणसी के भेलूपुर स्थित जवाहर नगर कॉलोनी से उठवा लिया। 22 जनवरी 1997 को मुख्तार के गुर्गे घर में घुसकर रूंगटा को उठाकर ले गये और उनकी सारी सिक्योरिटी धरी की धरी गह गई। 3 करोड़ की फिरौती उस जमाने में वसूली गई लेकिन रूंगटा कभी घर वापस नहीं पहुंचे।

मुख्तार का भाई गाजीपुर में चुनाव हारा

मुख्तार को साल 2002 में उस समय बड़ा धक्का लगा जब विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद सीट पर भाजपा के कृष्णा नंद राय मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को हरा देते हैं। मोहम्मदाबाद सीट मुख्तार की पैतृक सीट मानी जाती थी क्योंकि इसी विधानसभा क्षेत्र में उसका घर भी आता था। यहां की हार-जीत सब मुख्तार का परिवार तय करता था। 

उसरी चट्टी में मुख्तार पर गरजी AK-47

गाजीपुर के उसरी-चट्टी में मुख्तार अंसारी के काफिले पर बृजेश गैंग बड़ा हमला करता है और दोनों तरफ से AK-47 से सैकड़ों राउंड गोली चलती है। इस हमले में बृजेश गिरोह ने मुख्तार के तीन लोगों को मार गिराया। वहीं हमले में बृजेश सिंह के भी घायल होने की झूठी खबर उड़ी। कुछ समय के बाद यह अफवाह भी उड़ी की बृजेश सिंह इस गोलीबारी में मारे गये। बृजेश के मौत की अफवाह गलत थी और वह अरुण सिंह के नाम से ओडिशा के भुवनेश्वर में छुपकर रहने लगा।

मऊ दंगे में मुख्तार का नाम

साल 2005 में मऊ में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। कहा जाता है कि इस दंगे की योजना मुख्तार ने खुद बनाई थी। दंगों के बीच मुख्तार खुली जीप में मऊ के सड़कों पर निकलता और विरोधियों को अपने अंदाज में निशाने पर लेता। आलम ये था कि पुलिस मुख्तार की सुरक्षा में पीछे-पीछे भाग रही है और मुख्तार किसी हीरो की तरह पूरे मऊ में बेफिक्र अंदाज में टहलता था। लेकिन थोड़े ही समय के बाद दंगे की परतें खुलने लगती हैं और भड़काऊ भाषण देने के आरोप में पुलिस ने मुख्तार को गिरफ्तार कर लिया।

विधायक कृष्णा नंद राय की हत्या

गाजीपुर के उसरी-चट्टी कांड से कृष्णा नंद राय को अंदेशा था कि मुख्तार पलटवार जरूर करेगा। इसलिए वो हमेशा बुलेटप्रुफ गाड़ी से चला करते थे लेकिन 25 नवंबर 2005 की शाम उन्हें करीमुद्दीनपुर के पास सियारी गांव में जाना था। बुलेटप्रुफ गाड़ी में कुछ खराबी थी तो राय एक साधारण सी गाड़ी लेकर उस गांव में पहुंच गये।

कृष्णा नंद राय क्रिकेट मैच की प्रतियोगिता का उद्घाटन करने के बाद जैसे ही वह अपने गांव की ओर रवाना हुए, घात लगाये मुख्तार के गुर्गों ने चारों ओर से घेर कर AK-47 से बर्स्ट फायर झोंका। कृष्णा नंद राय की गाड़ी पर लगी कुल 500 राउंड गोलियां ने पूरी गाड़ी की धज्जी उड़ा दी।

इस घटना में मुख्तार के आदमियों ने भाजपा विधायक राय समेत कुल 7 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद तो पूरे पूर्वांचल में जो कोहराम मचा, वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत भाजपा के सभी राष्ट्रीय स्तर के नेता कृष्णा नंद राय हत्याकांड में धरना देने बनारस पहुंचे थे।

मुख्तार ने जेल से मुरली मनोहर जोशी की नाक में दम कर दिया

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी ने कानपुर जेल में रहते हुए वाराणसी से पर्चा भरा। वो एक भी दिन जेल से बाहर नहीं आये और उनके मुकाबले खड़े थे पूर्व मानव संसाधन मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी।

मुरली मनोहर जोशी ने प्रचार का तमाम समां बांधा लेकिन मुख्तार ने उन्हें जेल में बैठे-बैठे पानी पिला दिया। जेल में रहते हुए मुख्तार दूसरे नंबर पर आया और मुरली मनोहर जोशी मात्र कुछ हजार वोटों से जीत पाये। जिस दिन मतगणा हो रही थी, जोशी खेमें में सुबह से हार की मायूसी छायी हुई थी लेकिन वोटों के अंतिम दौर की गिनती के बाद मुरली मनोहर जोशी लगभग 17000 वोटों के फासले से वाराणसी सीट जीते और संसद पहुंचे।

मुख्तार अपने अंत की ओर

मुख्तार साल 2005 से अपनी मृत्यु तक यूपी और पंजाब की अलग-अलग जेलों में बंद था। 2005 से उसके खिलाफ हत्या सहित 28 आपराधिक मामले और यूपी के गैंगस्टर अधिनियम के तहत सात मामले दर्ज थे। उसे सितंबर 2022 से आठ आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया गया था और विभिन्न अदालतों में 21 मामलों में मुकदमे का सामना कर रहा था। लगभग 37 साल पहले धोखाधड़ी से हथियार लाइसेंस प्राप्त करने के मामले में इस महीने की शुरुआत में वाराणसी के सांसद/विधायक कोर्ट द्वारा अंसारी को आजीवन कारावास और 2.02 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

पिछले 18 महीनों में यूपी की अलग-अलग अदालतों द्वारा यह आठवां मामला था जिसमें उन्हें सजा सुनाई गई थी और दूसरा जिसमें उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। 15 दिसंबर, 2023 को वाराणसी की एक एमपी/एमएलए अदालत ने 22 जनवरी 1997 को भाजपा नेता और कोयला व्यापारी नंद किशोर रूंगटा के अपहरण और हत्या से जुड़े मामले और महावीर प्रसाद रूंगटा को जान से मारने की धमकी देने के लिए अंसारी को पांच साल और छह महीने की सजा सुनाई।

27 अक्टूबर, 2023 को गाजीपुर एमपी/एमएलए अदालत ने 2010 में मुख्तार के खिलाफ दर्ज गैंगस्टर एक्ट के एक मामले में 10 साल के कठोर कारावास और 5 लाख के जुर्माने की सजा सुनाई थी। 5 जून, 2023 को वाराणसी के एक सांसद/विधायक कोर्ट ने पूर्व कांग्रेस विधायक और वर्तमान यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय की हत्या के मामले में अंसारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

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