लगातार तीसरे साल अच्छी होगी बारिश, स्काइमेट का अनुमान- 'सामान्य से ज्यादा' बारिश की 15% संभावना
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 14, 2021 02:25 PM2021-04-14T14:25:45+5:302021-04-14T15:15:45+5:30
Monsoon 2021: स्काईमेट वेदर ने भारत में औसत बारिश के 103 प्रतिशत होने की भविष्यवाणी की है. पिछली बार ऐसा 1996, 1997 और 1998 में हुआ था.
Monsoon 2021: मौसम संबंधी पूर्वानुमान व्यक्त करने वाली निजी एजेंसी 'स्काइमेट वेदर' ने कहा कि दक्षिण-पश्चिम मानसून इस साल सामान्य रहेगा. 2021 में लगातार तीसरे वर्ष अच्छा मानसून रहेगा.
पिछले दो वर्षों के दौरान सामान्य से ज्यादा बारिश दर्ज की गई थी. स्काईमेट के अनुसार मानसून तय समय पर दस्तक देगा. मुंबई में इसके जून के पहले सप्ताह में पहुंचने की उम्मीद है. जनवरी में भी स्काईमेट ने अपने पूर्वानुमान में सामान्य मानसून की उम्मीद जताई थी.
मौसम के बारे में आधिकारिक तौर पर अनुमान जारी करने वाला मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) इस सप्ताह अपना पूर्वानुमान जारी कर सकता है. स्काइमेट वेदर के अध्यक्ष (मौसम विज्ञान) जी.पी. शर्मा ने कहा कि जून से सितंबर के दौरान वर्षा का दीर्घावधि औसत (एलपीए) 103 प्रतिशत रहेगा. इसमें चूक की संभावना पांच प्रतिशत अधिक या कम की है.
इस तरह, सामान्य मानसून रहने की संभावना है. 'सामान्य' मानसून की 60 प्रतिशत तथा 'सामान्य से ज्यादा' बारिश की 15 प्रतिशत संभावना है. भौगोलिक जोखिम के आधार पर उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के कुछ हिस्सों के साथ उत्तरी भारत में इस मौसम में कम बारिश होने की आशंका है.
जून में मासिक आधार पर 106% वर्षा का अनुमानः स्काइमेट ने कहा है कि मासिक आधार पर जून में 106 प्रतिशत वर्षा जबकि जुलाई में 97 प्रतिशत वर्षा की संभावना है. अगस्त और सितंबर में 99 प्रतिशत और 116 प्रतिशत बारिश का अनुमान है. दीर्घावधि औसत के हिसाब से 96-104% के बीच मानसून को सामान्य माना जाता है. 103 प्रतिशत वर्षा सामान्य रेंज में सबसे अधिक औसत है. प्रारंभिक चरण जून और आखिरी चरण सितंबर में देश भर में व्यापक वर्षा के संकेत हैं.
अहम साबित होगा ला नीनाः स्काइमेट के सीईओ योगेश पाटिल ने बताया कि प्रशांत महासागर में पिछले वर्ष से 'ला नीना' की स्थिति बनी हुई है. अब तक मिल रहे संकेत इशारा करते हैं कि पूरे मानसून में यह तटस्थ स्थिति में रहेगा. 'ला-नीना' प्रभाव का आशय प्रशांत महासागर में पानी के ठंडा होने की स्थिति से है. महाद्वीप के मौसम पर इसका असर पड़ता है. मानसून के मध्य तक आते-आते प्रशांत महासागर के मध्य भागों में समुद्र की सतह का तापमान फिर से कम होने लगेगा.