दिल्ली में देर से पहुंचे मानसून ने 11 साल में सबसे ज्यादा बारिश की
By भाषा | Updated: September 10, 2021 19:52 IST2021-09-10T19:52:24+5:302021-09-10T19:52:24+5:30

दिल्ली में देर से पहुंचे मानसून ने 11 साल में सबसे ज्यादा बारिश की
नयी दिल्ली, 10 सितंबर दक्षिण पश्चिमी मानसून दिल्ली में भले ही अस्थिर रहा हो और इसकी गिनती सबसे देर से आने वाले मानसून में की गई हो लेकिन इसने राष्ट्रीय राजधानी में 11 साल में अब तक सबसे ज्यादा 1,005.3 मिलीमीटर बारिश की है।
यह 2010 के बाद पहली बार है जब दिल्ली में मानसून की बारिश ने 1,000 मिमी का रिकॉर्ड तोड़ा है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, सफदरजंग वेधशाला में मानसून की ऋतु के दौरान आम तौर पर औसतन 648.9 मिमी वर्षा दर्ज की जाती है। एक जून को मानसून का मौसम शुरू होने से 10 सितंबर तक यहां 586.4 मिमी बारिश होती है।
आईएमडी के एक अधिकारी ने कहा, “दिल्ली में 2010 में मानसून की ऋतु में 1,031.5 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। तब से, यह सबसे अधिक बारिश है।”
दिल्ली में 2011 के मानसून में 636 मिमी, 2012 में 544 मिमी, 2013 में 876 मिमी, 2014 में 370.8 मिमी और 2015 में 505.5 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।
आईएमडी के मुताबिक, 2016 में 524.7 मिमी, 2017 में 641.3 मिमी, 2018 में 762.6 मिमी, 2019 में 404.3 मिमी और 2020 में 576.5 मिमी वर्षा दर्ज की गई थी।
दिल्ली में जुलाई और सितंबर में भारी बारिश हुई और कई बार तो कुछ घंटों में 100 मिमी वर्षा दर्ज की गई जिससे सड़कें, आवासीय क्षेत्र, स्कूल, अस्पताल और बाजारों में घुटनों तक पानी भर गया तथा यातायात प्रभावित हुआ।
दिल्ली में इस महीने की शुरुआत में लगातार दो दिनों में 100 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई- एक सितंबर को 112.1 मिमी और दो सितंबर को 117.7 मिमी वर्षा हुई। इस महीने अब तक 248.9 मिमी वर्षा हुई है, जो सितंबर के औसत 129.8 मिमी बारिश से काफी ज्यादा है।
दिल्ली में 13 जुलाई को मानसून पहुंचा था जो 19 वर्षों के इतिहास में सबसे देर से आया। इसके बावजूद, राजधानी में महीने में 16 दिन बारिश हुई जो पिछले चार साल में सबसे ज्यादा है।
जुलाई में 507.1 मिमी बारिश हुई जो औसत 210.6 मिमी से बहुत ज्यादा है। यह जुलाई 2003 के बाद सबसे अधिक बारिश थी और अब तक दूसरी बार इतनी बारिश हुई है।
अगस्त में 10 दिन बारिश हुई जो सात साल में सबसे कम है और सिर्फ 214.5 मिमी बरसात दर्ज की गई जो औसत 247 मिमी बरसात से कम है।
निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी ‘स्काईमेट वेदर’ के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की प्रृवत्ति बदल रही है। उन्होंने कहा, “ पिछले चार-पांच साल में बारिश होने वाले दिनों की संख्या में गिरावट आई है और मौसम संबंधी चरम घटनाक्रमों में इजाफा हुआ है।”
उन्होंने कहा कि देखा जा रहा है कि कम अवधि में मूसलाधार बारिश हो रही है, कई बार तो सिर्फ 24 घंटे में ही करीब 100 मिमी बारिश हो जाती है। उनके मुताबिक, पहले इतनी बरसात 10-15 दिनों में होती थी।
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह से बारिश होने से भूजल के पुनर्भरण में मदद नहीं मिलती है बल्कि निचले इलाकों में पानी भर जाता है।
आईएमडी के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि अगर चार-पांच दिन हल्की बारिश हो तो पानी जमीन में रिस जाता है लेकिन भारी बारिश होने पर पानी तेजी से बह जाता है।
उन्होंने कहा कि बारिश प्रदूषकों को बहाकर ले जाती है लेकिन बरसात के दिनों में गिरावट की वजह से औसत वार्षिक वायु गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है।
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