तीन लाख करोड़ बट्टे खाते में डालने पर कांग्रेस ने उठाए सवाल, कहा- बैंक डिफाल्टर्स पर 'मोदी कृपा'
By आदित्य द्विवेदी | Published: October 1, 2018 11:44 AM2018-10-01T11:44:04+5:302018-10-01T11:44:38+5:30
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, 'सरकारी बैंकों में जमा जनता के पैसे से 3.16 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बट्टे खाते में डाल दिया, जबकि 14 फीसदी कर की वसूली हो सकी और मोदी कृपा से डिफाल्टर्स को बचने का अवसर मिला।'
नई दिल्ली, 1 अक्तूबर: कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी सरकार पर कर्ज की अदायगी नहीं करने वालों (बैंक डिफाल्टर्स) पर 'कृपा' करने का आरोप लगाया और दावा किया कि इस सरकार ने गत चार वर्षों में तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बट्टे खाते में डाल दिया।
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, 'सरकारी बैंकों में जमा जनता के पैसे से 3.16 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बट्टे खाते में डाल दिया, जबकि 14 फीसदी कर की वसूली हो सकी और मोदी कृपा से डिफाल्टर्स को बचने का अवसर मिला।'
उन्होंने भगोड़े कारोबारी विजय माल्या से जुड़ी एक खबर शेयर करते हुए कहा, ' माल्या की लूट बरकरार है। क्या फोर्स इंडिया सेल (फार्मूला वन टीम) में 13 बैंकों ने 380 करोड़ रुपये गवां दिए?' उन्होंने सवाल किया, 'क्या मोदी सरकार जनता का पैसा बचाने के लिए सही कदम उठाएगी या फिर माल्या को भारत से भागने में मदद करने जैसा कदम उठाएगी?"
आरबीआई ने दिया सरकारी बैंकों का डेटा
अप्रैल 2014 से अप्रैल 2018 के बीच देश के 21 सरकारी बैंकों ने 3,16,500 करोड़ रुपये का कर्ज बट्टा खाते में डाल दिया है जबकि इस दौरान महज 44,900 करोड़ रुपये की रिकवरी की जा सकी है। यह पिछले चार साल में बट्टा खाते में डाले गए कर्ज का सातवां हिस्सा है।
सरकारी बैंकों द्वारा बट्टा खाते में डाले गए बैड लोन के आंकड़ों पर गौर करें तो यह स्वास्थ्य, शिक्षा और समाजिक सुरक्षा पर जारी किए गए 2018-19 के बजट से दोगुना है। पिछले चार सालों में सरकारी बैंकों ने जितना कर्ज राइट ऑफ किया है वो 2014 से पहले 10 सालों से भी 166 प्रतिशत ज्यादा है।
क्या होता है बट्टा खाता?
बैंक से लिए गए कर्ज पर जब कॉरपोरेट कंपनियां ब्याज भी नहीं चुका पाती और मूल धन डूबने लगता है तो बैंक उसे एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) करार दे देता है। बट्टा खाते के जरिए बैंक अपने बहीखाते से उस कर्ज को मिटा देते हैं (माफ कर देते हैं) जिससे नुकसान छिप जाए। लेकिन नीलामी इत्यादि के जरिए रिकवरी की प्रक्रिया जारी रहती है। लोन राइट-ऑफ के बाद हुई रिकवरी को बाद में बैंक की कमाई में जोड़ दिया जाता है। यह एक अपारदर्शी प्रक्रिया है।
माना जाता है कि देश के सरकारी बैंक अपनी बैलेंसशीट को साफ-सुथरा रखने के लिए बट्टा खाते का सहारा लेते हैं। जबकि यह तभी करना चाहिए जब नया कर्ज देने में खराब बैलेंसशीट के कारण दिक्कत होने लगी हो।
समाचार एजेंसी पीटीआई भाषा से इनपुट्स लेकर